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आधे-अधूरे मन से IL&FS संकट सुलझाना मोदी सरकार के लिए बेहद मुश्किल

IL&FS क्राइसिस से उबरने के लिए सरकार ने जो फैसला लिया है वो आधा-अधूरा है, क्योंकि सरकार ने यूटीआई का सबक नहीं सीखा

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम, पूर्णेंदु प्रीतम
वीडियो प्रोड्यूसर: अनुभव मिश्रा

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सितंबर 2018 के अंत में मैंने एक लेख लिखा था, इस लेख में मैंने प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली को अलर्ट किया था कि IL&FS का जो क्राइसिस है उसमें किसी कश्मकश में मत रहिए. इस लेख का मैंने नाम रखा था-The Fable of Two Faxes.

मैं बड़ा खुश हुआ, जब 72 घंटे के बाद ही सरकार ने बहुत तेज एक्शन लिया. IL&FS के पूरे बोर्ड को भंग कर दिया गया. प्राइवेट सेक्टर के बहुत ही भरोसेमंद लीडर जैसे उदय कोटक और विनीत नैयर को नए बोर्ड में नामित किया गया लेकिन मैं तब भी कहूंगा कि ये जो सरकार ने फैसला लिया था वो आधा-अधूरा था. क्योंकि जो सरकार ने सबक लिया था, वो केवल एक कहानी से लिया था, वो है- सत्यम की कहानी.

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आखिर 'सत्यम का सबक' क्या है?

आपको ध्यान होगा कि सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज लिमिटेड अरबों डॉलर की कंपनी थी. जिसका बिजनेस 67 देशों में, 6 महाद्वीप में फैला हुआ था. साथ ही ये भी ध्यान होगा कि 7 जनवरी 2009 को इसके फाउंडर रामलिंगा राजू ने एक बहुत ही चौंका देने वाला फैक्स बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज को भेजा था. इस फैक्स में लिखा था,

मेरी कंपनी की 30 सितंबर 2008 तक की बैलेंसशीट में 1 अरब डॉलर के फर्जी कैश की जानकारी दी गई है. ये फ्रॉड इसलिए हुआ क्योंकि कंपनी कई साल से मुनाफे को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रही है

इसके बाद रामलिंगा राजू कहते हैं,

अब मैं अपनी इस गलती के लिए खुद को कानून के हवाले करता हूं और मैं सजा भुगतने के लिए तैयार हूं.
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'सत्यम' के वक्त बहुत तेजी से हुआ था एक्शन

जैसे ही ये फैक्स स्टॉक एक्सचेंज पर आया चारों तरफ हाहाकर मच गया. सत्यम का शेयर 78 पर्सेंट नीचे आ गया. देश के शेयर बाजार में 7 पर्सेंट गिरावट आई लेकिन बहुत जल्दी एक्शन भी हुआ. सत्यम को इसके तुरंत बाद 30 शेयरों वाले इंडेक्स, सेंसेक्स से बाहर कर दिया गया. बाहर की जो एजेंसियां थीं, एक्सपर्ट थे, वो कह रहे थे कि ये बहुत बड़ा स्कैंडल है.

सीएलएसए ने इस घटना को भारत का ‘एनरॉन’ बताया. उसने कहा कि ऐसे एकाउंटिंग फ्रॉड की कल्पना भी मुश्किल है और ये भारत के कॉरपोरेट गवर्नेंस के इतिहास के लिए शर्मनाक है. हिंदुस्तान का जो कंपनी लॉ बोर्ड था वो बहुत जल्दी एक्शन में आ गया. लॉ बोर्ड ने अपने आपात अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए सत्यम कंप्यूटर सर्विसेज के पूरे बोर्ड को निकाल बाहर किया.
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मनमोहन सिंह सरकार ने बदल दिया था बोर्ड

तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने कहा, ये ऐसा हादसा है कि हिंदुस्तान के आईटी सेक्टर की विश्वसनीयता के साथ हम कोई समझौता नहीं करेंगे. इसलिए हम जो कदम उठाएंगे, बहुत जल्दी उठाएंगे. उन्होंने उस वक्त प्राइवेट सेक्टर के बहुत ही रेस्पेक्टेड प्रोफेशनल्स को नए बोर्ड में जगह दी. इतने बड़े स्कैंडल के सिर्फ 3 महीने बाद ही सत्यम को बेच दिया गया.

ब्रिटिश टेलीकॉम और भारत के महिंद्रा ग्रुप का एक नया ज्वाइंट वेंचर बना. जिन्होंने 58 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से कंपनी खरीदी. कंपनी का नाम बदलकर महिंद्रा सत्यम किए जाने पर इंवेस्टर इतना उत्साहित हुए कि स्टॉक प्राइस दोगुना हो गया. और उस दिन सरकार ने एक बहुत बड़ा सबक सीखा

जब फाइनेंशियल मार्केट में आग लगी हो , उस वक्त बहुत जल्द एक्शन लेना जरूरी है.

सत्यम क्राइसिस से कहीं बड़ा है IL&FS क्राइसिस

अगर अब देखा जाए तो IL&FS का जो क्राइसिस है वो बहुत बड़ा है, पूरी फाइनेंशियल इकनॉमी में फैला है. ये सत्यम क्राइसिस से कहीं बड़ा है. सत्यम तो एक फाउंडर का एक कंपनी में एक फ्रॉड था. ये भी आपको मानना होगा कि लोग समझते हैं कि IL&FS एक अर्ध-सरकारी कंपनी है, क्योंकि कंपनी पर एसबीआई और एलआईसी सहित कुछ सरकारी कंपनियों का कंट्रोल और मालिकाना हक है. ऐसे में लोग इसे सरकारी कंपनी, सरकारी संस्था समझते हैं. ये वक्त नहीं है कहने का कि

देखिए ये सरकारी नहीं है, आधी सरकारी है. अगर हम आज प्राइवेट कंपनी की मदद करेंगे तो आगे दूसरी कंपनियों को मदद करना पड़ेगा

हिंदुस्तान की इकनॉमी को बर्बाद होता नहीं देख सकते

हिंदुस्तान की इकनॉमी बहुत बड़ी इकनॉमी है-3 ट्रिलियन डॉलर. हम इसे चंद बिलियन डॉलर के लिए बर्बाद होता नहीं देख सकते. मुझे फिर दोहराना पड़ेगा कि प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री जेटली को मेरा दूसरा सबक भी पढ़ना चाहिए, उन्होंने सिर्फ सत्यम वाला सबक पढ़ा है.

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दूसरा सबक क्या है?

ये जो दूसरा सबक वाला फैक्स है, वो लुटियंस दिल्ली में शनिवार, 30 जून 2001 की शाम को दो फाइनेंस मिनिस्ट्री के ऑफिशियल्स के फैक्स मशीन में आता है. ये एक SoS था, ये एक इमरजेंसी रिक्वेस्ट थी. यूनिट ट्रस्ट ऑफ इंडिया जो कि पब्लिक सेक्टर म्यूचुअल फंड था. इसकी स्थापना 1963 में संसद में पास एक कानून के तहत की गई थी. ये फंड बहुत ही बड़ा था, देश की पूरी मार्केट कैपिटलाइजेशन का करीब 8 पर्सेंट इसके कंट्रोल में था.

यूटीआई की फ्लैगशिप स्कीम होती थी- यूएस-64. इस स्कीम का पूरी तरह से दिवालिया निकल गया था. निगेटिव रिजर्व के चलते इसकी नेट एसेट वैल्यू (एनएवी) करीब-करीब खत्म हो गई थी. यूटीआई के जो फंड मैनेजर थे उनकी साठगांठ केतन पारेख से हो गई थी. केतन पारेख जो स्टॉक स्कैम में दोषी भी करार हुए थे. फंड मैनेजर उनके साथ मिलकर स्टॉक मार्केट में गलत ट्रांजेक्शन करते थे. उदाहरण के तौर पर,

  • यूएस-64 के पास एचएफसीएल के 1 करोड़ शेयर थे, जिसकी कीमत 2,553 रुपये से घटकर 79 रुपये रह गई थी.
  • एक और उदाहरण श्रीवेन मल्टीटेक कंपनी का है, जिसके शेयर 450 से गिरकर 8.15 रुपये पर पहुंच गए.
तो इसका जो नेट एसेट वैल्यू था वो पूरी तरह खत्म हो गया था. लेकिन जो स्मॉल यूनिट होल्डर थे, उनको इस बात का अंदाजा नहीं था. वो समझ रहे थे कि उन्होंने अपना पैसा भारत सरकार की स्कीम में लगाया है, इसलिए वो सुरक्षित होगा. इसलिए जब शनिवार की उस शाम के फैक्स पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और सोमवार की सुबह जब छोटे निवेशकों को पता चला कि यूएस-64 में उनका पूरा निवेश, जिंदगी भर की कमाई खत्म होने जा रही है तो एकदम फिर हाहाकार मच गया.

जसवंत सिंह ने लिए थे बड़े फैसले

तकरीबन एक साल तक तत्कालीन वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा को ये नहीं सूझ रहा था कि यूएस-64 को बचाया जाए या इसे दिवालिया होने दिया जाए. ये सिलसिला करीब एक साल तक चला. अंत में उनका तबादला हो गया, उनकी जगह जसवंत सिंह आए.

जसवंत सिंह पहले दिन से ही इस मामले को लेकर साफ थे कि जो यूटीआई की स्कीम है वो सरकार की स्कीम है, केंद्र को इसका पूरा समर्थन करना चाहिए. उन्होंने 14,561 करोड़ रुपये का बेलआउट पैकेज दिया. इससे बाजार थोड़ा शांत हुआ, बाद में तो यूटीआई का निजीकरण भी कर दिया गया.

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यूटीआई के सबक को पूरी तरह नहीं सीख पाए मोदी-जेटली

अब मैं एक बार फिर IL&FS की कहानी पर आता हूं. मैं फिर कहता हूं कि जो सत्यम का सबक था, बोर्ड को बदल दिया गया, वो तो प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने ठीक किया. लेकिन जो यूटीआई का सबक है वो शायद पूरी तरह सीख नहीं पाए हैं. क्योंकि IL&FS जो बाजार में लोगों का पैसा वापस नहीं कर पा रही है इसका रुकना बहुत जरूरी है, नहीं तो बहुत ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है. नया बोर्ड हो या पुराना, अगर ये डिफॉल्ट बंद नहीं हुआ तो बहुत बड़ा नुकसान होगा. स्टॉक मार्केट में 10 से 12 लाख करोड़ की निवेशकों की पूंजी को खत्म कर दिया है. अभी भी देखिए हमारी जो क्रेडिट इकनॉमी है, जो लेन-देन वाली इकनॉमी है वो एकदम बंद हो सकती है. आपको ध्यान देना होगा कि

  • पब्लिक सेक्टर बैंक ने IL&FS को 40 हजार करोड़ रुपये टर्म लोन के तौर पर दिया है
  • प्रॉविडेंट और पेंशन फंड, इंश्योरेंस कंपनियों ने 30 हजार करोड़ रुपये दिया है
  • एनबीएफसी, म्यूचुअल फंड और दूसरे कर्जदाताओं ने 20 हजार करोड़ दिया है

अगर IL&FS डिफॉल्ट नहीं रोकता है तो इन पैसों से हाथ धोना पड़ जाएगा. ये बहुत जरूरी है कि यूटीआई का सबक भी सरकार सीखे.

31 मार्च 2019 तक IL&FS को चाहिए 34000 करोड़

आज से 31 मार्च 2019 तक IL&FS को 34 हजार करोड़ रुपये चाहिए. सरकार को कहना चाहिए कि ये पैसे किसी भी तरह हम IL&FS को देंगे. सरकार को कहना चाहिए कि आज के बाद डिफॉल्ट नहीं होगा. ये सरकार को कहना है, सरकार ने नहीं कहा है. विकल्प सरकार के पास बहुत हैं, एक उदाहरण मैं आपको देता हूं.

NIIF के लिए सुपीरियर डेट/इक्विटी इंस्ट्रूमेंट तैयार कर सकती है सरकार, जिससे वो इमरजेंसी कैश IL&FS में डाल सकता है. जब IL&FS के एसेट बिकने के बाद उसके पास पैसा आएगा, तो सबसे पहले NIIF को लोन वापस दिया जाएगा. ये महज एक उदाहरण है, सरकार के पास कई और रास्ते हैं. मैं फिर दोहराऊंगा की डिफॉल्ट को रोकना बेहद जरूरी है. जब मार्केट फिर स्थिर हो जाए, तब रेगुलेटर देखे कि ये गलती आखिर किसने की, किसकी वजह से ये हुआ. फाउंडर की गलती थी या डायरेक्टर की गलती थी. सब कुछ की जांच कीजिए, लेकिन तब जब मार्केट स्थिर हो जाए.

ये एक विडंबना है...

ये एक विडंबना है कि प्रधानमंत्री को आज सबक लेना होगा. ये सबक उनको लेना होगा उन दो राजनीतिज्ञों से जिन्हें वो नापसंद करते हैं. एक हैं पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, जिन्होंने सत्यम में तेज कार्रवाई की थी. दूसरे हैं पूर्व वित्त मंत्री जसवंत सिंह, जिन्होंने यूटीआई में तेज कार्रवाई की थी.

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