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क्या सरकार ने हर फ्रंट पर रेप आरोपी विधायक को बचाने की कोशिश की?

कुलदीप सिंह सेंगर के मामले में जितने भी बड़े और कड़े फैसले हुए है उनमें दिल्ली ही फ्रंट पर दिखा है.

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वीडियो एडिटर: वरुण शर्मा

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उन्नाव रेप केस में हर रोज कुछ न कुछ नया डेवलपमेंट आ जाता है. यूपी की योगी सरकार और विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की खबरें सुर्खियों में होती हैं. सरकार और विधायक की पुरानी जुगलबंदी के तमाम किस्से छाए हैं. आरोप लगते रहे कि सरकार ने हर फ्रंट पर विधायक को बचाने की कोशिश की है.

बीजेपी ने अपने खिलाफ बनते माहौल को देखते हुए बीती 1 अगस्त को कुलदीप सेंगर को पार्टी से निकाल तो दिया, लेकिन हड़बड़ी में गड़बड़ी हो गई. कुलदीप को पार्टी से पहले ही निकाल देना चाहिए था, देरी हुई तो किस लेवल पर ये समझ नहीं आता.

हैरानी तो इस बात की है कि यूपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह को इस बात की जानकारी भी नहीं थी कि उनका विधायक पार्टी से निष्कासित है या निलंबित.
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विधायक को पार्टी से निकालने का ऐलान हो गया था, लेकिन कई घंटे बाद तक बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष को कानों-कान खबर ही नहीं थी. जिससे कुछ देर के लिए कंफ्यूजन का माहौल भी बना, क्योंकि इस खबर को पुष्ट करने के सबसे सही शख्स तो प्रदेश अध्यक्ष ही हैं. फिर हड़बड़ी हुई और एक बार फिर स्वतंत्र देव सिंह ने सामने आकर निष्कासन की खबर पर मुहर लगा दी. लेकिन अध्यक्ष जी की इस बेखबरी ने कई सवालों को पंख दे दिए.

  1. क्या प्रदेश के फैसले भी दिल्ली ही लेती है?
  2. अगर केंद्रीय नेतृत्व कोई बड़ा फैसला लेता भी है तो क्या उसे प्रदेश इकाई के अध्यक्ष को विश्वास में नहीं लेना चाहिए?
  3. या फिर बीजेपी कांग्रेस के ढर्रे पर है जहां पहले दिल्ली से फैसले सुनाए जाते थे और फिर नियमों की प्रक्रिया होती थी ?

वैसे स्वतंत्र देव सिंह हर मामले पर ट्विटर पर खूब एक्टिव रहते हैं. बाकायादा ग्राफिक्स के साथ योजनाओं का ऐलान करते आए हैं, लेकिन यहां चूक गए या पार्टी ने ही ‘चूक’ जैसा माहौल बना दिया ये समझ नहीं आता.

यूपी में ये साफ दिख रहा है कि कुलदीप सिंह सेंगर के मामले में प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी में तालमेल की कमी रही है. जहां कहने के लिए तो भले ही बीजेपी लोकतांत्रिक पार्टी है और छोटे से छोटा फैसला भी आम सहमति के बगैर नहीं होता. पर इन बातों को बल इसलिए भी मिल रहा है कि जिस समय कुलदीप के पार्टी से निकाले जाने की खबरें आईं, उसके एक दिन पहले यूपी के बीजेपी अध्यक्ष को आनन-फानन में दिल्ली बैठक के लिए बुलाया गया. जल्दबाजी इतनी थी कि अयोध्या में बैठक कर रहे अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह के लिए हेलिकॉप्टर भेजा गया.

गौर करें तो कुलदीप सिंह सेंगर के मामले में जितने भी बड़े और कड़े फैसले हुए है उनमें दिल्ली ही फ्रंट पर दिखा है. नियम की बात करें तो पार्टी में सदस्य बनाने और निकालने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ प्रदेश अध्यक्ष को ही है. लेकिन यहां अध्यक्ष को ही जानकारी नही थी.

क्या केंद्र सरकार या संगठन, योगी सरकार को विश्वास में लेकर डैमेज कंट्रोल नहीं कर सकते थे?लेकिन कुछ नहीं हुआ.

कहीं ये ब्रांड इमेज का मामला तो नहीं? सरकार और संगठन को मुश्किल हालातों से सिर्फ पार्टी का ही चेहरा उबार सकता है. या फिर यूपी की सरकार और संगठन दोनों ही कुलदीप को बचाने में लगे हैं, जैसा की आरोप लग रहा है!

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अब जरा बात पुलिस की भी हो जाए.

वैसे तो बदमाशों के एनकाउंटर की स्पेशलिस्ट यूपी की पुलिस विधायक सेंगर के मामले में भीगी बिल्ली सी दिख रही है...कुलदीप की गिरफ्तारी तक में भी योगी और उनकी पुलिस पीछे रह गई. मामला बिगड़ रहा था दिल्ली के आदेश पर सीबीआई ने विधायक को गिरफ्तार किया. ऐसा क्यों? क्या यहां की पुलिस विधायक को गिरफ्तार नहीं कर पाती? क्या पुलिस को किसी भी बात की आशंका थी? क्या पुलिस को कंट्रोल किया जा रहा था?

एक और एंगल भी है. दरअसल, कुलदीप सिंह सेंगर की बादशाहत का दायरा पहले ही बड़ा था. ऐसा कहा जाता है कि वो कम वक्त में ही सीएम योगी का बेहद खास हो गया था. विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की हैसियत किसी कैबिनेट मंत्री से कम नहीं थी. उन्नाव रेप केस में नाम आने के बाद भी सीएम योगी से बेधड़क उसकी मुलाकात ही सरकार के लिए संकेत था. लिहाजा, उसके ऊपर हाथ डालने की कुव्वत ना तो प्रदेश के किसी पुलिस अधिकारी में थी और ना ही पार्टी के किसी नेता के पास. बीजेपी ज्वॉइन किए हुए उसे जुम्मा-जुम्मा तीन साल भी नहीं हुए थे लेकिन पार्टी के अंदर उसकी तूती बोलने लगी थी. कहा तो ये भी जा रहा है कि अगर वो जेल नहीं जाता तो सांसद के लिए भी दावेदारी करता.

जेल में भी विधायक का रुतबा कम नहीं हुआ. आरोपी विधायक पंद्रह महीनों से जेल में है, लेकिन बीजेपी की राज्य इकाई ने उसके खिलाफ किसी तरह की कार्रवाई नहीं की. कार्रवाई तो छोड़िए, उन्नाव से जीत हासिल करने के बाद सांसद साक्षी महाराज कुलदीप सिंह सेंगर का हाल-चाल जानने और उसे थैंक्यू बोलने के लिए जेल तक पहुंच गए.

अब जब बात थैंक्यू बोलने की है तो कुछ और लोग भी थैंक्यू बोलना चाहते हैं...लेकिन बोल नहीं पा रहे...पीड़ित अपने जुल्मों से निजात पाकर और इंसाफ पाकर थैंक्यू बोलना चाहती है. अपना सबकुछ खो चुका पीड़िता परिवार न्याय पाकर थैंक्यू बोलना चाहता है.

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