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हम कोरोना को हरा सकते हैं, अगर लॉकडाउन में ये कर लें

क्या भारत 21 दिन के लॉकडाउन से कोरोना पर काबू पा लेगा?

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वीडियो एडिटर: संदीप सुमन, मोहम्मद इब्राहीम

ये जो बाल्टी है ना, ये बाल्टी इंडिया है. करीब डेढ़ अरब लोग. और ये जो छोटा सा कन्टेनर है, इसे आप स्वास्थ्य सुविधाएं मान लीजिए. हमारे डॉक्टर, नर्स, अस्पताल, बेड , वेंटिलेटर सब समझिए इसी में हैं और आज मैं अपने घर से ही इस बाल्टी और इस छोटे से कन्टेनर के जरिए आपको भारत में कोरोना की समस्या के बारे में समझाने की कोशिश करता हूं.

महामारी की क्या स्थिति है, हम क्या कर रहे हैं, लॉकडाउन के दौरान क्या हो रहा है और इसके बाद क्या हो सकता है?

सबसे पहले ये समझ लीजिए कि भारत में जब कोई बीमार पड़ता है तो वो अस्पताल या डॉक्टर के पास जाता है.

इस तरह ये लोग हैं जो इलाज के लिए जा रहे हैं. अगर हेल्थकेयर सिस्टम मरीजों को संभाल पाता है तो ये कुछ ऐसा दिखता है. लोग आ रहे हैं, इलाज पा रहे हैं, ठीक हो रहे हैं और ठीक होकर इस संकरे रास्ते से बाहर निकल रहे हैं. सबकुछ आराम से हो रहा है, कोई दिक्कत नहीं है... लेकिन अगर बीमार पड़ने वालों की संख्या अचानक बढ़ जाए, तब ये होता है.

इस छोटे से कन्टेनर में बहुत थोड़े समय में बहुत सारे आ जाते हैं तो संभालना मुश्किल हो जाता है. ये जो बाहर जा रहा है ये लोगों का मरना है, यही जनवरी में चीन के वुहान में हुआ, यही इस वक्त इटली, स्पेन, फ्रांस, ईरान और अमेरिका में हो रहा है. लेकिन भारत की क्या स्थिति है? क्या है इंडिया कि बाल्टी स्टोरी?   

असल में यही भारत की चुनौती है. भारत की बड़ी सी बाल्टी, बहुत बड़ी- 1.4 अरब लोग और हमारा ये वाला कन्टेनर छोटा, बहुत छोटा है, हमारे पास बेड की कमी है. वेंटिलेटर की कमी है. हमारे डॉक्टर, हमारी नर्स, इन सबके पास PPE की कमी है और हमारे यहां ऐसे डॉक्टरों और नर्सों की भी कमी है, जिन्हें ICU का अनुभव है. शहरों से दूर गांवों में तो ये कमी और ज्यादा है.

इस वक्त भारत में यही उफान है. मौतों का मौजूदा आंकड़ा भले ही कम लग रहा हो, लेकिन डर है कि ये आंकड़े अचानक बढ़ सकते हैं. महामारी पर नजर रखने वाले, पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट सब नजर रख रहे हैं. अलग-अलग देशों में कोरोना संक्रमित मामलों की संख्या किस रफ्तार से दोगुनी हो रही, कितने दिन लग रहे हैं 40 से 80 और 80 से 160 होने में?

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अमेरिका में मार्च से ही हर दूसरे-तीसरे दिन मामले दोगुने हो रहे हैं. 3 मार्च को अमेरिका में महज 124 पॉजिटिव केस थे और 30 दिन बाद अमेरिका में सबसे ज्यादा संक्रमित लोग हैं- ढाई लाख से ज्यादा.

इसकी तुलना में भारत में पिछले महीने से ही पॉजिटिव मामलों की संख्या हर चौथे-पांचवे दिन दोगुनी हो रही है. 4 मार्च को 30 से भी कम मामलों से बढ़कर यहां संख्या करीब 3 हजार हो गई है. अभी 3 हजार केस को देखकर लग रहा है कि हम संभाल लेंगे, लेकिन इसी रफ्तार से भी चले तो अप्रैल के अंत तक यहां 80, 000 लोग संक्रमित होंगे और ये असंभव नहीं है.

यही अमेरिका में हुआ, इटली में हुआ और स्पेन में भी. शुक्र है कि भारत ने कोरोना ग्रसित देशों से लोगों के आने पर काफी पहले रोक लगा दी. विदेश यात्रा करने वालों पर सोशल डिस्टेंसिंग लागू किया, उन्हें आइसोलेशन में डाला गया. कॉन्टैक्ट हिस्ट्री वाले हर शख्स की पहचान और उसकी जांच तेजी से की गई. हमारी आबादी भी यंग है, तो उनमें बेहतर प्रतिरोध क्षमता है. लेकिन हमारी लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के अलावा हमारी टेस्टिंग की रणनीति पर भी सवाल उठे हैं.

मुख्य रूप से इस पर सवाल उठाया गया कि हमने बहुत कम टेस्ट किए हैं और पूरे देश में एक से टेस्ट नहीं हुए हैं. जैसे ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों में महज कुछ सौ टेस्ट हुए. तो हो सकता है कि वहां ज्यादा मामले हों, लेकिन हमें पता नहीं. जो दूसरा बड़ा कदम हमने उठाया है, वो है 21 दिन का लॉकडाउन. 21 दिन की सोशल डिस्टेंसिंग. इससे ग्राफ सपाट करने में मदद मिलेगी. मतलब कि इससे लोगों के बीमार पड़ने की रफ्तार में कमी आएगी.

लेकिन इसमें भी एक बात है. शहरी मिडिल क्लास इस लॉकडाउन का पालन कर रहा है. लेकिन हम सबने तस्वीरें देखी हैं- खाने के लिए कतार में खड़े हजारों शहरी गरीबों की. बस अड्डों पर अपने गांव जाने के लिए मजदूरों की भीड़. शहरों से गांवों की तरफ जाता मजदूरों का हुजूम. उनके लिए सोशल डिस्टेंसिंग नामुमकिन है.

तो कोरोना को हराने में ये लॉकडाउन कितना कारगर होगा. अभी कहना मुश्किल है.

ये भी याद रखना चाहिए कि लॉकडाउन की बड़ी आर्थिक कीमत है. उद्योग, व्यापार, आयात-निर्यात, खेती-बाड़ी. सबकुछ रुक गया है. कोई भी इकनॉमी ऐसे लॉकडाउन को लंबे समय तक नहीं झेल सकती है. तो अभी हम नहीं कह सकते कि कब, लेकिन आज न कल इस लॉकडाउन को खत्म करना ही होगा.

ऐसे में जो जरूरी है वो ये है कि ये जो इंडिया है ना, उसे इस 3 हफ्ते के लॉकडाउन में अपने इस छोटे कन्टेनर को बड़ा करना चाहिए.

हमें युद्ध स्तर पर अपने हेल्थ सिस्टम को मजबूत करना चाहिए. ज्यादा आइसोलेशन बेड, ज्यादा वेंटिलेटर, ज्यादा PPE, डॉक्टरों, नर्सों के लिए ज्यादा साधन जुटाने होंगे. और खासकर ये सुविधाएं हमें गांवों और छोटे शहरों में पहुंचाने होंगे, जहां कोरोना वायरस कभी न कभी दस्तक देगा.

अगर हम ये कर लेते हैं तो लॉकडाउन के बाद भी रोज नए पॉजिटिव केस आएंगे लेकिन इस छोटे कन्टेनर में उनके आने की रफ्तार कुछ ऐसी होगी कि हम संभाल पाएंगे. ऐसी रफ्तार, जिसमें हम लोगों का इलाज कर पाएंगे, मौतों की संख्या घटा पाएंगे.

ये जो इंडिया है ना. ये कोरोना को हरा सकता है. उम्मीद है कि ऐसा करने में हम दूसरे देशों से कम कीमत चुकाएंगे. सुरक्षित रहिए.

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