जब श्वेता शाही से पूछा गया कि क्या वो रग्बी खेलना चाहती हैं, तब उन्होंने पहली बार ‘रग्बी’ शब्द सुना. स्टेट एथलेटिक इवेंट में श्वेता पर बिहार के रग्बी सेक्रेटरी का ध्यान गया और उन्होंने श्वेता को इस खेल में आने के लिए कहा. इसके बाद श्वेता ने अपने पिता की मदद से और यू-ट्यूब पर वीडियो देख-देखकर खुद ही इस विदेशी खेल को सीखा.19 साल की इस प्लेयर ने तीन अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में देश को रिप्रेजेंट किया है. लेकिन इस गांव की लड़की के लिए ये सफर आसान नहीं था.
2019 का लोकसभा चुनाव भारत के इतिहास में एक टर्निंग पॉइंट बनने वाला है. लेकिन इसमें एक ‘किंगमेकर’ या यूं कहिए कि ‘क्वीनमेकर’ की भूमिका अहम होगी. वैसी ‘क्वीनमेकर्स’ यानी पहली बार वोट करने जा रहीं महिला वोटर्स से क्विंट आपको मिलवाने जा रहा है. फेसबुक और द क्विंट की पहल ‘मी, द चेंज’ कैंपेन के तहत मिलिए बेबाक श्वेता शाही से.
पटना एयरपोर्ट से 100 किलोमीटर दूर नालंदा जिले में पड़ता है गांव भंडारी. श्वेता का जन्म वहीं किसान सुजीत कुमार शाही और चंपा देवी के घर में हुआ. उनकी एक बड़ी बहन और तीन भाई हैं. गांव में उनकी उम्र की ज्यादातर लड़कियों की शादी हो चुकी है.
लेकिन श्वेता की ऐसी कोई प्लानिंग नहीं है क्योंकि उनकी नजर अभी सिर्फ ओलंपिक पर है. हालांकि, उनके परिवार में कुछ ऐसे भी लोग थे जो उनके रग्बी खेलने के खिलाफ थे. उनके मामाजी का सोचना है कि लड़कियों को स्पोर्टस नहीं खेलना चाहिए, वो श्वेता के खेलने की वजह से कहते हैं कि “कौन तुमसे शादी करेगा?”
इस खेल में प्लेयर चोटिल भी ज्यादा होते हैं. मेरे मामाजी को लगता था कि इस वजह से मेरी शादी में काफी दिक्कतें आएंगी. मेरे पापा मेरा साथ देते हैं. उनका कहना था कि मैं जिस चीज में आगे बढ़ना चाहूं बढ़ सकती हूं. अगर वो साथ नहीं देते तो मैं यहां तक नहीं आ पाती.श्वेता शाही, रग्बी प्लेयर
पैसों की कमी की वजह से श्वेता के पिता ही उनके कोच और मेंटर बनें. दोनों ने यू-ट्यूब और फेसबुक पर वीडियो देखें. प्रैक्टिस की. इसका रिजल्ट ये हुआ कि वो बिहार की एकमात्र लड़की थीं, जिसे 2013 में नैशनल कैंप के लिए चुना गया. श्वेता श्रीलंका, दुबई और साउथ कोरिया में आयोजित रग्बी सेवेन सीरीज में भारत को रिप्रेजेंट कर चुकी हैं.
पहले मैं एक ग्राउंड में प्रैक्टिस करती थी, लेकिन इसके मालिक ने उसकी बाउंड्री बनवा दी. फिर मैंने दूसरी जगह प्रैक्टिस शुरू की वहां भी तालाब बनवा दी गई. प्रैक्टिस करने में कई दिक्कतें आ रही हैं. गांव से 6 किलोमीटर दूर रासबिहारी स्कूल ग्राउंड है, मैं वहीं प्रैक्टिस करने जाती हूं. फिलहाल बिना घास वाली, एक पथरीले स्कूल ग्राउंड में ट्रेनिंग करती हूं. रग्बी के लिए ग्राउंड मिट्टी और घास वाली होनी चाहिए. यहां काफी गिट्टी है. ये ग्राउंड रग्बी के लिए बिलकुल नहीं है, चोट लगने का रिस्क ज्यादा है फिर भी मजबूरी है यहां प्रैक्टिस करना.श्वेता शाही, रग्बी प्लेयर
श्वेता चाहती हैं कि नालंदा में रग्बी का खेल आगे बढ़े. वो कई स्कूलों में जाकर ज्यादा से ज्यादा लड़कियों को रग्बी लेने के लिए प्रोत्साहित करती हैं. जब वो कैंप में ट्रेनिंग नहीं कर रही होती हैं, तो वो इन लड़कियों को ट्रेनिंग देने में अपना समय बिताती हैं. उनकी ट्रेनिंग से 6 लड़कियां नेशनल लेवल पर खेल रही हैं.
2019 में डालेंगी अपना पहला वोट
श्वेता फर्स्ट टाइम वोटर हैं. यानी 2019 में वो अपना पहला वोट डालेंगी. ये पूछे जाने पर कि वो आने वाले आम चुनाव में किस मुद्दे को ध्यान में रखकर वोट करेंगी, उन्होंने कहा:
नेता सड़कें तो बनवा रहे हैं, लेकिन उनमें से कोई भी खिलाड़ियों पर ध्यान नहीं दे रहा है. मेरी बड़ी समस्या ये है कि मेरे पास खेलने के लिए ग्राउंड नहीं है. मेरे पास कोई ट्रेनिंग इक्वीपमेंट या कोई और सुविधा नहीं है. 2019 में मैं इन बातों को ध्यान में रखते हुए वोट करूंगी. हम भारत के भविष्य हैं. अगर हम अच्छा करते हैं, तो हम अपने जिले और राज्य का नाम रोशन करते हैं. अगर नेता हमारे लिए काम करने का वादा करता है, तो मैं उसके लिए वोट दूंगी.श्वेता शाही, रग्बी प्लेयर
क्या आप भी श्वेता जैसी किसी सफल युवा महिला को जानते हैं? ये आपकी दोस्त, आपकी बहन या कोई भी हो सकती हैं जिसके बारे में आपने कभी सुना हो. ये आप भी हो सकती हैं. तो #MeTheChange के लिए नाॅमिनेट करें किसी फर्स्ट टाइम लेडी वोटर को, वो महिलाएं जो दूसरों की जिंदगी में ला रही हैं बदलाव.
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