ADVERTISEMENTREMOVE AD

इस्लामोफोबिया: नफरत की फैक्ट्री पर भारत क्यों नहीं लगाता लॉकडाउन?

जहां दुनिया नफरत के खिलाफ बोल रही है वहां अपने लोकतंत्र पर गर्व करने वाला भारत क्यों नफरत के खिलाफ नहीं बोल रहा?

Published
छोटा
मध्यम
बड़ा
ADVERTISEMENTREMOVE AD

वीडियो एडिटर- आशुतोष भारद्वाज

‘अस्सलामो अलैकुम... इस्लामोफोबिया सच्चाई है.. हमें एक साथ खड़े होकर नफरत और इस्लामोफोबिया (Islamophobia) को ना कहना है, हमें आतंक और नस्लवाद को ना कहना चाहिए.” ये शब्द हैं जस्टिन ट्रूडो (Justin Trudeau) के. एक नेता, कनाडा के प्रधानमंत्री (PM of Canada) . इनके यहां एक मुस्लिम परिवार के 4 लोगों को एक ट्रक वाले ने मार डाला, क्यों मारा? क्योंकि वो मुसलमान थे. फिर क्या था पीएम इस घटना पर खुद सामने आए, सिर्फ निंदा ही नहीं की. इस घटना को 'आतंकवादी हमला' करार दिया.

हमारे देश में लिंचिंग, अल्पसंख्यक समाज के लोगों को धमकियां, आतंकी, खालिस्तानी, देश छोड़ कर चले जाओ, जिहादी जैसी बाते होती हैं. लेकिन इस हिंसा और नफरत को रोकने में न सबका साथ दिख रहा, न सबको सुरक्षा का विश्वास दिलाया जा रहा है. न पीएम न कोई मंत्री न राष्ट्रपति सामने से आकर कहते हैं कि अब बस.. जब सब मौन हैं तो हम पूछेंगे जनाब ऐसे कैसे?

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ओंटारियो प्रांत में एक युवक ने अपने ट्रक से मुस्लिम परिवार के पांच लोगों को रौंद डाला, जिनमें से चार की मौत हो गई. पीड़ितों को उनके धर्म के कारण निशाना बनाया गया था. ऐसी घटना से कनाडा में प्रधानमंत्री से लेकर आम लोग शर्मिंदा महसूस कर रहे हैं.

लेकिन हमारे यहां ऐसी घटनाओं पर शर्मिंदा नहीं 'फीलिंग प्राउड' वाला मोमेंट चल रहा है.

आपने ऊपर के लाइनों में जस्टिन ट्रुडो के भाषण का एक हिस्सा पढ़ा होगा. जिसमें वो एक शब्द कहते हैं- Islamophobia..

कैमब्रिज डिक्शनरी के मुताबिक Islamophobia का मतलब होता है- unreasonable dislike or fear of, and prejudice against, Muslims or Islam. मतलब इस्लाम या मुसलमानों के प्रति बिना वजह नापसंद, डर या पूर्वाग्रह रखना.

अब आप ये पढ़िए-

“नहीं हैं हमारे बच्चे दोषी. हमारी बहन बेटियों की अश्लील पिक्चर बनाते हैं और हम उनका मर्डर भी न करें. हिंदू बड़ा अच्छा है. मुस्लिम को भाई कहेंगे. अरे किसके भाई? ये कसाई हैं.”
सूरज पाल अमू

ये शब्द हैं, बीजेपी के प्रवक्ता सूरज पाल अमू के. अब एक सवाल पूछता हूं. क्या इस शख्स को सजा मिलनी चाहिए या इनाम? हमारे देश के कानून के हिसाब से मिलनी तो सजा चाहिए लेकिन मिला है इनाम. इन्हें हरियाणा में बीजेपी का प्रवक्ता बनाया गया है. सूरज पाल का इस्लामोफोबिया बस एक ट्रेलर है.

मोहम्मद अखलाक से लेकर पुणे के मोहसिन, अलवर में पहलु खान, राजस्थान में जुनैद, हरियाणा में आसिफ, उन्नाव का फैसल न जाने कितनों की जिंदगी लिंचिंग से लेकर पुलिस टॉर्चर ने छीन ली.

कमाल तो ये है कि हमारे यहां मॉब लिंचिंग का वीडियो वायरल होता है, लोग सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं, फिर कुछ जगह खबरें छपती हैं, जब बहुत ज्यादा प्रेशर बनता है तो कुछ केस में पुलिस गुनहगारों को पकड़ लेती है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

लेकिन हमारे यहां ट्रुडो की तरह निंदा या एक्शन नहीं बल्कि आतांकियों का फूल माले से स्वागत होता है. कभी मंत्री स्वागत करते हैं तो कभी समाज.

आतंकियों की ये हरकत मानों उसके पॉलिटिकल करियर के लिए सीवी या resume में एक्सपीरियंस का काम करती है. जो जितना नफरत फैलाए उसका कद उतना ऊंचा.

क्या सूरज पाल अमु जैसे नफरत फैलाने वालों को प्रवक्ता बनाने की खबर देश के पीएम को नहीं है?
ADVERTISEMENTREMOVE AD

भड़काऊ बयान, लेकिन पुलिस नहीं लेती एक्शन

इस्लामोफोबिया का एक और उदाहरण देते हैं. उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद के डासना मंदिर का पुजारी नरसिंहानंद सरस्वती लगातार मुसलमानों के खिलाफ खुलेआम बयान दे रहा  है. नरसिंहानंद के ऐसे कई बयान यूट्यूब पर मौजूद हैं पुलिस एक्शन नहीं लेती. कोर्ट संज्ञान नहीं लेते.

जबकि इस देश में हेट स्पीच के खिलाफ IPC की धारा 124A, 153A और 153B, 295 A, 298, 505(1) और (2), CRPC की धारा 95 मौजूद है.

मंत्री अनुराग ठाकुर गोली मारो के नारे लगवाते हैं, बीजेपी नेता और सांसद प्रवेश सिंह वर्मा दिल्ली चुनाव के दौरान नफरत फैलाने वाला बयान देते हुए कहते हैं कि वह आपके घरों में घुसेंगे, आपकी बहनों और बेटियों के साथ बलात्कार करेंगे, उन्हें मारेंगे. लेकिन न पुलिस एकशन लेती है न पार्टी. मतलब क्या इन लोगों के लिए अलग कानून है?

अल्पसंख्यक कितने सुरक्षित?

दिसंबर 2020 में साउथ एशिया स्टेट ऑफ माइनोरिटी रिपोर्ट आई थी, जिसके मुताबिक जब से भारत  “मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए खतरनाक और हिंसक जगह बन चुका है."

जहां दुनिया नफरत के खिलाफ बोल रही है वहां अपने लोकतंत्र पर गर्व करने वाला भारत क्यों नफरत के खिलाफ नहीं बोल रहा?

इन हिंसा और इस्लामोफोबिया को रोकने में न सबका साथ दिख रहा, न सबको सुरक्षा का विश्वास दिलाया जा रहा है. और हां विकास सिर्फ नफरत का हो रहा है. सोचिए इस देश के प्रधानमंत्री के कहने पर लोगों ने नोटबंदी को सह लिया, लॉकडाउन का दर्द झेल लिया, कोरोना वॉरियर के लिए ताली-थाली बजा ली, फिर क्या उनके कहने पर नफरत की सप्लाई रुक नहीं सकती है?

एक बार पीएम कह देंगे तो क्या उन भड़काऊ बयानों पर फुल स्टॉप नहीं लगेगा. ये जानते हुए भी वो अल्पसंख्यकों पर जुल्म पर चुप रहते हैं तो हम पूछेंगे जरूर जनाब ऐसे कैसे?

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×