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चंद्रयान 2: ‘1 दिन’ में 14 दिनों का करेगा काम 

चंद्रयान-2 मंजिल के करीब, 48 दिन पूरे होने पर कैसे करेगा लैंड?

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम

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चंद्रयान 2 अपनी मंजिल से अब थोड़ी ही दूर है. 22 जुलाई को चांद के लिए निकला चंद्रयान-2, अब है कहां, क्‍या कर रहा है?

2 सितंबर को दोपहर 1 बजकर 15 मिनट पर चंद्रयान-2 का लैंडर ‘विक्रम’ ऑर्बिटर से सफलतापूर्वक अलग हो गया है. चंद्रयान-2 मिशन का सबसे चुनौतीपूर्ण चरण 7 सितंबर को आएगा. इस दिन लैंडर ‘विक्रम’ की चांद पर लैंडिंग होनी है. ये लैंडिंग चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास होगी.

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चंद्रयान 2 में 3 कंपोनेंट हैं.

  • एक ऑर्बिटर.
  • एक लैंडर जिसका नाम विक्रम है.
  • इसमें एक रोवर है, जिसका नाम प्रज्ञान है.

इसने 22 जुलाई को भारत के श्रीहरिकोटा से उड़ान भरी. इसे 14 जुलाई को उड़ान भरना था लेकिन हीलियम लीक होने की वजह से इसरो को ये लॉन्च टालनी पड़ी थी.

चंद्रयान को चांद तक पहुंचने में कुल 48 दिन लग रहे हैं.

ऐसा क्यों? इसे इस उदाहरण से समझा जा सकता है.

मान लीजिए कि आप सुजुकी हायाबुसा की जगह हीरो स्प्लेंडर पर चांद पर जा रहे हैं, हायाबुसा तेज हो सकता है, लेकिन स्प्लेंडर फ्यूल इफिशिएंट है. यहां भी हम बहुत कम खर्चे में चांद पर पहुंच जाएंगे इसके लिए हम गुलेल चलाने जैसा कुछ कर रहे हैं. चंद्रयान को वैसे ही पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाते हुए जाना है.
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चांद तो सिर्फ 3.8 लाख किमी दूर है, हम सीधा क्यों नहीं जा सकते? घूमकर क्यों जाना है?

चांद की दूरी 3.84 लाख किमी है लेकिन चंद्रयान पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बचने के लिए पृथ्वी के चारों ओर घूम कर जा रहा है, वो भी बहुत कम ईंधन का इस्तेमाल करके. इसके लिए इसरो के पास ऑर्बिट-रेजिंग तरीका है, जिससे वो ऑर्बिट से निकलकर चांद के करीब पहुंचता गया.

चंद्रयान-2 की पूरी लागत सिर्फ 980 करोड़ रुपये है जबकि नासा ने अपोलो 11 पर सिर्फ 4 दिनों में धरती से चांद पर नील आर्मस्ट्रांग को पहुंचाने के लिए बहुत ज्यादा खर्च किया था. शुक्रवार, 6 सितंबर को और भारतीय समय के हिसाब से 7 सितंबर को सुबह 1.55 पर लैंडर विक्रम चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास उतरेगा.

ये बहुत आराम से लैंड करेगा जिसे सॉफ्ट लैंडिंग कहते हैं जिससे लैंडर से बहुत ज्यादा मून डस्ट नहीं उड़ेगा. लैंडिंग के बाद लैंडर से 6 पहियों वाला रोवर निकलेगा जिसका नाम है प्रज्ञान और ये प्रज्ञान ‘एक दिन ‘ का एक्सपेरिमेंट करेगा. एक लुनर डे, धरती के 14 दिन के बराबर होता है तो ये 14 दिन तक एक्सपेरिमेंट करेगा. खासकर ये चांद की सतह के नीचे पानी की खोज करेगा.

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