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असम का अनोखा स्‍कूल,जहां बच्‍चे प्‍लास्‍ट‍िक कचरे से भरते हैं फीस

स्कूल जहां एंपावरमेंट का मंत्र है शिक्षा, पर्यावरण, रोजगार.

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फीचर
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वीडियो एडिटर: राहुल सांपुई

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आपने कई तरह के स्कूलों और वहां बच्चों को दी जाने वाली सुविधाओं के बारे में सुना होगा लेकिन पर्यावरण दिवस (5 जून) के मौके पर हम आपको असम के एक ऐसे स्कूल के बारे में बताने जा रहे हैं जहां बच्चों से फीस के रूप में प्लास्टिक कचरा लिया जाता है.

जी हां, ये सच है!

2013 में माजिन मुख्तार एक खास प्रोजेक्ट के तहत न्यूयॉर्क से भारत आए थे, जहां उनके काम के सिलसिले में उनकी मुलाकात परमिता शर्मा से हुई. परमिता एजुकेशन सेक्टर में काम करने की योजना बना रही थीं.

माजिन और परमिता दोनों ने तय किया कि वो साथ जिंदगी भी बिताएंगे और काम भी साथ ही करेंगे. दोनों ने एक अनोखी पहल करते हुए साल 2015 में असम के पमोही में अक्षर नाम का स्कूल शुरू किया.

जब हमने पहली बार शुरुआत की तो हमने अपने छात्रों के माता-पिता को घर से प्लास्टिक कचरा भेजने के लिए कहा. वे सहयोग नहीं करना चाहते थे. वो कचरा अलग कर के नहीं भेजते थे. ये बहुत झंझट का काम था. 2015 में, जब से हमने स्कूल शुरू किया ये बिल्कुल फ्री है. स्कूल की कोई फीस नहीं है लेकिन उन्हें रिसाइकल के साथ पर्यावरण  की सफाई में भागीदार बनाने के लिए हमने उनसे कहा कि अब से हम आपसे फीस वसूलना शुरू कर देंगे और वे फीस आपके घरों से निकलने वाला प्लास्टिक वेस्ट होगा.  
माजिन मुख्तार, फाउंडर, अक्षर स्कूल
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इस स्कूल की एक और खास बात ये है कि यहां सीनियर छात्र जूनियर छात्रों को पढ़ाते हैं जिसके लिए उन्हें पैसे का भुगतान भी किया जाता है.

हमने पिछले साल अपने कैंपस में रिसाइकल सेंटर की शुरुआत की थी. रिसाइकलिंग सेंटर बनाने का मकसद ये था कि स्कूल में टीनएजर्स बच्चों को पैसे कमाने का कुछ साधन मिल पाए. इससे उन्हें स्कूल छोड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी. उनपर घर से बहुत दबाव होता है, स्कूल छोड़कर कहीं नौकरी करने का, यहां तक कि 12-13 साल के बच्चों के साथ भी यही होता है.
माजिन मुख्तार, फाउंडर, अक्षर स्कूल

जो बच्चे पहले पत्थर की खदानों में काम किया करते थे आज वो नए छात्रों के मेंटर बन चुके हैं.

वीडियो में देखिए, कैसे दोनों ने मिलकर इस स्कूल की नींव रखी. स्कूल जहां एंपावरमेंट का मंत्र है शिक्षा, पर्यावरण, रोजगार.

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