यह आर्टिकल पहली बार 9 नवंबर 2019 को प्रकाशित हुआ था. COVID-19 महामारी के कारण 20 महीने से अधिक समय तक बंद रहने के बाद 17 नवंबर 2021 को करतारपुर कॉरिडोर को फिर से खोलने के बाद ये आर्टिकल दोबारा पोस्ट किया जा रहा है.
वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
करतारपुर कॉरिडोर के उद्घाटन के एक दिन बाद भारत से पाकिस्तान, सरहद पार क्विंट ने करतारपुर साहिब तक श्रद्धालुओं के साथ सफर किया था. हमने श्रद्धालुओं के साथ-साथ पाकिस्तानियों से बात कर उनके उत्साह को जाना. दोनों देशों की ओर से किए गए सुरक्षा इंतजाम का जायजा लिया.
करतारपुर में पाकिस्तानी पोस्ट के इंचार्ज सर सैय्यद फुरहान ने क्विंट से बात करते हुए कहा,
“मेरे दादा जी जब तक जिंदा रहे गुरदासपुर का नाम ले लेकर रोते रहे. एक दिन भी ऐसा नहीं गया जब उन्होंने गुरदासपुर का नाम नहीं लिया हो. हम भारतीयों के हाथ चूम लेना चाहते हैं. मुझे वहां की मिट्टी से मोहब्बत महसूस होता है.”
भारत-पाक करतारपुर कॉरिडोर के जरिये गुरुद्वारा करतारपुर साहिब की यात्रा के लिए आवेदन करने के लिए पासपोर्ट जरूरी है. हालांकि इसके लिए वीजा लेने की जरूरत नहीं है, लेकिन यात्री को कम से कम 15-20 दिन पहले prakashpurb550.mha.gov.in/kpr वेबसाइट पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा.
जिस तारीख के लिए आवेदन की जाएगी उससे 4 दिन पहले आवेदक को गृह मंत्रालय की ओर से कंफर्मेशन दी जाएगी.
इन डॉक्यूमेंट के अलावा, श्रद्धालुओं को पाकिस्तान की सरकार द्वारा करतारपुर साहिब दर्शन के लिए तय किए गए फीस, 20 डॉलर का भुगतान करना होगा.
सिख श्रद्धालुओं के लिए करतारपुर कॉरिडोर खुल गया है. 9 नवंबर को उद्घाटन के बाद, आम श्रद्धालुओं के लिए ये रविवार, 10 नवंबर को खोला गया.
मान्यता है कि सिखों के प्रथम गुरु गुरुनानकदेव जी अपनी 4 प्रसिद्ध यात्राओं को पूरा करने के बाद 1522 में परिवार के साथ करतारपुर में रहने लगे थे. यहीं उन्होंने ‘नाम जपो, किरत करो और वंड छको‘ यानी नाम जपो, मेहनत करो और बांटकर खाओ का संदेश दिया था.
उन्होंने अपने जीवन के आखिरी 17 साल 5 महीने 9 दिन साल वहीं गुजारे. 22 सितंबर 1539 को गुरुदेव ने आखिरी सांस ली. 1947 के भारत-पाक बंटवारे में वो पवित्र स्थान पाकिस्तान के हिस्से में चला गया.
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