वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान
कैमरापर्सन: अभिषेक रंजन और शिव कुमार मौर्या
उर्दू शब्द ‘राब्ता’ का मतलब है संपर्क. संपर्क जो एक भावना है. ये तय करता है और बताता है कि हम कौन हैं और हम हर दिन क्या कर रहे हैं. उर्दू शायर क़तील शिफ़ाई ने ‘राब्ता’ शब्द का इस्तेमाल ग़ज़ल में कुछ इस तरह से किया है, जो बताता है कि आपको खुद के बारे में सोचने की जरूरत है.
“राब्ता लाख सही क़ाफ़िला-सालार के साथ
हम को चलना है मगर वक़्त की रफ़्तार के साथ “
क़ाफ़िला-सालार मतलब 'कारवां का मुखिया', नेता. शायर ये कहना चाह रहा है कि आप नेता के साथ अपने जुड़ाव की परवाह किए बिना, आंख बंदकर उनके पीछे न चलें, भले ही आप अपने नेता से कितने भी प्रभावित हों. हालांकि ये हमारे लिए बहुत ही स्वाभाविक है कि हम ये सोचते हैं कि वो हमें आगे ले जाएंगे. हम वो सब करने के लिए बिना सोचे-समझे तैयार हो जाते हैं, जो कुछ वे कहते हैं, करते हैं, किसी भी चीज पर सवाल किए बिना.
दूसरा मिसरा है- हम को चलना है मगर वक़्त की रफ़्तार के साथ. यहां शायर कहते हैं कि वो आगे बढ़ना चाहता है, लेकिन समय के साथ, न कि अपने कारवां के नेता के साथ.
“लफ़्ज़ चुनता हूं तो मफ़्हूम बदल जाता है
इक न इक ख़ौफ़ भी है जुरअत-ए-इज़हार के साथ”
मफ़्हूम का मतलब है ‘मायने’. जुरअत का अर्थ साहस और इज़हार का मतलब है व्यक्त करना.
इसका मतलब है कि हम खुद को व्यक्त करने के लिए चाहे किसी भी शब्द को चुनें, उन्हें गलत समझा जाएगा. यही वजह है कि शायर के दिल में उतना ही डर है, जितना बोलने की हिम्मत है. इसका मतलब ये भी है कि हमें डर और साहस के बीच किसी एक को चुनना है.
आप किसके साथ 'राब्ता' करना पसंद करेंगे- जो आपको डराता है या जो आपको मजबूत बनाता है?
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