कोरोना महामारी (Corona Pandemic) की वजह से उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में कुपोषण (malnutrition) का संकट गहरा गया है. क्विंट ने आजमगढ़ जिले के चाक जमालुद्दीनपुर गांव की जमीनी हकीकत जानने की कोशिश की.
सूर्यकांति ने क्विंट से बातचीत में कहा कि
लॉकडाउन में सब काम बंद था. ऐसे में पूरे महीने का राशन एक हफ्ते में ही खत्म हो जाता था. उसके बाद उन्हें राशन खरीदना पड़ता था. लेकिन महामारी की वजह से पैदा हुए आर्थिक संकट में ये आसान नहीं था."
उन्होंने आगे बताया कि "जब राशन कम होता था तो एक ही समय खाते थे. बच्चे अपना पेट दबाकर सो जाते थे. स्कूल बंद होने से बच्चों का मिड-डे मिल भी बंद हो गया."
क्विंट से बातचीत में 8 साल के साहिल ने बताया कि, "लॉकडाउन के दौरान खाना नहीं मिल रहा था. जब पेट में दर्द उठता था तो पेट दबाकर सो जाता था. मेरी बहन भी भूखी ही सो जाती थी. साहिल की लंबाई 109 सेमी. है लेकिन उसका वजन बस 17 किलो है. साहिल के स्वास्थ्य पर कुपोषण के प्रभाव नजर आ रहे हैं."
साहिन ने आगे कहा कि, "मैं बड़ा होकर डॉक्टर बनूंगा और जब खुद कमाने लूंगा तब मां भूखी नहीं रहेगी. मैं अपने परिवार का भी ध्यान रखूंगा."
सेजल और एक प्रणालीगत समस्या
सविता कश्यप जो पेशे से मजदूर हैं उन्होंने बताया कि बच्चे बहुत कमजोर पैदा होते हैं. वे बचपन से ही कुपोषित होते हैं. सविता की बेटी सेजल 4 साल 9 महीने की है.
सविता ने कहा कि, "महामारी ने मुश्किलें और बढ़ा दी. दूसरों की तरह ही हम पर भी महामारी का प्रभाव पड़ा है. हमारे पास काम नहीं था, हमारी परेशानियां कई गुना बढ़ गई थी. इसका असर सेजल की सेहत पर भी पड़ रहा है. डॉक्टर सेजल को कमजोर बताते हैं क्योंकि उसे पर्याप्त पोषण नहीं मिल रहा है."
बाल विवाह, युवा और दूध पिलाने में असक्षम माएं
गांव के ही रहने वाले दीपचंद बाल विवाह को कुपोषण का एक कारण मानते हैं. उनका कहना है कि, "गांव में बहुत कम उम्र में लड़कियों की शादी कर दी जाती है. परिवार और लोगों की अपेक्षा होती है कि एक साल में वो मां बन जाए. इस उम्र में मां बनने से बच्चे स्वाभाविक रूप से कुपोषित होंगे."
उन्होंने आगे कहा कि, गर्भवती महिलाओं को सही पोषण नहीं मिल पाता है. गर्भवती महिलाओं को जो सुविधा मिलनी चाहिए, वो इन गांवों में उन तक नहीं पहुंच पाती है.
यूपी में सबसे ज्यादा कुपोषित बच्चे
केंद्र सरकार के नवंबर 2020 के आंकड़ों के अनुसार. उत्तर प्रदेश में सीवियर एक्यूट मालन्यूट्रिशन यानी गंभीर कुपोषित बच्चो की संख्या सबसे ज्यादा है. 9.28 लाख गंभीर कुपोषित बच्चों में से 3.98 लाख सिर्फ उत्तर प्रदेश में है. जो कुल संख्या का 43 फीसदी है.
2017-18 से 2020-21 तक प्रधानमंत्री की व्यापक योजना के तहत पोषण अभियान के लिए उत्तर प्रदेश को 570 करोड़ रुपए जारी किए गए थे.
मार्च 2021 तक, यूपी सरकार ने सिर्फ 34 फीसदी धनराशि का ही उपयोग किया. यूपी सरकार के पास अभी भी 66 फीसदी धनराशि बाकी है, जिसका इस्तेमाल नहीं हुआ है.
UNICEF के मुताबिक भोजन और पोषक तत्वों की कमी बच्चों के विकास को सीधा प्रभावित करती है. जिससे उनके शरीर और दिमाग को घातक/अपरिवर्तनीय/अचल क्षति होती है. वे जीवन भर कुपोषण के प्रभावों के साथ जीते हैं, क्योंकि उनके शरीर और दिमाग का विकास नहीं हो पाता है.
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