वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज
असम के बक्सा के लोगों को दिए गए नोटिस में फॉरेन ट्रिब्यूनल का सवाल होता है आप भारतीय या नहीं? वहां के लोग महामारी से त्रस्त, बाढ़ से पीड़ित और अपनी भारतीयता साबित करने को मजबूर हैं. लोगों का कहना है कि लॉकडाउन और बाढ़ के वजह से वो अब आर्थिक रूप से अपने आप को कमजोर महसूस करते हैं.
1989 में मैंने 2 बार वोट डाला था और जब मैं फिर से वोट डालने गयी तो देखा कि मेरा नाम हटा दिया गया है. मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था. मुझे नहीं पता था कि ये कैसे ठीक होगा, ना ही मेरे पति को पता था. पहले ही बाढ़ की वजह से हम 10 बीघा जमीन खो चुके थे. बहुत दिनों तक हम सड़क पर ही रह रहे थे. मुझे डी वोटर नोटिस मिला, मैं इसका सामना कैसे करूंगी. हमारे पास जमीन और पैसा नहीं है. मेरे पति अब काम करने लायक भी नहीं है.समर्थ बानू, स्थानीय निवासी
स्थानीय निवासी फिरोजा बेगम कहती हैं कि जब नोटिस आया मैं दो दिन तक खा नहीं पाई. लॉकडाउन की वजह से मेरे बेटे काम नहीं खोज पा रहे. कोई आमदनी नहीं है. वो घर पर बेरोजगार बैठे हैं . अब हम एक अस्थाई जगह पर रह रहे हैं. हमारे पास बिल्कुल पैसे नहीं हैं.
ज्यादातर नोटिस जून की शुरूआत में जारी किए गए थे. लेकिन लोगों तक ये नोटिस जुलाई के आखिर तक पहुंचे ताकि अगस्त के शुरूआत में ये दिखे.
लॉकडाउन के बीच में जब असम में बाढ़ आए हुए थे, उस समय बहुत से लोगों के पास नोटिस आयाऔ र ये हमने देखा. लॉकडाउन के बीच और बाढ़ के बीच जब नोटिस आया तो लोग टूट गए क्योंकि चारों चरफ बाढ़ ही बाढ़ है. निकलने का कोई रास्ता नहीं है. दूसरी तरफ लोगों के पास पैसे भी नहीं हैं.अशरफ हुसैन, सोशल एक्टिविस्ट
स्थानीय निवासी कासिम अली बताते हैं कि बाढ़ हमें 8 से 9 बार बर्बाद कर चुकी है. हमारी जमीनें बह गयी हैं. हम किसी तरह बाद में दूसरी तरफ जाकर बसे हैं, बहुत मुश्किल में जी रहे हैं. लॉकडाउन के वजह से मेरे बेटों को नौकरी नहीं मिल रही है. मैं तो पहले से ही बीमार हूं, इसलिए काम भी नहीं कर सकता. परिवार के एक सदस्य की नागरिकता के लिए 60 से 70 हजार रुपए खर्च करने होंगे और अब मैं भी ये डी वोटर की समस्या झेल रहा हूं.
अपनी नागरिकता साबित करने की समस्या ने लोगों को आर्थिक और मानसिक तनाव से भर दिया है.
कई बार मैं बेहोश और कमजोर हो जाती हूं, वो भी सिर्फ चिंतित रहने के वजह से मैं रोती हूं. मैं बहुत बीमार हो चुकी हूं. इस परेशानी की वजह से मुझे सच में बहुत ज्यादा डर लगता है. क्या हल है इस समस्या का अब. क्या रह जाएगा मेरे लिए. मेरे पति और बेटियों का नाम वहां था लेकिन मेरे बेटों और मेरा नाम नहीं था.समर्थ बानू, स्थानीय निवासी
स्थानीय निवासी कासिम अली बताते हैं कि मेरे बेटों के पास बिल्कुल पैसे नहीं हैं और वो खो गए हैं.मैं कोशिश तो कर रहा हूं लेकिन एक ओर मेरे पास पैसे नहीं है. दूसरी तरफ मैं बार-बार बीमार हो रहा हूं. हम बहुत बुरे वक्त से गुजर रहे हैं
सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार ने जिन लोगों के पास नोटिस भेजे गए हैं उनके पास सभी कागजात हैं. उन्हें बिना किसी पूछताछ के शक के घेरे में रखा जा रहा है. पूछताछ किसने की, कब की, सरकार को इसकी कोई जानकारी नहीं है लेकिन सरकार फिर भी हमेशा इन पर शक करती है ताकि उन्हें दबा कर रख सके.
19 लाख से ज्यादा लोगों को 2019 की NRC की लिस्ट से बाहर रखा गया है. अपनी पहचान का ये संघर्ष कब तक चलेगा?
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