"ड्यूटी 12 घंटे का, छुट्टी एक भी दिन नहीं... 30 के 30 दिन, अगर नाइट में कोई रिलीवर नहीं आता है तो 24 घंटा भी रुकना पड़ता है, 36 घंटा भी रुकना पड़ता है और सैलरी भी कम. हम लोग भी तो इंसान हैं"
ये दर्द है कैलाश नाथ सिंह का, जो एक प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड हैं. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन और इकोनॉमिक्स में एमए करने वाले कैलाश नाथ नौकरी न मिलने पर मजबूरी में सिक्योरिटी गार्ड बने.
इस प्रोफेशन में कई सालों से नौकरी कर रहे लोगों को वही सैलरी मिल रही है, जो नए आए लोगों को मिलती है.
बिहार के चंपारण से दिल्ली नौकरी करने आए सैयद इम्तियाज हैदर 20 सालों से प्राइवेट सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी कर रहे हैं. उन्हें 20 सालों से वही 9,000 रुपये मिल रहे हैं, जो हाल ही सिक्योरिटी गार्ड बने पवन की है. सैयद बताते हैं कि जब दूसरा सिक्योरिटी गार्ड छुट्टी पर होता है तो उनकी शिफ्ट 24 घंटे तक खींच जाती है.
मैं इस ठंड के मौसम को झेल रहा हूं और मुझे बस 9,000 रुपये मिल रहे हैं. मुझे भी ठंड लगती है लेकिन परिवार के लिए सब करना पड़ता है. मजबूरी का नाम महात्मा गांधी. कोई उपाय नहीं समझ आ रहा है इसलिए मर के नौकरी कर रहे हैंसैयद इम्तियाज हैदर
सिक्योरिटी गार्ड नरेंद्र पांडे की कहानी भी इसी दर्द से भरी है. पांडे बताते हैं कि 20,000 की सैलरी में बच्चों की पढ़ाई के बाद उन्हें चाय पीने के लिए रुपये खर्च करने से पहले भी सोचना पड़ता है. "हम अपनी जान पर खेलकर ड्यूटी करते हैं. एक बार ऐसी जगह हमारी ड्यूटी लगाई गई जहां लाखों-करोड़ों के सामान पड़े होते हैं."
देश में इस वक्त पुलिस अधिकारियों से ज्यादा सिक्योरिटी गार्ड्स हैं. इस वक्त भारत में 70 लाख सिक्योरिटी गार्ड्स हैं, जो 2020 तक और बढ़ जाएंगे.
इस गणतंत्र दिवस आइए हम इन लोगों के जीवन में थोड़ा सा बदलाव लाने के लिए एकजुट हों, जो हमारे घर के बाहर पहरा देते हैं. उन्हें वो सम्मान दें जिसके वो हकदार हैं.
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