वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम
क्विंट ने खुलासा किया था कि किस तरह मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड के नाम पर पब्लिक को धोखे में रखा. कहा गया कि इलेक्टोरल बॉन्ड के रूप में राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने वालों के नाम गुप्त रखे जाएंगे.
13 अप्रैल को हमने रिपोर्ट पब्लिश की जिसमें बताया कि सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड से चंदा देने वालों पर नजर रख रही है. लैब टेस्ट के बाद सामने आया कि बॉन्ड में अल्फान्यूमेरिक नंबर छिपे हुए हैं जो सिर्फ अल्ट्रा वायलेट लाइट में नजर आएंगे. जबकि सरकार ने दावा किया कि ये सिर्फ एक सिक्योरिटी फीचर है.
अपने पाठकों और दर्शकों की मांग पर इस वीडियो में हम आपको दिखा रहे हैं कि अल्ट्रा वायलेट लाइट में आप कैसे देख सकते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड पर छिपे नंबर.
ये गैरकानूनी है और इसे कोर्ट में चुनौती देनी चाहिए: आरबीआई के पूर्व निदेशक
आरबीआई के पूर्व निदेशक विपिन मलिक का कहना है कि इस तरह का सिक्योरिटी फीचर किसी करेंसी या किसी कानूनी कागज पर नहीं होता.
मलिक कहते हैं,
इलेक्टोरल बॉन्ड नैतिकता के तकाजे पर नहीं ठहरता. ये गैर-कानूनी भी हो सकता है. चुनौती मिलने पर कोर्ट इस पर अलग राय रख सकता है. ये कोई जादू नहीं है. जतन से छिपाया सीक्रेट है! इस छिपे हुए नंबर से सरकार, दूसरे राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड से मिलने वाले चंदे की पहचान कर सकती है.
पूर्व निदेशक आगे बताते हैं, ''आपके खुलासे के बाद वो(सरकार) इसे सुधार सकते हैं. अगर इसे नहीं सुधारा गया तो सत्ताधारी दल के इसे दुरुपयोग करने की पूरी आशंका है. चुनाव आयोग से पूछा जाना चाहिए कि कितनी पार्टियों ने टैक्स रिटर्न भरा. आपको मालूम होगा कि हर किसी ने डिफॉल्ट किया है. हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद उन्होंने टैक्स रिटर्न नहीं भरे क्योंकि .वो कुछ छिपाना चाहते हैं
इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदे को नेताओं को 'काला धन' पहुंचाने का रास्ता बताते हुए चुनाव आयोग ने पहले ही इसे सीक्रेट रखने के संशोधन पर आपत्ति जताई थी.
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