ADVERTISEMENTREMOVE AD

पुण्यतिथि विशेष: बेटे की जुबानी, फील्ड मार्शल करिअप्पा की कहानी

अपने पिता केएम करिअप्पा से जुड़ी पुरानी यादों को ताजा करते एयर मार्शल केसी करिअप्पा

Updated
छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

(इस आर्टिकल को सबसे पहले 15 मई 2018 को पब्लिश किया गया था. केएम करिअप्पा की पुण्यतिथि पर इसे दोबारा पब्लिश किया जा रहा है.)

एडिटर: पूर्णेन्दु प्रीतम

15 मई यानी भारतीय सेना के पहले कमांडर-इन-चीफ फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा की पुण्यतिथि. इस महान हस्ती के बारे में और जानने के लिए क्विंट ने उनके बेटे, रिटायर्ड एयर मार्शल केसी नंदा करिअप्पा के साथ खास बातचीत की है.

केसी करिअप्पा अपने पिता को सेना के एक ऐसे अधिकारी के रूप में याद करते हैं जिसके लिए वर्दी का सम्मान सबसे पहले और सबसे जरूरी था.

अपने पिता केएम करिअप्पा से जुड़ी पुरानी यादों को ताजा करते एयर मार्शल केसी करिअप्पा

केसी करिअप्पा उनके बारे में बात करते हुए बताते हैं-

“एक बार मेरे पिताजी गाड़ी चला रहे थे. उनके साथ बैठे जनरल थिमैय्या ने सिगरेट निकाली.
पिताजी ने कहा कि वो जीप में स्मोकिंग नहीं कर सकते हैं और वर्दी में तो बिल्कुल नहीं. उन्होंने जनरल थिमैय्या को सिगरेट पीने के लिए नीचे उतारा और उसके बाद आगे बढ़े.”

“निडर” फील्ड मार्शल करिअप्पा अपना सबसे बुरा दुश्मन खुद को मानते थे.

उनके उसूल काफी ऊंचे थे, वो अक्सर कहते थे कि उनके सबसे बुरे दुश्मन खुद वही थे.  
केसी करिअप्पा

केएम करिअप्पा का अनुशासन और उसूल उनके निजी जीवन में भी दिखाई देता था. उन्हें डिनर टेबल पर कभी भी बिना सूट, टाई या बंदगले के नहीं देखा गया.

वो इस बात पर जोर देते थे कि जो भी खाने की टेबल पर बैठे उसे ठीक से तैयार रहना चाहिए. ठीक से तैयार होने का उनका मतलब एक टाई, जैकेट या एक बंदगले से था. वो खुद भी हमेशा नाश्ते और दोपहर के खाने के लिए एक हल्के रंग का सूट पहनते थे, रात के खाने के वक्त वो काले रंग के सूट या बंदगले में होते थे. 
केसी करिअप्पा
अपने पिता केएम करिअप्पा से जुड़ी पुरानी यादों को ताजा करते एयर मार्शल केसी करिअप्पा

वो एक प्रतिबद्ध भारतीय थे.

अपने पिता केएम करिअप्पा से जुड़ी पुरानी यादों को ताजा करते एयर मार्शल केसी करिअप्पा

“वो एक प्रतिबद्ध भारतीय थे. एक चीज जो मुझे सिखाई गई थी कि अपने देश से प्यार करो. देश, भगवान, देश के लोगों के प्रति कर्तव्य निभाओ. जब भी मैं कहता कि मैं कोडवा हूं, वो कहते कि पहले तुम एक भारतीय हो. वो जोर देकर कहते थे कि ये देशभर में हर भारतीय पर लागू होना चाहिए.”

ADVERTISEMENTREMOVE AD

देश और जवानों के लिए उनका प्रेम उनके रिटायरमेंट पर मिला तोहफा बयां करता है.

जब वो 1953 में सेना से रिटायर हुए, ये परंपरा थी कि जाने वाले अधिकारी, चाहे उनकी रैंक जो भी हो, उन्हें एक विदाई उपहार दिया जाता था. उनसे पूछा गया कि वो क्या चाहते हैं? उन्होंने कहा, “मैं एक भारतीय जवान की मूर्ति लेना चाहता हूं क्योंकि मैं आज जो भी हूं वो एक जवान की बदौलत हूं जिसने मुझे बनाया है.”

केसी करिअप्पा बताते हैं कि उनके पिताजी रिटायरमेंट के बाद, हर सुबह जब भी नाश्ता करते थे, वो पहले अपने माता-पिता के लिए शांति से प्रार्थना करते थे और फिर मूर्ति को सलाम कर कहते थे "मैं आज जो भी हूं, उसे बनाने के लिए धन्यवाद".

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
अधिक पढ़ें
×
×