वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
अप्रैल, 2018 में जब द क्विंट ने ये खुलासा किया था कि सभी इलेक्टोरल बॉन्ड में अल्फा न्युमेरिक कोड छिपे हुए हैं और ये अल्ट्रावॉयलेट लाइट में दिखते हैं तब वित्त मंत्रालय ने ये कहा था, “ये नंबर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के किसी भी रिकॉर्ड में नहीं है.’’ लेकिन अब क्विंट को मिले ताजा आरटीआई डॉक्यूमेंट्स में खुलासा हुआ है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को इलेक्टोरल बॉन्ड में छिपे हुए अल्फा न्युमेरिक कोड को रिकॉर्ड करने की इजाजत वित्त मंत्रालय ने दी थी.
वित्त मंत्रालय ने ही SBI से इस जानकारी को लीक होने से बचाने के लिए गोपनीय रखने को कहा था. SBI इकलौता बैंक था, जिसे इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने की मंजूरी है.
बीजेपी के वरिष्ठ मंत्री और पार्टी ट्रेजरार पीयूष गोयल ने 21 नवंबर 2019 को अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि बॉन्ड पर सीरियल नंबर एक 'इनविजिबल इंक' से लिखा जाता है, जिससे डोनर का कोई हैरेसमेंट न हो. एक बार फिर गोयल ने नहीं बताया कि ये छुपा हुआ कोड SBI रिकॉर्ड करता है.
क्विंट ये जानना चाहता है कि
- पीयूष गोयल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में क्यों नहीं बताया कि SBI इलेक्टोरल बॉन्ड पर मौजूद हिडन कोड का रिकॉर्ड रखता है?
- वित्त मंत्रालय ने मीडिया और पब्लिक को गुमराह क्यों किया?
- क्या सरकार इन हिडन नंबर से पॉलिटिकल डोनेशन को ट्रैक कर रही है?
- जो लोग विपक्षी पार्टियों को पॉलिटिकल डोनेशन दे रहे हैं, क्या उन्हें हैरेस किया जा रहा है?
हिडन कोड पर इस तरह की राज की क्या जरूरत है?
जनवरी 2018 में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने स्कीम को सार्वजनिक करने से कुछ महीने पहले सीरियल नंबर के बिना चुनावी बॉन्ड जारी करने पर आपत्ति जताई थी.
SBI का ये तर्क था-
“अगर जाली चुनावी बॉन्ड का भुगतान किया जाता है और लॉ एनफोर्समेंट एजेंसियां या एक अदालत इस बारे में ब्योरा मांगती है, तो SBI इस बारे में कोई ब्यौरा नहीं दे पाएगा कि यह किसके लिए जारी किया गया था, और किस खाते में इसे एनकैश किया गया था.”
यहां आपको बता दे कि एसबीआई चुनावी बॉन्ड पर सीरियल नंबर चाहता था लेकिन उन्हें छिपाने की जरूरत नहीं थी.
लेकिन जिस तरीके से छिपे हुए यूनिक सीरियल नंबर के साथ इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को रोल आउट किया गया. इससे ये सरकार के लिए एक टूल बन गया, जिससे वे गुप्त रूप से विपक्ष को राजनीतिक चंदा देने वालों को ट्रैक कर सकें इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये पॉलिटिकल फंडिंग में काला धन आएगा.
इसी बात के आधार पर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और इलेक्शन कमीशन दोनों ने आपत्ति जताई थी. इसके बावजूद वित्त मंत्रालय ने उनकी बातों को नजरअंदाज किया और जनवरी 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड लेकर आई. अब हम अप्रैल 2018 से इस स्टोरी को कवर कर रहे हैं और आगे भी हम ऐसा करना जारी रखेंगे.
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