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किसान प्रदर्शन: कविता में सुनिए किसानों के ‘मन की बात’

किसानों की बात कविता के साथ

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वीडियो एडिटर:

वीडियो प्रोड्यूसर: दिव्या तलवार

दिल्ली हरियाणा बॉर्डर पर कृषि कानून के खिलाफ पुलिस की मार, वाटर कैनन का सामना कर रहे किसानों की बात सुनिए, एक कविता के जरिए जानिए उनकी बात भी...

खौफ क्यों है इतना हमारा...

कि आवाज भी सुनना चाहो न तुम!

जब हक की बात करें हम यूं...

तो बेआवाज करना चाहो तुम!

अब जो आजाद देश है हमारा...

फिर क्यों तुम अंग्रेजी हुकूमतों से लगते हो...

जो बुलंद हो कर कह रहे हैं हम बात हमारी

तो हम पर लाठियां चलाओ क्यों तुम!

उस देश के नागरिक हैं, जहां 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया गया

अब चाहे तुम पानी की तोपों से हमें रोकना

या लाठियों के खौफ से हमें डराना

लेकिन हम तो वैसे ही खून-पसीने के वफादार हैं

ये चीजें हमें कैसे तड़पाएंगी!

मौसम की बेरुखी सर्दी भी, हम खेतों को जोतने वालों को कैसे डराएगी!

अरे ये जो तुम्हारी आंसुओं की गैस है ये हमें क्या रुलाएंगी

इन आंखों में पहले ही आंसू सूख चुके हैं

रख लो इन्हें

किसी और विरोध को बेआवाज करने के लिए ये तुम्हारे काम आएंगी

किस चीज के गुनहगार हैं ये तो जरा बतलाते

न ही चोर हैं, न ही फरेबी

किसान हैं तुम्हारे लिए अनाज हैं उगाते

अगर इंसानी हक की बात करना गुनाह है

तो इन हुकूमतों से फरेब की बू आती है

किसी अदृश्य बेड़ियों में हमें जकड़ने की अनहोनी सी नजर आती है

जो कर सको हमारे लिए कुछ

तो हमारे साथ अपनी भी आवाज बुलंद करना

बात रखने का हमें भी मिले हक...

ये फरमान नजर करना

फिर से पूछ रहा हूं,

खौफ क्यों है इतना हमारा कि हमारी आवाज भी न सुनना चाहो न तुम...

जब हक की बात करें हम यूं...

तो बेआवाज करना चाहो क्यों!

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