वीडियो एडिटर: मो. इरशाद आलम
साल 2002 के गुजरात दंगों की वजह से हजारों लोगों की जिंदगी पर असर हुआ था. कुतुबुद्दीन अंसारी और अशोक परमार उनमें से ही दो लोग हैं. अशोक परमार खुद दंगों में शामिल थे और इनकी एक तस्वीर आज भी गूगल सर्च में सबसे ऊपर आती है, जिसमें पीछे आग लगी हुई है और अशोक के हाथ में तलवार है और वो चिल्लाते हुए दिख रहे हैं. वहीं दूसरी तस्वीर अंसारी की सामने आई थी, जिसमें वो दंगाइयों से रहम की गुहार लगाते हुए नजर आ रहे थे.
खबर है कि अब दोनों पक्के दोस्त बन गए हैं. अशोक परमार ने जूते चप्पलों की दुकान खोली है. दुकान का नाम 'एकता चप्पल घर' है. अशोक परमार और कुतुबुद्दीन अंसारी के नाम गुजरात दंगों के बाद इतने पॉपुलर नहीं हुए थे लेकिन दोनों अपनी तस्वीरों की वजह से गुजरात दंगों के ‘पोस्टर बॉय’ बन गए.
दंगों को 17 साल बीत चुके हैं और अब दोनों पक्के दोस्त हैं. एकता चप्पल घर के उद्घाटन में कुतुबुद्दीन अंसारी भी पहुंचे थे.
‘‘तुमने नया काम खोला है, मेहनत करना अल्लाह तुम्हारे साथ है.’’कुतुबुद्दीन अंसारी( अशोक से फोन पर बात करते हुए)
कैसे दंगों के दौरान वायरल हुई तस्वीरों ने बदली दोनों की जिंदगी?
अशोक परमार को उनकी तस्वीर की वजह से जेल हो गई थी. अशोक परमार बताते हैं, ‘‘दंगों से पहले मैं बीजेपी का समर्थक था. हर चुनाव में बीजेपी का प्रचार करता था. लेकिन दंगों के दौरान बीजेपी और विश्व हिंदू परिषद ने मुसलमानों पर बहुत जुल्म किए. खासकर नरोदा पाटिया और गुलबर्गा में और उसने मुझे बदलकर रख दिया.’’
‘‘2002 से 2012 तक मेरी जिंदगी एकदम दयनीय हो गई थी. कोर्ट की कार्यवाही काफी लंबी चली. मुश्किलें खत्म होती कभी नजर नहीं आई.’’अशोक परमार
अंसारी का रिएक्शन इससे अलग था. अंसारी ने कहा, ''अगर मैं उस दिन मर गया होता तो मैं सोचता हूं कि क्या मेरी तस्वीर का वैसा ही असर आज भी वैसा ही होता क्या? जब लोग मुझे पहचान जाते हैं तो मेरे पास आते हैं और हालचाल पूछते हैं.''
कैसे हुई कुतुबुद्दीन और अशोक की मुलाकात ?
दोनों की मुलाकात साल 2012 में केरल में सीपीएम के एक कार्यक्रम में हुई. अंसारी बताते हैं कि ''जब अशोक मुझसे मिला तो सबसे पहले उसने माफी मांगी. दंगों के बारे में वो काफी बुरा महसूस कर रहा था. वो ग्लानि से भरा हुआ था और कह रहा था कि हमारे देश में ऐसा कुछ नहीं होना चाहिए.''
अशोक बताते हैं, ''हमारी पहली मुलाकात के बाद हम संपर्क में रहे और मिलते रहे. मैं जिस सड़क पर मोची का काम करता था ये वहां आते थे हम चाय पीते थे.''
दोनों का मानना है कि उनकी दोस्ती भारत की असली पहचान है.
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