नाबालिक बच्ची के रेप के मामले में वाराणसी (Varanasi) के एक स्कूल संचालक से घूस मांगने के आरोपों से घिरे 2018 बैच के आईपीएस (IPS) अनिरुद्ध कुमार का आखिरकर तबादला हो गया. मार्च 2023 में अनिरुद्ध कुमार का वीडियो कॉल पर वाराणसी के एक स्कूल संचालक से घूस मांगते हुए वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था.
आनन-फानन में 12 मार्च को वाराणसी कमिश्नर से 3 दिन के अंदर इस मामले में रिपोर्ट तलब की गई. इस आदेश को आए 20 दिन से ज्यादा का वक्त निकल गया है लेकिन अभी जांच रिपोर्ट पुलिस मुख्यालय तक नहीं पहुंची है.
विश्वस्त सूत्रों की माने तो आरोप यहां तक लग रहे हैं कि इस जांच के शुरू होने के लिए एक वरिष्ठ अधिकारी के रिटायर होने का इंतजार किया जा रहा था. 30 मार्च को इस अधिकारी के रिटायर होते ही जांच एक कदम आगे बढ़ी और नाबालिग से रेप के मामले में बीस लाख रुपए का घूस मांगने का आरोप झेल रहे आईपीएस अधिकारी अनिरुद्ध कुमार को मेरठ से हटाकर सीबीसीआईडी भेज दिया गया है.
अनिरुद्ध कुमार का यह कथित घूस कांड पुलिस महकमे के लिए गले की हड्डी साबित हो रहा है.
वायरल वीडियो के सोशल मीडिया पर आने के बाद महकमे के वरिष्ठ अधिकारियों ने अपने बयान में कहा था कि यह वीडियो पुराना है और इसकी जांच हो चुकी है. यह वीडियो पहले कब आया इसके बारे में अभी तक कोई जानकारी निकलकर नहीं सामने आई है लेकिन अगर सूत्रों की माने तो महकमे के कुछ आला अधिकारियों को इस वीडियो के बारे में पहले से जानकारी थी.
कहा तो यहां तक जा रहा है कि इस वीडियो के बारे में जब महकमे को पहली बार पता चला था तो अनिरुद्ध कुमार को वाराणसी से हटाकर इंटेलिजेंस विभाग में भेज दिया गया था. वहां पर एक वरिष्ठ अधिकारी का उन्हें संरक्षण प्राप्त हुआ जिसके बाद गंभीर आरोपों से घिरे आईपीएस अनिरुद्ध कुमार को मेरठ के एसपी ग्रामीण जैसे महत्वपूर्ण पद पर तैनाती भी मिली. जिस वरिष्ठ अधिकारी का संरक्षण प्राप्त था उस अधिकारी के रिटायर होते ही समीकरण बदलने अब शुरू हो गए हैं.
इस घूसकांड में जांच की बात करें तो सबसे पहले यह पता लगाने की कोशिश की गई कि इस वीडियो को वायरल करने के पीछे किसका हाथ था. महकमे में इस वीडियो की वजह से शुरू हुए कोल्ड वॉर का सबसे पहला निशाना वाराणसी में पूर्व में तैनात एक पुलिस कमिश्नर बने जिनका तबादला लखनऊ से मुरादाबाद कर दिया गया. इन सब कार्रवाई के बीच अभी तक असली आरोपों की कोई जांच नहीं हो पाई है.
नाबालिक के रेप जैसे जघन्य अपराध के मामले में एक आईपीएस अधिकारी द्वारा घूस मांगने के कथित आरोपों की जांच प्राथमिकता से क्यों नहीं कराई जा रही है? पूर्व में ऐसे गंभीर आरोप जिस भी अधिकारी पर लगे उसको महत्वपूर्ण पद से हटाकर मुख्यालय से अटैच कर दिया जाता है ताकि वह जांच को किसी भी तरीके से प्रभावित ना कर सके. इस मामले में ऐसा क्यों नहीं हुआ?
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