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India on Time Magazine: कैसे जलवायु के भविष्य को लेकर भारत सबसे अहम देश बन गया?

Time Magazine के फरवरी 2023 अंक की कवर स्टोरी भारत की तेजी से बढ़ती ऊर्जा मांग और कोयले की आवश्यकता की बात करती है

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'How India Became the Most Important Country For The Climate's Future.' (कैसे भारत जलवायु के भविष्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण देश बन गया.)

यह टाइम पत्रिका के फरवरी 2023 अंक की कवर स्टोरी है, कहानी भारत में झारखंड के जस्टिन वर्लैंड ने लिखी गई है और तस्वीरें बांग्लादेश के एक फोटोग्राफर सरकार प्रोटिक द्वारा ली गई हैं.

यह स्टोरी भारत की तेजी से बढ़ती ऊर्जा मांग, इसके ऊर्जा परिवर्तन, नवीकरणीय ऊर्जा (renewable energy) के लिए जोर,और कोयले की आवश्यकता की बात करती है. यह विश्लेषण करती है कि भविष्य में भारत द्वारा उठाए जाने वाले ये सभी कदम दुनिया के लिए महत्वपूर्ण क्यों हैं.

लेखक ने दस दिनों की यात्रा की, इस दौरान झारखंड, राजस्थान और महाराष्ट्र पर ध्यान केंद्रित करते हुए उसने "कोयला समुदायों (Coal Communities), नवीकरणीय-ऊर्जा साइटों का दौरा किया, और देश के राजनीतिक और वित्तीय केंद्रों में नेताओं के साथ ऊर्जा के एक विकल्प से दूसरे पर ट्रांजिशन के लिए भारत के दृष्टिकोण को समझने के लिए उनसे बात की."

वर्लैंड लिखते हैं, "तर्क जो भी हो, मैंने भारत में शिक्षाविदों से लेकर नवीकरणीय-ऊर्जा अधिकारियों तक जिनसे भी बात की, इनमें कोई ऐसा नहीं था जो कोयले से दूर किसी और विकल्प को अपनाने के लिए एक तेज बदलाव का समर्थन करे."

लेखक लिखते हैं कि औद्योगीकरण (इंडस्ट्रीलाइजेशन) का मूल रूप से झारखंड जैसे स्थानों से जीवाश्म ईंधन (फॉसिल-फ्यूल) के साथ भारी समर्थन किया गया. हालांकि, जलवायु परिवर्तन के कारण डीकार्बोनाइजेशन की बढ़ती जरुरत के साथ, एक्सपर्ट्स भारत से कोयले को चरणबद्ध तरीके से छोड़ने और उसकी जगह ऊर्जा के ज्यादा से ज्यादा नवीकरणीय विकल्पों को अपनाने का आह्वान कर रहे हैं. लेखक लिखते हैं, इससे राजस्थान के हरित ऊर्जा मॉडल की ओर ज्यादा ध्यान आकर्षित हुआ है.

"ऐतिहासिक रूप से, झारखंड जैसे स्थानों से जीवाश्म ईंधन ने औद्योगीकरण को संचालित किया. लेकिन आज, जलवायु संबंधी चिंताओं के बढ़ने के साथ, कई विशेषज्ञ भारत से जल्द से जल्द कोयले को हटाने और राजस्थान में प्रचलित हरित-ऊर्जा मॉडल (green-energy model) को अपनाने का आह्वान कर रहे हैं."
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यहां वो प्रमुख तर्क दिए गए हैं जो लेखक ने सामने रखे हैं:

"भारत इतनी तेजी से बढ़ रहा है कि इसकी ऊर्जा मांग प्रभावी रूप से बहुत ज्यादा है"

जैसे-जैसे उत्सर्जन में कमी पर चर्चा वैश्विक महत्व प्राप्त कर रही है, यूरोप, अमेरिका और चीन ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय की बढ़ती मांग की वजह से अपने उत्सर्जन में भारी कटौती करने की जरुरत को महसूस किया है. जैसे-जैसे इन देशों में हरित नीतियां सफलता की ओर बढ़ रहीं हैं, भारत लिस्ट में अगला देश होगा.

वर्लैंड ने नीति आयोग के वाइस चेयरमैन सुमन बेरी से बात की, जिन्होंने तर्क दिया कि भारत "ऊर्जा पहुंच और सामर्थ्य, ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय विचारों के बीच संतुलन" की मांग करते हुए स्वच्छ ऊर्जा को आगे बढ़ाएगा.

जिस पर वर्लैंड लिखते हैं: "जहां यह संतुलन बना है, वह दुनिया भर में जलवायु के पैमाने को प्रभावित कर सकता है."

उनका कहना है कि निम्न-कार्बन विकास (लो-कार्बन डेवलपमेंट) सुनिश्चित करने में भारत की विफलता "पूरे वैश्विक दक्षिण में जीवाश्म ईंधन में कमी" का कारण बन सकती है.

भारत कुल वैश्विक उत्सर्जन में 7 प्रतिशत योगदान के लिए जिम्मेदार है, लेकिन आर्थिक स्तर पर देश को पूरी तरह से विकसित करने के प्रयासों में, उत्सर्जन की दर में भारी वृद्धि होने की उम्मीद है.

वर्लैंड का तर्क है कि भारत का आर्थिक विकास का मॉडल पेरिस समझौते द्वारा तय किए गए अपने जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने में दुनिया की मदद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. इस समीकरण में उतना ही महत्वपूर्ण ग्लोबल नॉर्थ है.

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'कोयला संपन्न झारखंड - अस्पतालों, स्कूलों तक को विश्वसनीय बिजली नहीं दे सकता'

झारखंड को भारत का कोयला केंद्र कहा जा सकता है, और कोयला ही वर्लैंड को इस राज्य तक ले आया.

वर्लैंड लिखते हैं, "भारत का दूसरा सबसे गरीब राज्य एक चरम उदाहरण हो सकता है, लेकिन ऐसी समस्याएं देश के हर कोने में हैं और इसकी ऊर्जा और जलवायु चुनौती की जड़ हैं."

वह मानते हैं कि एक विकासशील राष्ट्र होने के नाते, भारत के नेता "किसी भी ईंधन स्रोत को पूरी तरह ब्लॉक नहीं करना चाहते हैं, जबकि ऊर्जा की मांग में भारी बढ़ोत्तरी जारी है."

अगले 40 वर्षों में भारत की जनसंख्या वृद्धि लगभग 1.8 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान है, और इससे देश की ऊर्जा मांगों में तेजी से बढ़ोतरी होगी. IAA के मुताबिक, इन मांगों को पूरा करने के लिए भारत को पूरे यूरोपीय संघ (EU) के बराबर बिजली व्यवस्था की आवश्यकता होगी.

वर्लैंड का तर्क है कि भारत चीन के रास्ते पर चल सकता है. चीन ने अपने उद्योगों को मुख्य रूप से कोयले पर विकसित किया और दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया. और अब आक्रामक रूप से अपनी नवीकरणीय ऊर्जा के विस्तार पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. "भारत, अपने भरपूर कोयला संसाधनों के साथ, बस वही कर सकता है."

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भारत का ऊर्जा भविष्य भारत के ऊपर निर्भर है

वर्लैंड ने विस्तार से भारत के ऊर्जा भविष्य को मैप करने की कोशिश की है और यह बताने की कोशिश कि यह हमारे लिए कितना मुश्किल, आसान या लाभदायक हो सकता है,

"एक सहज ट्रांजिशन न केवल भारत के लिए बल्कि दुनिया के बाकी हिस्सों के लिए भी मायने रखता है - विकासशील देशों में उनके आर्थिक विकास को ध्यान में रखते हुए ऊर्जा बदलाव को कैसे लागू किया जाए, यह उसका टेस्ट केस है"

लेकिन इसके लिए धन की आवश्यकता होगी, वर्लैंड का अनुमान है कि विश्व स्तर पर ऊर्जा परिवर्तन में खरबों डॉलर खर्च होंगे.

भारत को हरित प्रौद्योगिकी (ग्रीन-टेकनोलॉजी) की ओर बढ़ने की दिशा में अपने सफर को जारी रखने के लिए, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) द्वारा अनुमानित वैश्विक जलवायु (global climate targets) लक्ष्यों को पूरा करने में सक्षम होने के लिए देश को 1.4 ट्रिलियन डॉलर के निवेश की जरुरत होगी.

हालांकि, इस राशि को आकर्षित करने के लिए, "भारत को पहले दुनिया के बाकी हिस्सों को विश्वास दिलाना होगा कि कम कार्बन विकास के लिए उसका मॉडल काम कर सकता है."

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