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मध्य प्रदेश:हाईवे पर खड़ी होकर ये महिलाएं ढूंढती हैं कमाई का जरिया

मध्य प्रदेश के दलित सेक्स वर्करों की आपबीती

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वीडियो एडिटर: प्रशांत चौहान

मध्य प्रदेश के बांछड़ा समुदाय की महिलाओं का कहना है कि सदियों से वो सेक्स वर्क करती आ रही हैं. यहां तक कि उनके पास अपने किस्से हैं कि ये सब कैसे शुरू हुआ लेकिन जिस चीज को वो अपना काम कहती हैं, उसे इलाके में काम कर रहीं महिला अधिकार कार्यकर्ता जाति आधारित यौन उत्पीड़न बताती हैं.

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मध्य प्रदेश के नीमच में हाईवे के करीब छोटे-छोटे गांव हैं, जहां बांछड़ा समुदाय के लोग रहते हैं. ऊंची जाति के लोग यहां के पुरुषों को नीच समझते हैं. इनके पास कमाने का कोई और जरिया नहीं है. यहां की महिलाएं बाहर हाईवे पर आकर खड़ी होती हैं और कमाई का जरिया ढूंढती हैं.

मंदसौर से करीब 50 किलोमीटर दूर इस एरिया को लोग रेड लाईट स्ट्रीट कहते हैं और इसी गांव में बांछड़ा समुदाय के लोग रहते हैं

बांछड़ा कौन हैं?

बांछड़ा समुदाय पिछड़ी जाति यानी SC के अंतर्गत आते हैं और देश के दिल यानी मध्यप्रदेश में रहते हैं.

अमाला*(बदला हुआ नाम) एक गांव में रहती हैं, वो एक पहले सेक्स वर्कर थीं. अमाला* को ये बात बिल्कुल अच्छे से पता थी कि उनकी जाति बहुत कुछ तय करती है. समुदाय की ज्यादातर सेक्स वर्करों की तरह अमाला* अपने बच्चों के पिता के साथ नहीं रहतीं.

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बांछड़ा समुदाय की बुजुर्ग महिलाएं अपने उत्पीड़न के दिनों को याद करती हैं. वहीं अमाला* ने अपने लिए एक अलग रास्ता चुन लिया है. उनके गांव की कई महिलाओं ने ये काम जारी रखा है. वो कहती हैं कि उनकी जिंदगी यौन हिंसा और काम के लिए कम पैसे मिलने के खौफनाक किस्सों से भरी पड़ी है.

2017 में बांछड़ा समुदाय के आकाश चौहान ने एक याचिका दायर की. याचिका के मुताबिक इस व्यवसाय में जो नाबालिग लड़कियां जाती हैं, उनकी संख्या 1500 है. याचिका में चौहान कहते हैं कि बांछड़ा समुदाय में करीब 23,000 लोग हैं और ये अब करीब 75 गांव में रहते हैं, जो नीमच, रतलाम और मंदसौर के करीब हैं. बांछड़ा समुदाय में 65% महिलाएं हैं.

ये चौंकाने वाला आंकड़ा है. चौहान अपनी याचिका में कहते हैं कि इनमें से कई महिलाओं को 18 साल की उम्र से पहले ही इस काम में धकेल दिया जाता है, यानी वो नाबालिग होती हैं.

अब हमें ये भी ध्यान रखना चाहिए कि 2 साल पहले केंद्र ने 16 साल से कम उम्र की लड़की से रेप पर जेल का प्रावधान बनाया है लेकिन क्या ये कानून नीमच के इस हाईवे तक पहुंच पाया है. यहां कई युवा महिलाएं कस्टमर का इंतजार कर रही हैं, चाहे वो कार, ट्रक या किसी भी गाड़ी में हो.

उड़ान मंदसौर का एक NGO है, इसे अलग किए गए जाति आधारित सेक्स वर्कर और सफाई का काम करने वाली महिलाओं ने बनाया है. ये NGO (महिलाओं और पुरुषों के साथ) महिलाओं को सशक्त करने का काम करता है, जो जाति आधारित सेक्स वर्क और सफाई का काम करती हैं

संगीता उड़ान की प्रोजेक्ट हेड हैं. वो दलित महिलाओं और पुरुषों को अपने गांव में बदलाव लाने के काम का नेतृत्व करती हैं. बांछड़ा गांव में रहने वाले बच्चों को सामाजिक मुद्दों के बारे में बताया जाता है और सवाल पूछने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. उन्हें गलत और सही स्पर्श के फर्क चाइल्ड हेल्पलाइन और कई दलित साहित्य के बारे में बताया जाता है.

मध्य प्रदेश सरकार ने 1998 में बांछड़ा, बेदिया जैसे और भी समुदाय से सेक्स वर्क खत्म करने के लिए जबाली नाम की योजना शुरू की थी. इस योजना का लक्ष्य था कि इन समुदायों को शिक्षा सामाजिक और सार्वजनिक कल्याण का लाभ मिले लेकिन 2014 में ये योजना लागू हो पाई.

जिसमें नीमच, रतलाम और मंदसौर के लिए हर साल 10 करोड़ का बजट तय किया गया. योजना के तहत बचाव कार्य अब भी जारी है लेकिन पुनर्वास की समस्या मौजूद है.

एक NGO के मुताबिक यहां प्रोस्टीट्यूशन पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है. तो जिन महिलाओं को यहां से बाहर निकालकर ले जाया जाता है वो कमाई के लिए फिर यहीं लौट आती हैं ताकि वो अपने परिवार का पेट भर सके. बांछड़ा समुदाय के हर पीढ़ी की महिला खुद से एक वादा करती है कि वो इस व्यवसाय से अपनी बच्चियों को सुरक्षित रखेंगी लेकिन हर पीढ़ी को जबरन ये वादा तोड़ना पड़ जाता है.

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