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भारत फैसला करे, फुटबॉल से सच में प्यार है या यूं ही बस दिखावा है!

भारतीय ओलंपिक संघ ने फुटबॉल टीम को एशियन गेम्स 2018 में हिस्सा लेने से रोक दिया है

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वीडियो एडिटर: राहुल सांपुई

कैमरा: शिव कुमार मौर्य

"ये सिर्फ गोल की बात नहीं है जो इस खेल में होंगे, ये भारत के उस गोल (लक्ष्य) की बात है जो इस पीढ़ी के साथ हम हासिल करेंगे. ये एक नई जनरेशन है. ये न्यू इंडिया है. सब कुछ मुमकिन है "

ये शब्द हैं भारत के स्पोर्ट्स मिनिस्टर राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के जो इस साल की शुरुआत में भारतीय फुटबॉल की ताकत के बारे में बात कर रहे थे. अपने खुद के स्पोर्ट्स मिनिस्टर का ये 'ज्ञान' सुनने के बाद भी भारतीय ओलंपिक संघ ने अगले महीने होने वाले एशियन गेम्स में हिस्सा लेने के लिए भारतीय फुटबॉल टीम को बैन कर दिया है.

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हां, भारतीय टीम पिछले एशियन खेलों में एक भी मैच नहीं जीत पाई. हां, पिछले 11 एशियन गेम्स में भारत ने एक भी फुटबॉल मेडल नहीं जीता है और हां,एशियन गेम्स में जाने के लिए स्पोर्ट्स मिनिस्ट्री ने जो "टॉप 8 रैंकिंग" वाला फॉर्मूला अपनाया उसमें फुटबॉल टीम नहीं है.

लेकिन भूलो मत कि ये फुटबॉल है. वही स्पोर्ट्स जिसके अंडर-17 विश्व कप को होस्ट करने के लिए भारत ने पिछले साल करोड़ों रुपए खर्च किए ताकि लोग इस खेल से जुड़ सकें. ये वही खेल हैं जिसमें एक 3.5 लाख की आबादी वाला छोटा सा देश आइसलैंड विश्व कप में अर्जेंटीना के छक्के छुड़ा देता है लेकिन हमारा कप्तान सोशल मीडिया पर लोगों से हाथ जोड़कर गुजारिश करता है कि यार हमारा मैच देख लो.

ये फुटबॉल है दोस्तों! एक ग्लोबल स्पोर्ट जिसमें भारत की कोई औकात नहीं है!

तो क्यों ना नियमों को तोड़ा जाए और एक चांस लिया जाए. 'एशियन गेम्स ' कोई एक्सपोजर ट्रिप नहीं है, ये एक ऑफिशियल लाइन है लेकिन क्यों ना इसे एक्सपोजर ट्रिप बनाया जाए.

एशियन गेम्स की फुटबॉल टीम में ज्यादातर खिलाड़ी अंडर-23 के होते हैं और सिर्फ 3 सीनियर खिलाड़ी ही यहां हिस्सा ले सकते हैं. तो क्यों ना इन युवा खिलाड़ियों को अपने देश का प्रतिनिधित्व करने, ब्लू जर्सी पहनने, अलग-अलग देशों के बड़े-बड़े एथलीट्स से मिलने का मौका मिले? उन्हें भी भारत के विशाल  दल का हिस्सा होना चाहिए.

इस बार भारत 524 खिलाड़ियों का विशाल दल भेज रहा है जिसमें 8 खेल ऐसे हैं जिनकी टीम पहली बार जा रही है. इन खेलों में कुराश, पेंचक सिलाट, सांबो, सिपाक टकरा, रोलर स्केटिंग, सॉफ्ट टेनिस, कराटे और ट्रायथलॉन. तो ऐसे में जहां नए खेलों की हौसला अफजाई हो रही है तो पुराने खेल से ऐसा भेदभाव क्यों? वो भी तब, जब ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन ने खुद खिलाड़ियों का खाने-पीने और आने-जाने का खर्चा खुद उठाने की बात कही हो.

“अगर खर्चे की ही बात है तो हम खिलाड़ियों के आने-जाने और खाने-पीने का खर्च उठाने के लिए तैयार हैं”

क्या बाकि स्पोर्ट्स के साथ भी फुटबॉल वाले ही नियम चले हैं? पिछले एशियन खेलों में 9 टीमों में 8वां स्थान हासिल करने वाली महिला हैंडबॉल टीम तो 2018 के लिए क्वालीफाई कर गई लेकिन फुटबॉल टीम जिसने पिछले एशियन खेलों के बाद अद्भुत तरीके से खेल सुधारते हुए साल 2015 की 173वीं रैंक को अब 97 कर दिया, उन्हें घर बैठना पड़ेगा.

और अगर सच में जिस टूर्नामेंट में हम टॉप-8 टीमों में नहीं होते वहां खेलते नहीं हैं तो भारत डेविस कप क्यों खेलता है?  क्योंकि कोशिश करने वाले को ही जीत मिलती है. है ना? तो कम से कम फुटबॉल टीम को कोशिश करने का ही चांस दे दो.

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