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लाल किला पर कोहराम, शोर वाली सुर्खियों में दब गए असल सवाल

देश की धरोहर लाल किले में प्रदर्शनकारी अंदर कैसे घुसे? तिरंगा तक क्यों उन्हें पहुंचने दिया गया?

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वीडियो एडिटर- पुनीत भाटिया

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"ब्लैक डे' फॉर द रिपब्लिक"

"ट्रैक्टर परेड ने रौंदा भरोसा, देश शर्मसार"

"प्रदर्शनकारियों ने लाल किले की रेखा को पार किया" ...

"गणतंत्र की गरीमा पर प्रहार"

26 जनवरी 2021 को किसानों की ट्रैक्टर परेड में हुई हिंसा, लाल किला के प्राचीर पर धार्मिक झंडे लगाने और पुलिस के साथ झड़प के बाद देश के अखबारों ने ऐसी ही हेडलाइन लगाई थी. न्यूज चैनलों पर एंकर किसानों को दंगाई, आतंकी, गुनहगार सब कह रहे थे, लेकिन इन सब 'एजेंडे' के बीच कुछ सवालों को जानबूझकर या रॉकेट साइंस समझकर भोली-भाली मीडिया ने छोड़ दिया.

सवाल है कि देश की राजधानी दिल्ली सबसे सुरक्षित जगहों में से एक है, गणतंत्र दिवस के दिन सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होते हैं. तोप, गोले, टैंक, फाइटर प्लेन की नुमाइश होती है. फिर देश की धरोहर लाल किले में प्रदर्शनकारी अंदर कैसे घुसे? तिरंगा तक क्यों उन्हें पहुंचने दिया गया? किसान संगठन जानते थे कि कुछ ग्रुप लाल किला जाने की बात कर रहे हैं फिर क्यों नहीं रोका?

गणतंत्र दिवस को गण यानी पब्लिक की बात करने वाले और तंत्र चलाने वाले सब फेल हुए, और इसे रिपोर्ट करने में गणतंत्र को रिपोर्ट करने वाला तथाकथित देशप्रेमी मीडिया भी फेल हुआतो हम पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?

दिल्ली की कड़कड़ाती ठंड में पानी की बौछार, आंसू गैस के गोले, डंडे, बारिश, मीडिया के जरिए खालिस्तानी, भटके, गुमराह जैसे तीर झेल चुके किसानों के आंदोलन पर आखिरकार हिंसक होने का टैग लग ही गया. रिपब्लिक डे पर किसान ट्रैक्टर परेड के दौरान दिल्ली के ITO पर ट्रैक्टर से पुलिस पर हमला हो या लाल किले पर धार्मिक झंडे लगाने हों या हिंसा करना हो, हर तरफ किसानों की आलोचना हो रही हैं. किसान संगठन भी इस तरह की हरकतों के लिए माफी मांग रहे हैं. आंदोलन के भविष्य पर सवाल है साथ ही किसान नेताओं पर कार्रवाई की मांग हो रही है. और एक्शन की शुरुआत भी हो चुकी है

पुलिस और सरकार अब एक्शन में है, एफआईआर, लुक आउट नोटिस, हिरासत और गिरफ्तारी का दौर शुरू है. दो महीने से पिज्जा और बिरयानी के नाम पर बदनाम करने वाली मीडिया भी खुलकर बैटिंग कर रही है. लेकिन कोई ये सवाल नहीं पूछ रहा कि ये सब क्यों हुआ? कैसे हुआ? क्यों होने दिया गया?

सरकार कहां हुई फेल

किसान 3 नए कृषि कानून को हटाने की मांग कर रहे थे, इसपर किसान आर सरकार के बीच 10 राउंड बातचीत भी हुई. लेकिन फिर बातचीत रुक गई.

टॉप लेवल से बातचीत का सिलसिला क्यों खत्म कर दिया गया? कोई हल क्यों नहीं निकला. एक तरफ सरकार बातचीत करती दूसरी तरफ उनके नेता, मंत्री किसानों को खालिस्तानी बताते. ये कैसी बातचीत थी? हर चीज पर बारीक नजर रखने वाले पीएम मोदी क्यों नहीं दखल देते. कोरोना में इतनी भीड़, ठंड में ठिठुरते किसान, क्या उन्हें ये बड़ी समस्या नजर नहीं आती?

दिल्ली पुलिस से सवाल

अब सवाल दिल्ली पुलिस से और दिल्ली पुलिस की बागडोर संभालने वालों से. जब दिल्ली पुलिस के पास ये जानकारी थी कि 25 जनवरी की रात कुछ लोगों ने दिल्ली में घुसने की बात कही थी, दिल्ली पुलिस के बताए रूट को मानने से इनकार किया था? फिर किसान संगठन को क्यों नहीं रोका?

  • जब प्रदर्शनकारी दिल्ली में घुस रहे थे तो पेशेवर तरीके से निपटने की कोई पहल क्यों नहीं की गई?
  • खेत से लेकर ऊबड-खाबर रास्तों पर दौड़ने वाली ट्रैक्टर को रोकने के लिए बसों की बैरिकेडिंग क्यों की गई?
  • आपने ITO के पास आंसू गैस के गोले भी छोड़े, डंडे भी बरसाए फिर लाल किले पर क्यों नहीं रोका.
  • सिंघु बॉर्डर से सीधा रास्ता लाल किला का था, और प्रदर्शनकारियों की भीड़ उसी रास्ते से लाल किला पहुंची. फिर इन्हें रास्ते में क्यों नहीं रोका गया?
  • जब पहली बार किसान 26 नवंबर को दिल्ली में घुसना चाह रहे थे तब तो रास्तों में गढ्ढे से लेकर जंजीरों में पत्थर के बैरिकेड तक बांध दिए गए थे, अब वो इंतजाम क्यों नहीं दिखा?
  • लाल किला पर इतनी सुरक्षा होती है फिर प्रदर्शनकारी अंदर कैसे घुसे? जब बिना टिकट के कोई अंदर नहीं घुस पाता तो इतनी आसानी से प्रदर्शनकारी तिरंगा तक कैसे पहुंच गए? क्यों लाल किले पर पुलिस की मामूली बंदोबस्त देखने को मिली? क्या ये सब होने दिया गया?
  • ठीक एक साल पहले नॉर्थ ईस्ट दिल्ली में हुई हिंसा में 50 लोगों की मौत ने भी दिल्ली पुलिस को हिंसा से निपटने के लिए ट्रेनिंग नहीं दी?
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किसान संगठनों को भी देने होंगे जवाब

किसान नेता आरोप लगा रहे हैं कि सरकार ने एक साजिश के तहत किसानों को बदनाम करने की कोशिश की है लेकिन कुछ सवाल किसान नेताओं से भी है.

आप लोगों ने ट्रैक्टर परेड के लिए लिखित में रास्ते से लेकर पूरी प्लानिंग की बात की थी. आप लोग पिछले 2 महीनों से मंच के मालिक थे, फिर अचानक 25 जनवरी को आपकी बात क्यों नहीं मानी गई? जब प्रदर्शनकारी तय रास्ते से भटक रहे थे तब आप उन्हें क्यों नहीं रोक पाए, समझा पाए? आप लोग दीप सिद्धू से लेकर दूसरे लोगों पर आरोप तो लगा रहे हैं, लेकिन आपने इन लोगों को क्यों नहीं रोका? और आपने रोकने से भी लोग नहीं रुके तो आपने 25 की रात को ही रैली क्यों नहीं रद्द की? कुल मिलाकर 26 जनवरी को सब फेल हुए, पुलिस, सरकार, किसान संगठन. इसलिए हम उन सबसे पूछ रहे हैं जनाब ऐसे कैसे?

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