झारखंड के मानवाधिकार कार्यकर्ता और भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामले में गिरफ्तार किए गए फादर स्टेन स्वामी (Stan Swamy) का सोमवार को 84 साल की उम्र में निधन हो गया. पिछले कुछ दिनों से उनकी तबीयत खराब चल रही थी. ज्यादा तबीयत खराब होने के कारण उन्हें जेल से होली फैमिली अस्पताल में भर्ती कराया गया था. सोमवार दोपहर बॉम्बे हाईकोर्ट को उनके निधन की जानकारी दी गई.
स्वामी को नहीं मिली जमानत
लंबे समय से बीमार चल रहे स्टेन स्वामी ने इसी साल बॉम्बे हाईकोर्ट में जमानत याचिका लगाई थी. लेकिन एनआईए के विरोध के कारण जमानत नहीं मिल पाई थी. स्टेन स्वामी की ओर से बताया गया था कि जेल में उनकी हालत हर रोज बिगड़ रही है, ऐसे में उनका अस्पताल जाना काफी जरूरी है.
जब स्टेन स्वामी की हालत काफी बिगड़ गई, तब 84 साल के स्टेन स्वामी को 30 मई को बॉम्बे हाईकोर्ट की ओर से अस्पताल में भर्ती करवाने का निर्देश दिया गया. जिसके बाद मुंबई के होली फैमिली अस्पताल में लंबे इलाज के बाद उनकी तबीयत में कोई सुधार नहीं आया.
रविवार को स्वामी को वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया था. जिसके बाद सोमवार यानी 5 जुलाई 2021 को उनका निधन हो गया.
पिछले साल हुई थी गिरफ्तारी
राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी ने फादर स्टेन स्वामी को अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार किया था, तब से उन्हें तालोजा जेल में रखा गया था. 31 दिसंबर, 2017 में पुणे में एलगार परिषद के कार्यक्रम में दिए गए भाषणों को आधार बनाते हुए स्टेन स्वामी पर केस दर्ज किया गया था. NIA द्वारा स्टेन स्वामी पर UAPA के तहत केस दर्ज किया गया था.
क्या आरोप लगे हैंः
इसी कार्यक्रम के एक दिन बाद भीमा-कोरेगांव में भयानक हिंसा हुई थी, जिसमें काफी लोगों की जान गई थी और बड़ा बवाल हुआ था. पुणे पुलिस ने इस मामले में खुलासा किया था कि इस पूरी साजिश में माओवादियों का भी कनेक्शन था. कहा गया कि स्वामी इसके फ्रंटल संगठन (पीपीएससी) के संयोजक हैं. सक्रिय रूप से इसकी गतिविधियों में शामिल रहते हैं. संगठन का काम बढ़ाने के लिए उन्होंने एक सहयोगी के माध्यम से पैसे हासिल किए.
एक अन्य अधिकारी ने बताया कि सीपीआई (माओवादी) का प्रोपेगेंडा फैलाने, इसकी प्रचार सामग्री और साहित्य उनके कब्जे से मिला था. इसी कनेक्शन को लेकर स्टेन स्वामी को गिरफ्तार किया गया था.
स्टेन स्वामी का क्या कहना था
झारखंड जनाधिकार महासभा ने यूट्यूब पर एक वीडियो डाला था. 6 अक्टूबर को स्टेन स्वामी ने कुछ बातें बताईं थीं, जिसे 8 अक्टूबर को उनकी गिरफ्तारी वाले दिन सार्वजनिक किया गया. इसमें वो कहते हैं,
"मैं स्टेन स्वामी हूं, एनआईए मेरे पीछे लगी है. सरकार मुझे रास्ते से हटाने की कोशिश कर रही है. उसका पहला मौका था भीमा-कोरेगांव, जबकि मैं कभी भीमा-कोरेगांव गया भी नहीं. लेकिन मुझे संदिग्धों की सूची में डाल दिया गया. दो बार रेड की गई. "
एनआईए ने मुझसे 15 घंटे पूछताछ की. मेरे सामने ऐसे कई दस्तावेज रखे, जो कथित तौर पर मेरा संबंध माओवादियों से दिखाते हैं. उन लोगों ने दावा किया कि ये दस्तावेज और जानकारियां मेरे कंप्यूटर से मिली हैं. तब मैंने उन्हें कहा कि यह साजिश है. ऐसे दस्तावेज चोरी से मेरे कंप्यूटर में डाले गए हैं.स्टेन स्वामी
स्टेन स्वामी ने कहा था कि, मुझसे कहा जा रहा है कि मैं बॉम्बे (मुंबई) जाऊं. मैं 83 साल का हूं. मेरा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है.
वैसे भी झारखंड सरकार ने कोरोना को देखते हुए 65 साल से अधिक की उम्र के लोगों को सार्वजनिक स्थान पर जाने से रोका हुआ है, वे वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये हर सवाल का जवाब दे देंगे. लेकिन उनकी कोई दलील नहीं मानी गई और 8 अक्टूबर की रात उनकी गिरफ्तारी हो गई.
गिरफ्तारी का विरोध
स्टेन स्वामी की गिरफ्तार के विरोध में कई संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और नेताओं ने विरोध किया था. स्टेन स्वामी के समर्थन में दुनियाभर से आवाजें उठी थी.
"गरीबों, वंचितों और आदिवासियों की आवाज उठाने वाले 83 साल के वृद्ध ‘स्टेन स्वामी’ को गिरफ्तार कर केंद्र की भाजपा सरकार क्या संदेश देना चाहती है? उन्होंने कहा था कि अपने विरोध की हर आवाज को दबाने की ये कैसी जिद?"मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन
स्वराज इंडिया पार्टी के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने एक ट्वीट करते हुए लिखा था, ‘80 वर्ष से अधिक उम्र के पादरी, जिन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों की सेवा में बिताया, उनके साथ जो किया गया वह स्तब्ध करने वाला और निंदनीय है.’
वकील और कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने ट्वीट किया, ‘पता चला कि एनआईए फादर स्टेन स्वामी को उनके रांची स्थित आश्रम से जबरदस्ती ले गई. उनसे अधिक सज्जन और विनम्र व्यक्ति की कल्पना करना भी मुश्किल है.’
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा कि,
"फादर स्टेन स्वामी ने अपना पूरा जीवन आदिवासियों के अधिकारों के लिए लड़ते हुए बिताया है. इसलिए मोदी सरकार ऐसे लोगों को चुप कराना चाहती है, क्योंकि इस सरकार के लिए कोयला खनन कंपनियों को लाभ पहुंचाना, आदिवासियों के जीवन और रोजगार से ज्यादा महत्वपूर्ण है."
फिल्मकार और पत्रकार प्रीतीश नंदी ने कहा था कि यह बहुत ही पीड़ादायक है कि 80 साल से अधिक उम्र के पादरी, जो आदिवासी अधिकारों के लिए खड़े होते हैं, उन्हें महामारी के काल में गिरफ्तार कर लिया गया.
"केंद्र सरकार ने अभिव्यक्ति की आजादी छीन ली है. केंद्र सरकार अर्बन नक्सलवाद के नाम पर देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले बुद्धिजीवी को प्रताड़ित कर रही है और स्वामी को मामले पर फंसाने की कोशिश की गई."सामाजिक कार्यकर्ता दयामणि बरला
NIA की कार्रवाई का समर्थन
वहीं बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव और त्रिपुरा के प्रभारी सुनील देवधर ने एनआईए की कार्रवाई का समर्थन करते हुए कहा था, ‘यह अच्छी बात है कि एनआईए ने भीमा-कोरेगांव मामले में स्टेन स्वामी को गिरफ्तार कर लिया. वह प्रतिबंधित संगठन भाकपा (माओवादी) के सदस्य हैं. इससे ईसाई मिशनरियों और शहरी नक्सलियों के बीच संबंधों के बारे में और खुलासे हो सकेंगे.’
स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी के विरोध में ईसाई समुदाय
रांची के चर्च ने कहा था कि, हम भारतीय संविधान और हमारे न्यायिक संस्थानों में अपने विश्वास और विश्वास की पुष्टि करते हैं. हम सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करते हैं कि न्याय हो सकता है और नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकार की गारंटी दी जा सकती है, समाज पर लगाए गए स्वास्थ्य रक्षकों को भी कैदियों और उन आरोपियों के लिए वैध ठहराया जा सकता है.
कौन हैं फादर स्टेन स्वामी ?
फादर स्टेन स्वामी का जन्म 26 अप्रैल 1937 को तमिलनाडू के तिरुच्चिराप्पल्ली हुआ था. उनके पिता किसान थे और मां घर चलाती थीं. फादर स्टेन स्वामी मूलतः एक पादरी थे. शुरुआती दिनों में पादरी का काम किया. स्टेन स्वामी की शुरुआती पढ़ाई चेन्नई में हुई थी. बाद में वह फिलीपींस चले गए थे. पढ़ाई के सिलसिले में उन्होंने कई देशों की यात्राएं की थीं.
भारत आने के बाद उन्होंने बेंगलुरु स्थित इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट में काम किया. लेकिन लगभग 30 सालों से वह झारखंड में रहकर आदिवासियों-मूलनिवासियों के मसलों पर आवाज उठाते रहे. उन्होंने झारखंड की जेलों में विचाराधीन आदिवासी कैदियों के लिए स्पीडी ट्रालय के लिए रांची हाईकोर्ट में पीआइएल की थी.
वह सुप्रीम कोर्ट द्वारा साल 2013 में दिए गए जजमेंट के तहत "जिसकी जमीन, उसका खनिज" का समर्थन करते हैं. स्टेन स्वामी रांची के नामकुम क्षेत्र में आदिवासी बच्चों के लिए स्कूल और टेक्निकल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट भी चलाते थे. कई वर्षों से राज्य के आदिवासी और अन्य वंचित समूहों के लिए काम करते रहे.
फादर स्टेन के किए गए कामः
फादर स्टेन स्वामी झारखंड आर्गेनाइजेशन अगेंस्ट यूरेनियम रेडियेशन से जुड़े रहे जिसने 1996 में यूरेनियम कॉरपोरेशन के खिलाफ आंदोलन चलाया था जिसके बाद चाईबासा में बांध बनना रुका.
बोकारो, संथाल परगना और कोडरमा जिले के आदिवासियों के बीच काम किया.
2010 में फादर स्टेन स्वामी की किताब आयी जिसका नाम है-जेल में बंद कैदियों का सच. इस किताब में यह उल्लेख किया गया था कि कैसे आदिवासी नौजवानों को नक्सली होने के झूठे आरोपों में जेल में डाला गया.
2014 में उनकी एक और रिपोर्ट सामने आई जिसमें कहा गया कि तीन हजार गिरफ्तारियों में 98 फीसदी मामलों में आरोपी का नक्सल आंदोलन से कोई संबंध नहीं निकला. इसके बावजूद ये नौजवान जेल में बंद रहे.
फादर स्टेन स्वामी 1996 में बने पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शिड्यूल्ड एरियाज एक्ट) को दरकिनार करने का मुद्दा भी उठाते रहे हैं. यह वह कानून है जिसके तहत पहली बार आदिवासी समुदायों को ग्राम सभा के माध्यम से स्वशासन का अधिकार दिया गया.
भीमा कोरेगांव का मामला क्या है?
महाराष्ट्र में पुणे के भीमा कोरेगांव में 1 जनवरी 2018 को दलित समुदाय के लोगों का एक कार्यक्रम हुआ. यलगार परिषद ने इस सम्मेलन का आयोजन किया. इस दौरान हिंसा भड़क उठी थी. भीड़ ने तमाम वाहन जला दिए थे. दुकानों-मकानों में तोड़फोड़ की गई थी. हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हुई, कई लोग जख्मी हो गए. इस मामले में माओवादियों से संपर्क रखने के आरोप में कई लोगों को गिरफ्तार किया गया था.
एनआईए ने गुरुवार को भीमा कोरेगांव मामले में ट्राइबल राइट्स एक्टिविस्ट स्टेन स्वामी को गिरफ्तार कर लिया. 83 साल के स्वामी को रांची (झारखंड) के नामकुम के बगाईचा स्थित आवास से गिरफ्तार किया गया है. स्वामी का नाम उन आठ लोगों में शामिल है, जिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की कथित साजिश रचने और भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा को कथित तौर पर भड़काने के आरोप हैं.
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