वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज
यूपी में धर्म परिवर्तन पर अध्यादेश के बारे में दिग्गज कानूनी विशेषज्ञ फैजान मुस्तफा का कहना है कि ये कानून मुसलमानों से ज्यादा महिलाओं के खिलाफ है.
फैजान मुस्तफा कहते हैं कि मुझे अफसोस ये है कि ये अध्यादेश हिंदुत्व की नैरेटिव, जो हमारी कल्चरल ट्रेडिशन रही है उसको भी खत्म करती है. हमारे यहां पूरा स्वयंवर का प्रवधान था, उसमें दुल्हन को अपने पति का चुनने की आजादी थी. अब हम कह रहे हैं कि हमारी हिंदू औरतों को कोई बेवकूफ बना सकता है, वो अपने फैसले नहीं ले सकतीं हैं.
हादिया मामले में हाईकोर्ट का कहना था कि वो उतनी मैच्योर नहीं है कि अपने फैसले ले सके. ये इतना बड़ा फैसला है. इसमें माता-पिता की रजामंदी चाहिए.
मेरी समझ में ये किसी लव जिहाद या किसी समुदाय को टारगेट करने का मामला नहीं, ये हिंदू महिलाओं की एजेंसी, ऑटोनॉमी, सेक्सुअलिटी के खिलाफ कानून है और उन्हें इसका सबसे ज्यादा विरोध करना चाहिए. हिंदुओं के साथ-साथ मुस्लिम उलेमा भी नहीं चाहते की दूसरे धर्म में शादी हो.
ये अध्यादेश संविधान को दोबारा से लिखने के बराबर है. संविधान ने एक व्यक्ति को अधिकार दिया है और उसकी स्वतंत्रता, स्वायत्तता को छिनने का अधिकार एक राज्य को बिल्कुल भी नहीं है.
धर्म परिवर्तन करना है तो आप जिलाधिकारी के पास दो महीने पहले एप्लीकेशन देंगे, वो इंक्वायरी करेंगे और फिर आपको इजाजत मिलेगी. आप एक सेक्युलर देश हैं जहां धर्म आपका निजी मामला है.
संविधान का पार्ट 3 हमें मौलिक अधिकार देता है. उसमें सबसे खास बात ये है कि हम एक शख्स को इकाई मानते हैं. यानी की समाज से उसे हरी झंडी की जरूरत नहीं है. इस लॉ के मुताबिक समाज जिसे स्वीकृति देगा वही फैसले मान्य होंगे. ये संविधान को फिर से लिखना हुआ.
सारे धर्म के पर्सनल कानूनों में ये बात है कि अगर किसी भी तरह के धोखे से शादी की गई है तो वो शादी रद्द की जा सकती है. तो आपके कानून और इंडियन पीनल कोड में ये प्रावधान है .
एक ऐसे समय में जब देश इतनी चुनौतियों से जूझ रहा है उस वक्त एक अध्यादेश लाकर कानून बनाना, ये अध्यादेश की शक्तियों का भी दुरुपयोग है. कोई शादी के लिए धर्म परवर्तन करे या बिना किसी वजह से धर्म परिवर्तन करे, ये उसकी इच्छा है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो जजों की बेंच के फैसले के बाद यूपी सरकार का इस अध्यादेश को लाना न्यायपालिका की भी अवमानना है.
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