कैमरा: सर्व्य एमजी
वीडियो एडिटर: पुनीत भाटिया
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने साल 2014 में ही इलेक्ट्रॉनिक टोल सुविधा की शुरुआत की थी. तब ये वैकल्पिक था. लेकिन अब देश में इसे अनिवार्य कर दिया गया है. इसका मतलब ये हुआ कि टोल बूथ से गुजरने वाली सभी गाड़ियां RFID टैग से होकर गुजरेंगी.
इससे यात्रियों के डिजिटल वॉलेट से टोल का इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसफर सीधे सरकार के खाते में हो जाता है.
हालांकि, पिछले दो महीनों से इसे अनिवार्य बनाये जाने के बाद से कई लोग शिकायत कर रहे हैं कि उनका फास्टैग काम नहीं कर रहा है और इससे टोल बूथ पर समस्याएं आ रही हैं.
हम गुरुग्राम से लगभग 18 किलोमीटर दूर मानेसर टोल बूथ गए और वहां मौजूद टोल बूथ अटेंडेंट्स और सुपरवाइजरों से बात की.
वहां लगभग तीन से चार घंटे बिताने के बाद हमने देखा कि कई यात्री नियमों का पालन नहीं कर रहे थे और कई बार पेनल्टी पर बहस कर रहे थे. फास्टैग पर विवादों को लेकर टोलबूथ सुपरवाइजर के साथ कई लोग भिड़ गए.
जिनके पास फास्टैग नहीं है और वो फास्टैग लेन में ड्राइव कर रहे हैं उन्हें 65 रुपये टोल के साथ पेनल्टी के रूप में 65 रुपये देने पड़ते हैं. टोलबूथ अटेंडेंट ड्राइवर को 130 रुपये की रसीद काटता है.
हमने ये भी देखा कि कई गाड़ियां सिर्फ अपनी सरकारी आईडी दिखाकर वीआईपी लेन से जा रही थीं. आपको पता होना चाहिए कि हर वाहन (छूट वाले भी) को फास्टैग की आवश्यकता है. छूट श्रेणी के अंतर्गत आने वाली कारों को भी छूट वाले फास्टैग लेने की जरूरत है.
भारतीय राजमार्ग प्रबंधन कंपनी लिमिटेड के अनुसार टोल बूथ पर वीआईपी लेन तक पहुंचने के लिए सरकारी आईडी वैलिड डॉक्यूमेंट नहीं है.
ऐसी चीजों से बचने के लिए सलाह दी जाती है कि सभी को फास्टैग मिलना चाहिए और टोल पार करने से पहले इसे रिचार्ज करना चाहिए. फास्टैग हर टोल बूथ के पास उपलब्ध है और आप पेटीएम जैसे डिजिटल वॉलेट के माध्यम से ले सकते हैं या बैंक से भी मिल सकता है.
सरकार ने घोषणा की है कि फास्टैग 29 फरवरी तक मुफ्त में उपलब्ध होगा लेकिन लोगों को यह समझना होगा कि ये पूरी प्रणाली को सुचारू चलाने के लिए जरूरी है.
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