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40 साल से गायों की सेवा कर रही हैं जर्मन महिला ‘सुदेवी दासी’

40 सालों से गायों की सेवा में जुटीं कृष्ण भक्त, जर्मन महिला फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग को पद्म श्री सम्मान

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कैमरा: नितिन चोपड़ा

वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान

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उत्तरप्रदेश के मथुरा में तीर्थयात्रियों की भीड़ से अलग एक छोटा सा गांव चर्चा में है. यहां एक गोशाला सुरभि गो सेवा निकेतन में बीमार और घायल हो चुकी गायों का खयाल रखा जाता है.

40 सालों से गायों की सेवा में जुटीं कृष्ण भक्त, जर्मन महिला फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग को सरकार ने पद्म श्री से सम्मानित किया है. ब्रूनिंग इलाके में सुदेवी माताजी के नाम से चर्चित हैं. फ्रेडरिक उस वक्त महज 20 साल की थीं जब वो भारत यात्रा के दौरान मथुरा आईं और यहीं रहने लगीं.

“भगवद गीता में, मैंने अपने जीवन से जुड़े बड़े सवालों के जवाब पाए और महसूस किया कि सिर्फ एक गुरु ही मुझे सही मार्ग पर ले जा सकता है. इसलिए, मैंने दीक्षा ली और मथुरा में रहना शुरू कर दिया. इस दौरान मैंने सड़क पर छोड़ दी गई एक गाय को देखा.“
सुदेवी दासी

उस गाय की दुर्दशा ने सुदेवी को इतना दुखी कर दिया कि वो उसे घर ले आईं. सुदेवी आगे कहती हैं, “उसका पैर जख्मी हो गया था और शरीर में कीड़े थे.” लगभग 40 साल पहले एक गाय से शुरू हुआ ये सिलसिला अब 1,800 से ज्यादा गायों तक पहुंच गया है.

एक समय ऐसा भी आया जब सुदेवी ने ज्यादा गायों को न रखने का फैसला किया क्योंकि उनके पास जगह की कमी थी. लेकिन वो खुद को नहीं रोक सकीं. आज, वो गायों के कल्याण के लिए हर महीने लगभग 30 लाख रुपये खर्च करती हैं- जिसका एक हिस्सा जर्मनी से उनके पिता की ओर से आता है.

सुदेवी का मानना है कि कृष्ण के करीबी होने के कारण गाय खास हैं, उनकी रक्षा की जानी चाहिए. गायों की तुलना अपने बच्चों के साथ करते हुए, सुदेवी पूछती हैं कि क्या उन्हें किसी को अपने बच्चों को मारने की इजाजत देनी चाहिए?

“अब अगर आप मेरे बच्चों को खाने का फैसला करेंगे तो मैं आपको रोकूंगी. यही मेरा कहना है. मैं गायों को अपना बच्चा मानती हूं. मेरे अधिकार वहां रुक जाते हैं जहां किसी का अपमान हो.”
सुदेवी दासी 

हालांकि, उन्हें लगता है कि गोरक्षा को लेकर हिंसा नहीं होनी चाहिए. वो कहती हैं, 'बेशक गायों की रक्षा जरूरी है, लेकिन उसके लिए किसी के साथ मारपीट नहीं होनी चाहिए और ना ही किसी की जान लेना सही है.'

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