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उस आदमी से मिलिए,जो बना सकता है देश का पहला टाइपराइटर म्यूजियम!

दिल्ली का ‘यूनिवर्सल टाइपराइटर्स’ देश के चंद आखिरी बचे टाइपराइटर स्टोर्स में से एक है

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आज डायनासोर के बारे में जानने के लिए हर कोई उत्सुक रहता है. वो डायनासोर, जो हजारों साल पहले था. लेकिन टाइपराइटर, जिसका आविष्कार भारत में सिर्फ 120 साल पहले किया गया था, उसके बारे में क्या आप नहीं जानना चाहेंगे?

दिल्ली की 'यूनिवर्सल टाइपराइटर्स कंपनी' देश के चंद आखिरी बचे टाइपराइटर स्टोर्स में से एक है. यहां 100 से ज्यादा टाइपराइटर मौजूद है. कुछ एक सदी से भी ज्यादे पुराने हैं. राजेश पाल्टा इस स्टोर के मालिक हैं. राजेश पाल्टा की ख्वाहिश है कि वह देश में पहला टाइपराइटर म्यूजियम बनाएं.

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टाइपराइटर बनाने वाली आखिरी कंपनी साल 2009 में बंद हो गई थी. लेकिन इसके बाद भी टाइपराइटर के साथ राजेश का रिश्ता कायम रहा. उनके लिए टाइपराइटर अभी जिंदा है. टाइपराइटर को रिपेयर करना काफी मुश्किल और महंगा सौदा होता है लेकिन राजेश पाल्टा के लिए ये यादों की खट-खट है.

राजेश पाल्टा बताते हैं कि 12-13 साल पहले जब उनके बच्चे मुंबई से लौटे, तो बच्चों को घर के कबाड़ में से कुछ टाइपराइटर मिले. बच्चों ने पूछा कि क्या इन्हें ठीक किए जा सकते हैं? राजेश पाल्टा ने कहा कि हां, उनके पास इसके पुर्जे हैं और उनके टेकनिशियन इसे ठीक कर सकते हैं. राजेश ने जब टेकनिशियन को टाइपराइटर दिखाया, तो उसने तुरंत उनसे कह दिया, "सर् क्या करोगे इनको ठीक करके, उतने की मशीन नहीं है, जितना खर्चा हो जाएगा."

टाइपराइटर के सही होने के बाद जब मैं उन्हें घर ले गया. तो मेरे बेटे ने मुझे इंटरनेट पर क्लासिक टाइपराइटर की दुनिया के बारे में बताया. उनकी कीमत 1000 डॉलर और उससे ज्यादा थी. ये देखने के बाद मैंने इन टाइपराइटरों को कबाड़ में फेंकना बंद किया.
राजेश पाल्टा

टाइपराइटर के फायदें क्या हैं?

  • पहली बात तो ये कि टाइपिंग में एक शानदार लय है
  • दूसरा, अपने लिखे को तुरंत कागज पर छपे देखना दिलचस्प है
  • और आखिर में, आप सारा कट-पेस्ट, स्पेलिंग चेक दिमाग में करते रहते हो. तो, ध्यान नहीं भटकता.
दिल्ली का ‘यूनिवर्सल टाइपराइटर्स’ देश के चंद आखिरी बचे टाइपराइटर स्टोर्स में से एक है
टाइपिंग में एक शानदार लय है जो बहुतों को आकर्षित करती है
(फोटो: Facebook/@classictypewriter)
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टाइपराइटर का इस्तेमाल सस्ता और अच्छा है. इसमें बस तीन या चार महीने में रिबन बदलना होता है. साल में सिर्फ एक या दो बार सर्विस करानी होती है.

जब तक कोर्ट-कचहरी है तब तक टाइपराइट की जरूरत भी पड़ती रहेगी. एक टाइपराइटर में 2700 से ज्यादा स्पेयर पार्ट्स होते हैं. वहीं, तीन- चार गुना बड़े फ्रीज में सिर्फ 300 या उससे कम स्पेयर पार्ट्स होते हैं.

राजेश पाल्टा टाइपराइटर के इस बिजनेस में इसलिए हैं क्योंकि इसमें उनका जुनून है. जब कोई मशीन खराब हो चुकी होती है तो उसे बेहद आसानी से ठीक कर देते हैं.

वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान
कैमरापर्सन:
अतहर और अभय शर्मा
कैमरा असिस्टेंट:
मयंक चावला
प्रोड्यूसर:
हर्षिता मुरारका

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