वीडियो एडिटर: मोहम्मद इरशाद
“अब मैं आपसे बहुत महत्वपूर्ण बात कहना चाहता हूं जिसे आप जरूर कवर करें, हमारे पास 50 हजार सरकारी नौकरियां हैं. वो हम भरेंगे उसकी हम घोषणा करते हैं.”
ये कहना है जम्मू-कश्मीर के गवर्नर सत्यपाल मलिक का.
वहीं दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर से दिल्ली आए पंच-सरपंचों के एक प्रतिनिधिमंडल को केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आश्वासन दिया कि हर गांव में कम से कम पांच लोगों को सरकारी नौकरी दी जाएगी. ये हेडलाइन मीडिया में खूब घूमती रही. मीडिया ने भी इसे कवर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. खैर छोड़े भी क्यों? जब गृह मंत्री से लेकर जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल ने नौकरियों का पिटारा खोल दिया है तो खबर कश्मीर के हर बेरोजगार तक पहुंचनी चाहिए.
ऐसा पिटारा कि बिहार से लेकर, UP, MP सबके युवा भी मानो कह रहे हों-आखिर हमारे लिए ऐसे ऐलान कब होंगे?
लेकिन सवाल ये है कि जब कश्मीर में इतनी नौकरियों का ऐलान हो रहा है तो क्या देश के दूसरे राज्यों के बेरोजगारों के लिए कोई प्लान है सरकार के पास? अगर दूसरे राज्यों के लिए ऐसे हेडलाइन नहीं बनाए जाएंगे तो जॉबलेस युवा तो पूछेंगे, जनाब ऐसे कैसे..
जम्मू-कश्मीर में थोक के भाव से नौकरियां देने का दावा किया जा रहा है. अब दावा इतना बड़ा हो तो सवाल तो बनता ही है. क्यों देश के बाकी बेरोजगार युवा टिक-टॉक और फेसबुक पर अपनी एनर्जी लगाते रहें? उन्हें भी मौका मिलना चाहिए. लेकिन अगर हेडलाइन बन ही रहा है तो क्यों ना जॉब के हाल पर भी नजर डालें.
2019 लोकसभा चुनाव में हिंदू-मुसलमान, हिंदुस्तान-पाकिस्तान के नेरेटिव के सामने बेरोजगारी जगह नहीं बना पाई.
जनवरी 2019 में NSSO ने बताया कि देश में बेरोजगारी 45 साल में सबसे ज्यादा है. तब सरकार ने इन आंकड़ों को नहीं माना. जैसे ही चुनाव खत्म हुए सरकार ने मान लिया कि हां 45 साल में सबसे ज्यादा बेरोजगारी है.
ताजा रिपोर्ट भी बेरोजगारी पर मुहर लगा रहे हैं
वो बात तो पुरानी हुई, अब नए आंकड़ों की बात करें तो सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) की ताजा रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में बेरोजगारी की दर 3 साल के उच्चतम स्तर पर है. रिपोर्ट यह भी कहती है कि लोग रोजगार की तलाश कर रहे हैं लेकिन उन्हें निराशा हाथ लग रही है.
ये तो हुई बेरोजगारी की बात. अब बात करते हैं जॉब की. मतलब जॉब है कहां? और जब कश्मीर में जॉब देने के सपने दिखाए जा रहे हैं तो क्या बाकी राज्यों के लोगों को जॉब मिल रही है?
कहां-कहां अटकी हैं नौकरियां?
केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल
CAPF में 8 फीसदी से ज्यादा पद खाली पड़े हैं. सीएपीएफ में कुल सीट 9,99,795 है, जिनमें से 84,037 पद खाली हैं. लोकसभा में ये बात खुद गृह मंत्रालय की ओर से बताई गई है. अब बॉर्डर की रक्षा हो या कानून-व्यवस्था बनाए रखने में राज्य सरकारों की सहायता करनी हो, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल मतलब CRPF, BSF, Sashastra Seema Bal (SSB), Indo-Tibetan Border Police Force (ITBP) वाले काम आते हैं. तो इन खाली पड़े पदों का क्या?
SSC से सवाल पूछते छात्र
केंद्र सरकार की स्टाफ सलेक्शन कमीशन की परीक्षा को लेकर कश्मीर की तरह हेडलाइन वाली बेचैनी क्यों नहीं दिख रही है. SSC के ग्रुप बी और सी भर्तियों के लिए होने वाली सीजीएल 2017 की परीक्षा अभी तक पूरी नहीं हो सकी है. दिल्ली में धरना देते छात्र, पेपर लीक, कोर्ट केस, स्लो प्रोसेस. कहानी लंबी है.
रेलवे में नौकरियों की भर्ती कब होगी?
भारतीय रेलवे देश में सबसे ज्यादा नौकरियां देने वाली संस्था है. लेकिन यहां भी करीब 3 लाख पद खाली हैं.
रेल मंत्री पीयूष गोयल ने 10 जुलाई 2019 को लोकसभा में कहा था कि 1,51,843 पदों के लिए परीक्षाएं आयोजित की गयी हैं और 2019-20 में 1,42,577 पदों के लिए परीक्षा आयोजित की जाएगी.
अब क्या कश्मीर की स्पीड से यहां भी दो से तीन महीने में जॉइनिंग हो सकती है, लगता तो नहीं?
अब बात यूनिवर्सिटी की
HRD Ministry के डेटा के मुताबिक, देश में मौजूद 41 सेंट्रल यूनिवर्सिटी में करीब 35 फीसदी टीचिंग और नॉन-टीचिंग स्टाफ के पद खाली हैं. सिर्फ इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ही 1000 से ज्यादा पद खाली हैं. UGC ने अब जाकर इन पदों को भरने के लिए यूनिवर्सिटी से ब्योरा मांगा है. अब भर्ती कब होगी या तो सरकार जाने या फिर भगवान..
संस्कृत यूनिवर्सिटी भी परेशान
मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने 24 जून 2019 को लोकसभा को बताया,
केंद्र के जरिए फंड पाने वाले संस्कृत विश्वविद्यालयों में 1,748 टीचिंग सीट में से 800 से ज्यादा पोस्ट खाली पड़े हैं. हां, वही संस्कृत जिसके लिए ना जाने क्या-क्या सपने दिखाए गए थे.
ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों के हजारों पद खाली
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने पब्लिक हेल्थ फैसलिटी में डॉक्टरों की कमी को स्वीकार किया है, खासकर ग्रामीण इलाकों में. स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन द्वारा राज्यसभा में 16 जुलाई, 2019 को पेश किए गए आंकड़ों के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों में डॉक्टरों के 8,572 पद खाली पड़े हैं.
अब अगर राज्यों में जाएंगे तो हाल और भी बेहाल है. यूपी में शिक्षकों के सवा लाख से ज्यादा पद खाली हैं. बिहार चलिएगा तो वहां के सरकारी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर से लेकर दांत के डॉक्टर के पद खाली पड़े हैं. 2015 में बिहार सरकार ने 558 डेंटिस्ट का चयन किया था, अबतक उनकी पोस्टिंग नहीं हुई. तो बात ये है कि नौकरियों की हेडलाइन बनती है लेकिन डेडलाइन तय नहीं होती.
सरकारी नौकरियों का हाल आपने देख लिया. अब यूथ जाए कहां? क्योंकि ऑटो सेक्टर से लेकर टेक्सटाइल तक पहले ही मंदी का शिकार हैं. प्राइवेट सेक्टर की कहानी और भी डराने वाली है. ऐसे में हम तो पूछेंगे कि जनाब ऐसे कैसे?
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