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बेरोजगारी चरम पर है, तो लोगों ने नौकरी ढूंढना बंद क्यों कर दिया?

नोटबंदी के बाद लेबर पार्टिसिपेशन रेट गिरा और इसकी सबसे ज्यादा चोट महिलाओं पर पड़ी है

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भारत में नौकरियों की कमी है, ये सबको पता है. एक नया तथ्य ये है कि लोगों को नौकरी मिलने की उम्मीद खत्म होती जा रही है इसलिए वो नौकरी मांगने आ ही नहीं रहे हैं. लोगों के जॉब मार्केट में आने को ही लेबर पार्टिसिपेशन रेट कहते हैं. नोटबंदी के बाद ये काफी गिर गया है और सबसे ज्यादा मार पड़ी है महिलाओं पर. वो नौकरी मांगने आ ही नहीं रही हैं. इसी महीने जब रेलवे की 1.2 लाख नौकरियों के लिए 2.37 करोड़ लोग लाइन में लगे तो जॉब क्राइसिस की ताजा तस्वीर सामने आई.

इसी मुद्दे पर क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया ने अर्थशास्त्री महेश व्यास से बातचीत की है. महेश व्यास सेंटर फॅार मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के एमडी और सीईओ हैं. CMIE इस देश की बेहद प्रतिष्ठित रिसर्च संस्था है. महेश व्यास ने जॉब क्राइसिस की ताजा तस्वीर को तथ्यों के साथ समझाया है.

पेश है उस बातचीत का हिस्सा-

देश में बेरोजगारी पर चल रही बहस को कैसे समझा जाए?

मेरे खयाल से बेरोजगारी की बात छोड़ दें. सबसे अहम चीज जो देखने के लिए है वो है- लेबर पार्टिसिपेशन रेट कितना है? लोग कितनी मात्रा में नौकरी ढूंढने के लिए निकल रहे हैं? लेबर पार्टिसिपेशन रेट आज 43 परसेंट है. क्योंकि अगर घर के बाहर एक ठेला लगा कर पकौड़े तले जा रहे हों तब भी हम उसे रोजगार ही मानते हैं. अगर कोई अपने खेत में काम कर रहा है या कोई और ऐसा काम कर रहा है जो फॉर्मल नौकरी नहीं है तब भी हम उसे नौकरी का हिस्सा, लेबर मार्केट का हिस्सा मानते हैं. लेबर मार्केट में हम उन लोगों को हिस्सा नहीं मानते हैं जो लोग ये कहते हैं कि हम नौकरी नहीं करना चाहते या हम अभी नौकरी ढूंढ नहीं रहे हैं. इस आंकड़े को 50 परसेंट के आस-पास होना चाहिए. वर्ल्ड में ये आंकड़ा 65 परसेंट के आस-पास रहता है. हमारा ये नंबर 45 परसेंट से भी कम है. इसके बाद आता है बेरोजगारी दर, जो अभी बढ़ता जा रहा है. अभी ये रेट 6.7 परसेंट के आस-पास है. इन दोनों आंकड़ों को देखना जरुरी है. 43 परसेंट लोग नौकरी ढूंढने आ रहे हैं और उनमें से 7 परसेंट लोगों को नौकरी नहीं मिल रही है.

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दूसरे देशों में जो लेबर पार्टिसिपेशन रेट 60 परसेंट से ज्यादा है, वो अपने देश में इतना कम क्यों है? क्या कोई टिपिंग पॅाइंट रहा है जिसके बाद से बड़ी गिरावट देखने को मिली है?  सर्वे में नोटबंदी को विलेन बताया गया है.  नोटबंदी के बाद लेबर पर्टिसिपेशन घटा और इसकी सबसे ज्यादा चोट महिलाओं पर पड़ी, आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?

नोटबंदी के पहले ये 47-48 परसेंट हुआ करता था. 5 परसेंट बहुत बड़ा नंबर होता है. आप सोचिए, 45 करोड़ के 5 परसेंट ने नौकरी ढूंढना बंद कर दिया. हमने ये देखा है कि लेबर पार्टिसिपेशन रेट कम तो हुआ है लेकिन ये कहां हुआ है? ये हम खोजने निकले थे. हमने देखा कि क्या पढ़े-लिखे लोगों ने या जो युवा हैं या महिलाओं ने या ग्रामीण क्षेत्रों, शहर के लोगों ने नौकरी ढ़ूंढ़ना बंद कर दिया है? इस तरह से हमने डेटा जुटाए तो हमने पाया कि महिलाओं ने लेबर पार्टिसिपेशन से अपने आप को हटा लिया है. काफी मात्रा में जो लोग हटे हैं वो अधिकांश महिलाएं ही हैं और मर्दों ने अपनी मात्रा कम नहीं की. एक बात हमें माननी ही होगी कि नोटबंदी का असर सिर्फ महिलाओं पर पड़ा है और पुरुषों पर नहीं पड़ा है.

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नौकरी के मौके घटे तो इसका बड़ा भयानक नतीजा ये रहा कि महिलाओं को अपने मौके की बलि देनी पड़ी. उन्होंने लेबर मार्केट से ही खुद को बाहर कर लिया और भी वजहें हो सकती हैं लेकिन महिलाओं ने पतियों या भाईयों के लिए जॉब मार्केट को छोड़ दिया ये काफी दुखद है.

भारत सबसे जवान देश है इसलिए सबसे ज्यादा बेरोजगारी के शिकार भी यहीं हैं. हाल ही अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने एक सर्वे किया स्टेट आॅफ वर्किंग इंडिया 2018. इस रिपोर्ट का कहना है कि बेरोजगारों में 16 % जवान लोग हैं. बेरोजगारी का आंकलन वर्किंग एज की आबादी यानी 15 से 64 साल के लोगों के बीच किया जाता है जिनके पास रोजगार है, उनकी आमदनी काफी कम है. 82 % मर्द 92 % औरतें 10 हजार रुपए प्रति माह से भी कम पर गुजारा करते हैं. देश में ग्रोथ बिना रोजगार बढ़ाए हो रहा है. चूंकि नौकरी नहीं है इसलिए लोग वर्कफोर्स से बाहर घर पर बैठ रहे हैं और ये गंभीर चिंता और चेतावनी का विषय है.

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