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‘लॉकडाउन के बाद मेरी पहली ट्रेन यात्रा’

मैं डरी हुई और चिंतित थी, मैं और मेरे सहयोगी ने सारी सावधानियों का ख्याल रखा था

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अनलॉक 1 के पहले दिन रेलवे ने देशभर में अपनी 200 यात्री ट्रेनें चलाई. इसी दिन हालातों का जायजा लेने के लिए मैंने दिल्ली से आगरा तक ऐसी ही एक ट्रेन में सफर किया.

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मैं जैसे ही स्टेशन पहुंचीं तो स्टेशन के एंट्री गेट पर ही एक व्यक्ति तापमान मापने वाली गन लेकर खड़ा था. उसने मेरा तापमान लिया. मशीन पर लिखकर आया ‘36.3 degree celcius.’. इसके बाद मेरे बैग की स्कैनिंग हुई. नई दिल्ली रेलने स्टेशन पर सोशल डिस्टेंसिंग के लिए बने काफी सारे घेरे बने दिखे. कुर्सियों, बेंचों पर भी बीच में जगह छोड़ी गई थी जिससे कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो सके.

मैं डरी हुई और चिंतित थी, मैं और मेरे सहयोगी ने सारी सावधानियों का ख्याल रखा था. हमने मास्क, गल्व्स, फेस शील्ड, शू कवर सभी जरूरी चीजें पहनी हुईं थीं.

मैं डरी हुई और चिंतित थी, मैं और मेरे सहयोगी ने सारी सावधानियों का ख्याल रखा था
नई दिल्ली रेलने स्टेशन पर सोशल डिस्टेंसिंग के लिए बने काफी सारे घेरे बने दिखे
(Photo: Athar Rather/The Quint)

स्टेशन पर मौजूद कुछ लोग घर जाने को बेताब दिखे. एंट्री पर कई सारे लोग हाथों में अपने टिकट लिए दिखे जो अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे. थर्मल स्क्रीनिंग के बाद हमने कुछ लोगों से बात की. प्रवासी मजदूर संजय ने बताया कि वो कई दिनों से अपने घर जाने का इंतजार कर रहे थे. उनके सारे पैसे खत्म हो गए थे. साथ ही उनके बच्चे भी उनका कई दिनों से इंतजार कर रहे थे. वहीं टिकट काउंटर के पास कई ऐसे भी लोग खड़े दिखे जो अपने घर जाना चाहते थे लेकिन उनके पास टिकट नहीं था.

ट्रेन का सफर मुझे बहुत ज्यादा पसंद हुआ करता था लेकिन अब कोरोना काल में सब कुछ बदल चुका है. मुझे अपनी पसंदीदा बर्थ साइड लोअर मिल गई थी. मैं उन्हीं पुरानी यादों में खो गई जब स्टेशन आने और कुछ खाने का सामान खरीदने का इंतजार किया करती थी.

मैं डरी हुई और चिंतित थी, मैं और मेरे सहयोगी ने सारी सावधानियों का ख्याल रखा था
ट्रेन का सफर मुझे बहुत ज्यादा पसंद हुआ करता था लेकिन अब कोरोना काल में सब कुछ बदल चुका है.
(Photo: Athar Rather/The Quint)  

करीब 2 घंटे 10 मिनट बाद हमारी ट्रेन आगरा केंट पहुंच गई, हमें यहीं तक सफर करना था. यहां फिर से हमारा तापमान लिया गया, लेकिन नई दिल्ली स्टेशन के मुकाबले यहां बहुत कम भीड़ थी. यहां पर स्टॉल, काउंटर, ऑफिस सब कुछ बंद दिख रहे थे. स्टेशन के बाहर मैंने देखा कि एक व्यक्ति रिक्शा पकड़ने से पहले अपने बेटे को गले लगा रहा था. लेकिन मुझे उन लोगों की याद आई जो अभी भी अपने घरों को जाने के लिए टिकट पाने की जद्दोजहत कर रहे होंगे.

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