तेलंगाना राज्य की मांग सबसे पहले उस्मानिया यूनिवर्सिटी से ही उठी थी. चुनाव से ठीक पहले क्विंट पहुंचा इस यूनिवर्सिटी में ये जानने की आखिर तेलंगाना राज्य की मांग और उससे जुड़ी अपेक्षाओं का क्या हाल है? क्या उनका तेलंगाना राज्य का सपना पूरा हो गया है? साथ ही दलित छात्र टीआरएस की सरकार के बारे में क्या सोचते हैं.
बता दें कि इस आंदोलन में यूनिवर्सिटी के बहुत सारे दलित छात्र शामिल थे. उन सबका सपना था, 'नया राज्य, नई उम्मीदें'.
उस्मानिया यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्कॉलर वेंकट कहते हैं, "हम इस लड़ाई में दिल ओ जान से कूद पड़े. करीब 1000 छात्रों ने इस लड़ाई में अपनी जान गंवाई. हम सभी इस आंदोलन को लेकर बहुत गंभीर थे. हमें लगा कि अपना बहुजन राज्य लोगों की उम्मीदों को पूरी करेगा, लेकिन नई सरकार दलितों के सपने पूरे करने में पूरी तरह से नाकाम रही."
वेंकट ने कहा, "हम दलितों के लिए एक बेहतर राज्य की आस लगाए हुए थे. लेकिन फिर हैदराबाद यूनिवर्सिटी से बुरी खबर आई, जब रोहित वेमुला की मौत हो गई. इस घटना के बाद प्रशांत को भी सस्पेंड कर दिया गया था, जो रोहित वेमुला के करीबी दोस्त और हमारे साथी हैं."
क्या दलितों और बहुजनों में एकता की कमी है?
क्या दलित और बहुजन अभी तक एकजुट नहीं हो सके हैं, इस सवाल पर यूनिवर्सिटी के SC/ST सेल के डायरेक्टर डॉ. जी विनोद कुमार कहते हैं, "हमारा आंदोलन अब खत्म हो चुका है, फिर कैसे हम राजनीति को प्रभावित कर सकते हैं?"
विनोद कुमार ने कहा, ‘’तेलंगाना की राजनीति रेड्डी-वेलम्मा के अलावा कुछ नहीं है. वेलम्मा केवल 0.5% हैं जबकि बहुजन आबादी 93% हैं. 93% वाले सत्ता पाने में असफल रहे ये उनकी अपनी गलतियों के कारण ही हुआ. 93% आबादी वाले 0.5% वालों को जिताने के लिए वोट देते हैं. लेकिन ये बदलना होगा’’
क्या दलित वोट बदलाव ला पाएंगे?
डॉ. विनोद कुमार ने कहा, "22 फीसदी वोट दलितों का है, अगर दलित एकजुट हो जाएं और राजनीतिक पार्टी बना लें तो कोई और सत्ता में नहीं आ सकता. और फिर सीएम भी दलित ही तय करेंगे. लेकिन बहुत सारी वजह हैं जिसकी वजह से दलित एकजुट नहीं हो पा रहे."
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