‘किसान तू आत्महत्या मत कर...’ मराठी भाषा दिन के मौके पर तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले एक छात्र ने ये कविता अपने स्कूल में पढ़ी लेकिन उसी रात उस बच्चे के किसान पिता मल्हारी भातुले ने आत्महत्या कर ली. दिल को दहला देने वाली ये घटना है महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के पाथर्डी की, जो ये सवाल भी पूछ रही है की उद्धव ठाकरे सरकार की कर्जमाफी योजना के बाद भी क्यों महाराष्ट्र में नहीं रुक रहा है किसानों की आत्महत्या का सिलसिला, क्या है वजह और आखिर किसकी जिम्मेदारी है?
महाराष्ट्र में नवंबर के महीने में जब सभी राजनितिक दल सत्ता के जोड़ तोड़ में लगे थे उसही वक्त सूबे में हुई बेमौसम बारिश ने किसानों की फसल पर ऐसा कहर बरपाया कि कटाई के लिए आई हुई फसल पूरी तरहा बर्बाद हो गई. लेकिन नेताओं का ध्यान सरकार बनाने पर था.
हालांकि संदेश ये था कि सरकार का जल्द गठन जरूरी है. संदेश ये था कि विरोधी विचारधारा वाली पार्टियां भी मिलकर सरकार बना लें तो अच्छा है क्योंकि राज्य की जनता, खासकर किसानों को राहत की जरूरत है. बिन सरकार सारा काम रुका पड़ा है.
गड़बड़ी कहां हुई?
सरकार ने कर्जमाफी की जो कटऑफ डेट रखी उसने सरकार की मंशा पर सवाल उठाने की वजह दे दी. सरकार ने कहा कि 1 अप्रैल 2015 से 30 सितम्बर 2019 तक जिन किसानों का 2 लाख तक का कर्ज बकाया है उनका कर्जा सरकार माफ़ करेगी. सरकार का दावा था कि इसका फायदा करीब 35 लाख किसानों को होगा. लेकिन सवाल ये है कि राज्य में किसानों को सब से ज्यादा नुकसान अक्टूबर और नवम्बर महीने में बेमौसम बरसात से हुआ. तो फिर कटऑफ डेट सितंबर तक क्यों? आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर-नवंबर की बारिश में 94 लाख हेक्टेयर जमीन पर लगी फसल पूरी तरह बर्बाद हो गई.
ऐसे में अगर सरकार कटऑफ डेट 30 दिसंबर 2019 रखती तो निश्चित तौर पर किसानों को फायदा मिलता. लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है और ये भी ये बड़ी वजह है की किसानो की आत्महत्या का सिलसिला जारी है
अहमदनगर के पाथर्डी में 35 साल के किसान मल्हारी भातुले ने मौत को केवल इसलिए गले लगा लिया क्योंकि उनके पास हर महीने बैंक का कर्ज चुकाने के पैसे नहीं थे. जानकारी के मुताबिक उनकी कपास की खेती थी बहन की शादी के अलावा खेती के लिए भी उन्होंने कर्ज लिया था.
मामला सिर्फ कर्ज माफी की कटऑफ डेट तक सीमित नहीं है. हमारे नेता किसानों के मामले में कितने गंभीर हैं, इसका एक ताजा उदाहरण प्याज के किसानों का है. प्याज की आसमान छूती कीमतों को देखते हुए सरकार प्याज के निर्यात पर रोक लगाई लेकिन जब नई फसल आई तो किसान तबाह होने लगे. लेकिन सरकार ने फैसला लेने में छ महीने लगा दिए.
तमाम किसान संगठनों की मांगों के बाद अब जाकर 2 मार्च को सरकार ने प्याज के निर्यात पर लगी रोक को हटाया. इस लेट लतीफी के बाद महाराष्ट्र के ढेर सारे किसानों को नुकसान हुआ हो, तो कोई ताज्जुब नहीं. अब इसकी भरपाई कौन करेगा.
एक कर्जमाफी योजना से आपने किसानों को पुराना कर्ज चुका भी दिया तो प्याज के नाम पर हुए नुकसान के कारण बहुत से किसान बैंक का कर्ज नहीं चुका पाएंगे. यानी फिर से वही दुष्चक्र....
कुल मिलाकर देश के अन्नदाता किसान को तकलीफ में रखने की नेताओं की आदत बन गई है. उनके नाम पर राजनीति होती है, वोट मांगे जाते हैं, सरकारें बनती हैं लेकिन किसानों की हालत नहीं बदलती. यही वजह है कि तीसरी क्लास का एक बच्चा किसानों से कविता के जरिए अपील करता है कि वो आत्महत्या न करें, लेकिन विडंबना देखिए कि उसी का पिता आत्महत्या करने को मजबूर हो जाता है.
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