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Me, The Change:डाउन सिंड्रोम से लड़ते हुए देश के लिए जीता था गोल्ड

‘मी, द चेंज’, एक ऐसा कैंपेन जो पूरे भारत में पहली बार वोट देने वाली महिला मतदाताओं के मुद्दों पर चर्चा कर रहा है.   

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खरगार, मुंबई की स्नेहा वर्मा जन्म से ही डाउन सिंड्रोम से पीड़ित थीं. उन्होंने 2015 में लॉस एंजिल्स में स्पेशल ओलंपिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया और 50 मीटर फ्रीस्टाइल एक्वाटिक्स में गोल्ड मेडल जीता.

‘मी, द चेंज’ पहली बार वोट करने जा रही ऐसी महिलाओं के लिए द क्विंट का कैंपेन है, जिन्होंने कोई भी, छोटी या बड़ी उपलब्धि हासिल की है. इस कैंपेन में द क्विंट नाॅमिनेशन के जरिए इन असाधारण महिलाओं की कहानियों को आपके सामने पेश कर रहा है. अगर आप भी ऐसी किसी बेबाक और बिंदास महिला को जानते हैं, तो हमें methechange@thequint.com पर ईमेल करके बताएं.

इस वीडियो में, स्नेहा अपने उस सुनहरे सफर को याद कर रही हैं जिसने उन्हें गोल्ड मेडल तक पहुंचाया.

स्नेहा की मां मधु वर्मा बताती हैं स्नेहा हमेशा से एक ‘वाटर बेबी’ थी. वो बाथटब में घंटों बिताती थी. लेकिन जब वो स्विमिंग पूल में उतरती वो बहुत डर जाती थी .

डाउन सिंड्रोम एक जेनेटिक डिसऑर्डर है जिसकी वजह से मानसिक क्षमता कम हो जाती है. शुरुआत में जब स्नेहा ने तैरना शुरू किया तब कोर्डिनेशन की कमी थी.  वो बस पानी में हाथ-पैर मारती थी. हमें काफी वक्त लगा उसे समझाने में कि कैसे पानी को काटना है.  उसके पंजे बंद नहीं होते थे,  वो हमेशा अपनी उंगलियां खोलकर रखती थी जिसकी वजह से वो कभी तेजी नहीं पकड़ पाती थी. किसी साधारण बच्चे के लिये ये आसान होता.  
मधु वर्मा, स्नेहा की मां
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‘मी, द चेंज’, एक ऐसा कैंपेन जो पूरे भारत में पहली बार वोट देने वाली महिला मतदाताओं के मुद्दों पर चर्चा कर रहा है.   
स्नेहा अपनी बहन शिवानी के साथ.
(फोटो: द क्विंट)

स्नेहा के मां-पापा के मुताबिक स्नेहा की जिंदगी में टर्निंग पाॅइंट था जब उन्हें बेलापुर के स्वामी ब्रह्मानंद प्रतिष्ठान स्कूल में एडमिशन मिला.स्कूल ने स्नेहा का हौसला बढ़ाने और स्विमिंग स्किल सुधारने में काफी मदद की. स्नेहा को कई काॅम्पिटिशन के लिए भेजा जाने लगा. उन्होंने जिला से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के मेडल जीतने शुरू किए.

‘मी, द चेंज’, एक ऐसा कैंपेन जो पूरे भारत में पहली बार वोट देने वाली महिला मतदाताओं के मुद्दों पर चर्चा कर रहा है.   
हम खुशकिस्मत थे कि हमें स्वामी ब्रह्मानंद प्रतिष्ठान स्कूल मिला. उन्होंने उसे मनाया कि वो इंटर स्कूल कॉम्पिटिशन में भाग ले.  फिर वहां से वो डिस्ट्रिक्ट लेवल कॉम्पिटिशन, फिर स्टेट लेवल और फिर उसका सिलेक्शन स्पेशल ओलंपिक टीम में हुआ. वो नेशनल चैंपियनशिप के लिए बेंगलुरु गई.
मधु वर्मा, स्नेहा की मां

मधु वर्मा बताती हैं कि 2016 में पैराओलंपिक्स आने वाले थे तब स्नेहा ने शिकायत करना शुरू किया कि “मां मेरे कान दुखते हैं जब मैं पानी में उतरती हूं.” तब हम उसे डॉक्टर के पास ले गए.

डाॅक्टर ने हमें बताया कि स्नेहा के कान के पर्दों में छेद हो गए हैं और अंदर की हड्डी घिस चुकी है. शुरुआत में उन्होंने कहा कि वो ईयर प्लग्स लगा कर तैर सकती है और तब वो पैरालंपिक कॉम्पिटिशन के लिए गई. उसने फिर एक बार गोल्ड जीता लेकिन दुर्भाग्य से उसके बाद स्थिति और बिगड़ गई और हमें स्नेहा को वापस डॉक्टर के पास ले जाना पड़ा. डाॅक्टर ने कहा कि बस, अब ये स्नेहा के तैराकी का अंत है.
मधु वर्मा, स्नेहा की मां
‘मी, द चेंज’, एक ऐसा कैंपेन जो पूरे भारत में पहली बार वोट देने वाली महिला मतदाताओं के मुद्दों पर चर्चा कर रहा है.   
स्नेहा ने 2016 में पैराओलंपिक्स में गोल्ड मेडल जीता
(फोटो: द क्विंट)
“मैं अब तैर नहीं सकती, जब मैं अपना सिर पानी में डालती हूं तो दर्द होता है. मेरे कान में पस है और ये बहुत दर्द होता है. लेकिन मैं परेशान नहीं हूं कि मैं काॅमपिटिशन में भाग नहीं ले सकती. मेरा लक्ष्य देश को गौरवान्वित कराना था और मैंने ऐसा किया. डांस मेरा जुनून है, ये हमेशा रहा है, मैं उस पर ध्यान दूंगी. मैंने टेबल टेनिस भी खेलना शुरू किया है और सही ट्रेनिंग के साथ, मैं उम्मीद करती हूं कि इसमें भी चैंपियन बनूं.” 
स्नेहा वर्मा

ये जज्बा ही स्नेहा को बनाता है खास!

क्या आप स्नेहा वर्मा जैसी किसी यंग अचीवर को जानते हैं? क्विंट के “मी, द चेंज” कैंपेन के लिए उन्हें नाॅमिनेट करें!

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