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देश के लिए अपने बलिदान के 13 दिन पहले परिवार के सबसे छोटे बेटे शहीद सिपाही गुरबिंदर सिंह 22 साल के हुए थे. 15 जुलाई को गलवान में चीन के साथ झड़प में वो शहीद हो गए थे.
पंजाब के संगरुर का तोलावल गांव में सिपाही गुरबिंदर सिंह का परिवार उनकी वापसी का इंतजार कर रहा था. परिवारवाले उनकी शादी की योजनाएं बना रहे थे. 10 महीने पहले ही उनकी सगाई हुई थी.
हम उसकी शादी की योजना बना रहे थे. मैंने उससे पूछा, ‘तुम सब क्या चाहते हो कि हम शादी के लिए क्या करें?’ जिस पर, उसने कहा, ‘चिंता मत करो, हम सब कुछ करेंगे, जब मैं घर वापस आ जाउंगा’ मैंने उससे ये भी कहा कि हमें सोना खरीदना है और कीमतें बढ़ रही हैं. उसने मुझे चिंता न करने के लिए कहा और मुझे आश्वासन दिया कि भले ही कीमत कुछ हजार बढ़ जाए, हम पैसे का इंतजाम कर लेंगे.चरणजीत कौर, शहीद गुरबिंदर सिंह की मां
परिवार के साथ अपनी आखिरी बातचीत में गुरबिंदर सिंह ने उन्हें बताया कि वो कश्मीर घाटी के निचले हिस्से में जा रहे हैं. गुरबिंदर की मां का कहना है कि वो जब भी फोन करते थे सिर्फ 'फौज' के बारे में बात करते थे.
वो हमेशा मुझे पढ़ाई के लिए कहते थे, ताकि मैं भी अधिकारी बन सकूं. मैं उनसे कहती थी कि मैं सेना में शामिल नहीं होना चाहती, मैं एनआरआई बनना चाहती हूं. मुझे दुख है कि उस समय मैं उनकी बातों से सहमत नहीं थी.अब, सेना में शामिल होने को लेकर मेरी मानसिकता बदल गई है.जसमीन कौर, गुरबिंदर सिंह की भतीजी
गुरबिंदर अपने मामा को आर्मी की वर्दी में देखते हुए बड़े हुए थे. बचपन में ही उन्होंने सेना में शामिल होने का लक्ष्य बना लिया था और आखिरकार मार्च 2018 में आर्मी ज्वाइन कर ली. उसके बाद से छुट्टियों में साल में केवल तीन बार घर आया करते थे.
गुरबिंदर सिंह को श्रद्धांजलि के रूप में एक सरकारी स्कूल, तोलावल गांव में उनके घर तक की सड़क और एक स्टेडियम उनके नाम की जानी है.
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