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फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज्म ‘हम देखेंगे...’ हरियाणवी में

फ़ैज़ ने ‘हम देखेंगे...’ नज्म 1979 में पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक के संदर्भ में लिखी थी

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वीडियो प्रोड्यूसर: त्रिदीप के मंडल

वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया

गायक: इंदौरा ब्रदर्स

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने ‘हम देखेंगे...’ नज्म 1979 में पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह जिया-उल-हक के संदर्भ में लिखी थी. वो पाकिस्तान में सैन्य शासन के विरोध में थे. अपने क्रांतिकारी विचारों के कारण वो जाने जाते थे और इसी कारण वे कई सालों तक जेल में रहे. 'हम देखेंगे..' नज़्म विरोध जताने वालों के लिए एंथेम है. ये आज के दौर में भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी तब थी. इसका कई भाषाओं में अनुवाद भी किया गया है.

फ़ैज़ के जन्मदिवस के मौके पर उनके इस नज़्म का हरियाणवी वर्जन सुनिए. जिसका हरियाणा के मशहूर कवि ने अन्ना हजारे के दिल्ली आंदोलन के दौरान अनुवाद किया था.

हम देक्खांगे....हम देक्खांगे

सै पक्का के हम भी देक्खांगे

वो दिन के जिसका वादा सै,

जो भाग म्है म्हारै लिख्या सै।

*हम देक्खांगे......हम देक्खांगे*

सै पक्का के हम भी देक्खांगे..

जद जुल्म सितम के पहाड़ ये बड़ले,

रूई की ज्यूं उड़ जावैंगे

जद रहीसां के पैरां तले की

धरती धड़ धड़ धड़कैगी।

राज करणीयां के सर पै

बिजली कड़ कड़ कड़कैगी।

*हम देक्खांगे......हम देक्खांगे*

सै पक्का के हम भी देक्खांगे..

जद पुतले कसाई राजा के

चौगरदू जलाए जावैंगे।

साफ अर सुथरे माणस

गद्दियां पै बिठाएं जावैंगे।

सब मुकट उछाले जावैंगे।

सब ठाठ निकाले जांवैंगे।

*हम देक्खांगे......हम देक्खांगे*

सै पक्का के हम भी देक्खांगे..

बस नाम रहवैगा उस दाता का,

जो खू रह्या सै, पर हाजिर सै

जो दिक्खै कोन्या पर देक्खै सै।

अर फेर उठैगा सच सूं का नारा।

जो तै भी सै अर मैं भी सूं।

फेर राज करैगी मिलकै जनता।

जो तै भी सै अर मैं भी सूं।।

*हम देक्खांगे.....हम देक्खांगे.*

सै पक्का के हम भी देक्खांगे..

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