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अगर हिंदू BJP को वोट करें तो सांप्रदायिकता कैसे: तेजस्वी सूर्या

अगर हिंदू BJP के पक्ष में वोट करते हैं तो ये सांप्रदायिकता कैसे?: तेजस्वी सूर्या 

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तेजस्वी सूर्या को बीजेपी ने साउथ बेंगलुरु से अपना उम्मीदवार बनाया है. तेजस्वी कर्नाटक उच्च न्यायालय में वकील हैं.इसके अलावा वे RSS के स्वयंसेवक, युवा मोर्चा के राज्य महासचिव और BJP की सोशल मीडिया टीम के हिस्सा हैं, पार्टी ने तेजस्वी को कांग्रेस के बीके हरिप्रसाद के खिलाफ मैदान में उतारा है.

तेजस्वी BJP के सबसे युवा उम्मीदवार भी हैं. उनसे जुड़े विवादों और चुनाव की रणनीतियों पर क्विंट ने उनसे खास बातचीत की.

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जब आपके नाम की घोषणा हुई तो दो चीजें वायरल हुईं थी. एक आपका OMG ट्वीटऔर दूसरा आपका पुराना भाषण. जिसमें आपने कहा था, “अगर आप मोदी के साथ नहीं हैं तो आप देश के साथ नहीं हैं.” आप अब भी इस बात पर कायम हैं?

उस भाषण का संदर्भ अलग था. मैंने कहा था कि नरेंद्र मोदी का विरोध लोकतंत्र में ठीक है लेकिन अगर नेताओं का ऐसा विरोध देश विरोध का रूप ले लेता है, तो ये ठीक नहीं है. लोग ऐसे बयान देने लग जाते हैं जो दुश्मन देशों की मदद करता है, हमारे देश के लिए ये खतरनाक है.उसी संदर्भ में मैंने कहा था 

भाषण में आपने वंशवादी राजनीति पर सवाल उठाए, लेकिन ये सवाल हर कोई पूछ रहा है कि आपके चाचा भी एक विधायक हैं. क्या ये वंशवादी राजनीति नहीं है?

अगर मैंने चाचा के निर्वाचन क्षेत्र में निगम पार्षद का टिकट मांगा होता तो ये वंशवादी राजनीति होती. मुझे प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष ने चुनाव लड़ने का मौका दिया है. इस उम्मीदवारी को तय करने में मेरे चाचा की कोई भूमिका नहीं थी. अभी हाल तक भी जो लोग मुझे और मेरे काम को जानते थे, वे भी नहीं जानते थे कि मेरे चाचा विधायक हैं. मैं उस मायने में ‘सेल्फ मेड’ हूं.

विधानसभा चुनावों के बाद आपने कहा था कि बीजेपी को हिंदुओं की पार्टी होना चाहिए. क्या इसका मतलब ये है कि प्रचार के दौरान आप केवल हिंदुओं के पास जाएंगे, अन्य समुदाय के पास नहीं?

मैंने देखा था कि जयनगर चुनाव में क्या हुआ था. कांग्रेस के पक्ष में एक समुदाय के वोटों का ध्रुवीकरण हुआ था, आप जानते हैं.अगर कांग्रेस के पक्ष में मुस्लिम वोट पड़ते हैं, तो ये धर्मनिरपेक्ष वोट है. लेकिन अगर हिंदू बीजेपी के पक्ष में वोट देते हैं तो आप इसे सांप्रदायिकता कहते हैं. ये दोहरा मापदंड है, जो मैं सवाल करना चाह रहा था.

हाल ही में आप कई मीडिया संस्थानों के खिलाफ कोर्ट का आदेश लेकर आएं. क्या ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के विचार के खिलाफ नहीं है?

भारत के संविधान में दो अधिकारों को संतुलित किया गया है. एक- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दूसरी गरिमा और प्रतिष्ठा का अधिकार. अगर कुछ लोग बुरे इरादे से आपको बदनाम करना चाहते हैं तो आप कानून के दायरे में संविधान के तहत अपनी गरिमा और प्रतिष्ठा के अधिकार की रक्षा कर सकते हैं. इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं कहा जा सकता.

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