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"हिंदू खतरे में हैं" और "जबरन धर्मांतरण" के हल्ले का सच जान लीजिए

आजाद भारत की पहली जनगणना साल 1951 में हुई थी, तब मुसलमानों की आबादी 3.5 करोड़ थी जो 2011 में बढ़कर 17.2 करोड़ हो गई.

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद आलम

"हिंदू खतरे में है", "2040 तक भारत में मुसलमानों की आबादी हिंदुओं से ज्यादा हो जाएगी..", "हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है..", "लव जिहाद हो रहा है, साजिश हो रही है..", "जनसंख्या नियंत्रण कानून की जरूरत है.."

सच बताइएगा, आपके Whatsapp, फेसबुक, ट्विटर, गली मोहल्ले, चाय की दुकान पर ये वाला मैसेज शेयर हुआ है न? लेकिन क्या सच में 2040 या 2050 तक भारत में मुसलमानों की आबादी हिंदुओं से ज्यादा हो जाएगी.. आपके नेता इसे सही कहते हों लेकिन आंकड़े मतलब डेटा चीख-चीख कर कह रहे हैं कि नेता जी और नफरत की बीमारी वाले कम्यूनल लोग आपको बेवकूफ बना रहे हैं. आपसे झूठ बोल रहे हैं. इसलिए हम पूछ रहे हैं, जनाब ऐसे कैसे?

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अमेरिकी थिंक टैंक प्यू रिसर्च सेंटर (Pew Research centre) ने Religious Composition of India नाम से एक रिपोर्ट जारी की है. जो 'हिंदू खतरे में है' और 'मुसलमानों की कथित बढ़ती आबादी' के दावों को नकारती है.

प्यू की रिपोर्ट के मुताबिक, हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई लगभग सभी धार्मिक समूहों की प्रजनन दर यानी Fertitility rate या आसान भाषा में कहें तो बच्चों की संख्या (प्रजनन दर का अर्थ है बच्चे पैदा कर सकने की आयु वाली प्रति 1000 स्त्रियों की इकाई के पीछे जीवित जन्में बच्चों की संख्या) में काफी कमी आई है. इसे ऐसे समझिए कि 1992 में एक मुस्लिम महिला के 4 (4.4) से ज्यादा बच्चे होते थे लेकिन यह आंकड़ा घटकर 2015 में 2.6 हो गया है. वहीं, हिंदू महिलाओं के बच्चों की संख्या औसतन साल 1992 में 3.3 थी जो 2015 में 2.1 पहुंच गई. इसी तरह 1992 के मुकाबले 2015 में ईसाईयों में Fertitility rate 2.9 से घटकर 2, बौद्ध 2.9 से घटकर 1.7, सिख 2.4 से घटकर 1.6 और जैन 2.4 से घटकर 1.2 आ गया है.

आजादी के बाद से अबतक के जनगणना का हाल

अब आपको ले चलते हैं फ्लैशबैक में. आजाद भारत की पहली जनगणना साल 1951 में हुई थी, तब भारत की आबादी 36.1 करोड़ थी, जो साल 2011 आते-आते 120 करोड़ के करीब पहुंच गई. 1951 में हिंदुओं की आबादी 30.4 करोड़ थी जो साल 2011 में 96.6 करोड़ पहुंच गई जबकि 3.5 करोड़ मुसलमानों की जनसंख्या बढ़कर 17.2 करोड़ हो गई. ईसाइयों की संख्या 80 लाख से बढ़कर 2.8 करोड़ पहुंच गई. मतलब लगभग सभी धार्मिक समूहों की आबादी में भी बढ़ोतरी हुई है.

अब 2011 के जनगणना को देखिए.. 2011 में हिन्दुओ की जनसंख्या में वृद्धि की दर 16.76 फीसदी थी. 2001 में यही दर 19.92 फीसदी थी. इस तरह 10 साल में हिन्दुओं की जनसंख्या में 3.16 फीसदी की गिरावट देखी गयी थी. अब मुसलमानों की बात करें तो 2001 में मुसलमानों की आबादी 29.5 फीसदी की दर से बढ़ी थी जो 2011 में गिरकर 24.6 फीसदी हो गयी. यानी मुसलमानों की जनसंख्या में बढ़ोतरी की दर में गिरावट 4.9 प्रतिशत की रही. ये आंकड़े बताते हैं कि हिन्दुओं के मुकाबले मुसलमानों में जनसंख्या बढ़ोतरी की दर में तेज गिरावट हुई.

इसके बावजूद मुसलमानों की जनसंख्या में वृद्धि की दर हिन्दुओं के मुकाबले ज्यादा है- यह भी सच है. हालांकि कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी का ख्याल रखेंगे, तो ये भी बैलेंस हो जाएगा. अगर 60 साल की बात करें तो 1951 से 2011 के बीच मुसलमानों की आबादी 4.4% बढ़कर 14.2% हो गई, जबकि हिंदुओं की संख्या 4.3% घटकर 79.8% हो गई.

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क्या हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है?

जवाब आंकड़ों में ढूंढ़ते हैं. भारत में लगभग 30,000 वयस्कों के 2020 प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वेक्षण में, बहुत कम लोगों ने संकेत दिया कि उन्होंने बचपन से ही धर्म बदल लिया था. सर्वे में 99% एडल्ट ने बताया कि अभी भी वह खुद की पहचान हिंदू के रूप में करते हैं, जो बचपन से हिंदू हैं. इसी तरह, मुसलमानों के रूप में पले-बढ़े लोगों में से 97% अभी भी मुसलमान ही हैं और जिन भारतीयों का पालन-पोषण ईसाई के रूप में हुआ, उनमें 94% अभी भी ईसाई हैं.

आसान शब्दों में समझें तो 0.7 फीसदी लोग हिंदू परिवार में जन्मे और अब उनकी पहचान हिंदू नहीं है. वहीं 0.8 फीसदी दूसरे धर्म के लोग थे और अब वो हिंदू हैं. मतलब भारत की बड़ी आबादी के हिसाब से देखें तो धर्मांतरण की कहानी बनाने वालों की बात में दम नहीं है.. हां.. ये भी बता दें कि अपनी मर्जी से धर्म परिवर्तन करना अवैध नहीं है.

जनसंख्या विस्फोट

अब आते हैं जनसंख्या विस्फोट के बहस पर. बतोलेबाजी नहीं, आंकड़े देखिए. विश्व बैंक के जनसंख्या संबंधी आंकड़ों को देखेंगे तो पाएंगे कि भारत में जनसंख्या में वृद्धि की दर बढ़ नहीं रही है, घट रही है.

1990 में यह दर 2.07 फीसदी थी जबकि 2018 में यह 1.02 फीसदी के स्तर पर आ चुकी है. भारत में जनसंख्या वृद्धि दर दुनिया में जनसंख्या वृद्धि दर से कम है. 2018 में दुनिया में जनसंख्या वृद्धि दर 1.105% थी, तो भारत में 1.02 प्रतिशत.

ये आंकड़े बताते हैं कि भारत में जनसंख्या विस्फोट जैसे हालात नहीं है. जनसंख्या बढ़ रही है लेकिन इसकी स्पीड लगातार कंट्रोल होती चली गयी है. सच यह है कि जनसंख्या का नियंत्रण हिन्दुस्तान ने कर दिखाया है.

हां, तो जो लोग जनसंख्या विस्फोट, धर्म परिवर्तन, हिंदू खतरे में जैसी बात कहते हैं, वो दरअसल, अपने मन में बसे पूर्वाग्रह (pre cocupied notion) या राजनीति की वजह से कहते हैं. जनसंख्या नियंत्रण, धर्म परिवर्तन कानून के बहाने निशाने पर किसी और को लिया जा रहा है. अल्पसंख्यक बनाम बहुसंख्यक का गंदा खेल खेला जा रहा है. समाज में जहर भरा जा रहा है. इसलिए हम हर नफरत, झूठ और बेतुकी बातों पर पूछते हैं, जनाब ऐसे कैसे?

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