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हम अपने ही छात्रों की आवाज क्यों नहीं सुन रहे?

ये जो इंडिया है ना...ये हमसे कुछ कह रहा है. लेकिन क्या हम सुन रहे हैं?

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वीडियो एडिटर: आशुतोष भारद्वाज

ये जो इंडिया है ना...ये हमसे कुछ कह रहा है लेकिन क्या हम सुन रहे हैं? क्या हम बिहार से पटना यूनिवर्सिटी के छात्रों की आवाज सुन रहे हैं? उत्तर प्रदेश से लखनऊ के नदवा कॉलेज, लखनऊ की इंटीग्रल यूनिवर्सिटी से आ रही आवाजों को सुन रहे हैं? मेरठ से चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी की आवाज क्या हम सुन रहे हैं?

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ऐतिहासिक बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के छात्र सवाल कर रहे हैं. BHU, जहां RSS के संस्थापक एमएस गोलवलकर और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने पढ़ाई की. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, जहां पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह और चंद्रशेखर ने पढ़ाई की, जहां हरिवंश राय बच्चन ने पढ़ाई की, मुरली मनोहर जोशी ने की. लिस्ट काफी लंबी है...क्या यहां के छात्रों के सवालों को हम नजरअंदाज करने की गलती करना चाहते हैं? क्या हम वर्धा में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की आवाज सुन रहे हैं?

क्या हमें याद भी है कि वर्धा वही जगह है, जहां महात्मा गांधी ने अपने जीवन के आखिरी 12 साल बिताए थे? और चूंकि हमें ये याद ही नहीं, तो कोई ताज्जुब नहीं कि हम महात्मा की उस सीख को भी भूल गए हैं, जिसने इंडिया को सेक्युलर और टॉलरेंट बनाया था.  

महाराष्ट्र में ही मुंबई यूनिवर्सिटी, टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, IIT मुंबई, सावित्रीबाई फुले पुणे यूनिवर्सिटी, पुणे का सिंबायोसिस लॉ कॉलेज इन सभी जगहों से उठ रही युवा आवाज को क्या कोई सुन रहा है?

क्या कोई सुन रहा है पुणे के मशहूर फर्ग्युसन कॉलेज को? वही फर्ग्युसन कॉलेज जिसकी स्थापना में लोकमान्य तिलक का हिस्सा था. जहां प्रधानमंत्री नरसिंहा राव से लेकर स्वतंत्रता सेनानी वीडी सावरकर ने पढ़ाई की. क्या हम वहां के छात्रों के आवाज को किसी का छुपा हुआ एजेंडा कहकर नजरअंदाज करना चाहते हैं?

उसी तरह नजरअंदाज जैसे सरकार ने दिल्ली की जामिया मिल्लिया इस्लामिया या अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटीया जेएनयू में हो रहे विरोध को दरकिनार कर दिया है?

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कहती हैं कि जिहादी, माओवादी और अलगाववादी इन कैंपस के छात्र आंदोलन में घुस गए हैं.

क्या इसके कोई नए सबूत हैं? क्या हम वो सबूत देख सकते हैं? लगता यही है कि मंत्री जी को किसी ने गलत जानकारी दी है और ऐसी गलत जानकारी के कारण इनमें से कुछ कैंपस में पुलिस ने ज्यादती की है. शायद इसलिए बुरी तरह घायल कई छात्र अस्पतालों में भर्ती हैं. शायद इसलिए उनके 'मन की बात' को सुनने के बजाय उनसे ऐसे निपटा जा रहा है जैसे वो सच में माओवादी हैं.

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ये जो इंडिया है ना...ये हमसे कुछ कह रहा है लेकिन क्या हम लाठियों से मार-मार कर ही उनकी बात सुनते हैं? तेलंगाना के हैदराबाद यूनिवर्सिटी की आवाज को क्या अनसुनी रहने दें? हैदराबाद के ही मौलाना आजाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी की बात न सुने? क्या ओस्मानिया यूनिवर्सिटी को चुप करा दें?

जहां मेरे नानाजी ने पढ़ाई की थी और उसके बाद आर्मी के अफसर बने.और 1948, 1962 और 1965 में देश के लिए लड़े. जी हां, छात्र विश्वविद्यालयों से, कॉलेज से बाहर निकलकर यही करते हैं देश की सेवा. क्या हम उस जुनून को, उस जज्बे को नजरअंदाज कर देंगे, उसको खारिज कर देंगे. उन्हें गालियां देंगे, उन्हें मारेंगे, उन्हें जेल में डाल देंगे?

ये जो इंडिया का भविष्य है ना...ये छात्र, ये हमसे कुछ कह रहे हैं. लेकिन कौन सुन रहा है?

IIT कानपुर, IIT मद्रास, IIM अहमदाबाद में पढ़ने वाले छात्रों की कौन सुन रहा है? या फिर इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरु में पढ़ने वाले देश के सबसे तेज दिमाग के बच्चों की कौन सुन रहा है?

ये वर्ल्ड क्लास युवा दिमाग है. अगर उन्हें सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट में कुछ गड़बड़ी लगती है, अगर NRC का आइडिया उन्हें डरावना लगता है तो क्या आपको, हमें और हमारी सरकार को उनकी नहीं सुननी चाहिए?

बताइये, हम दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों को क्यों नहीं सुन रहे हैं, जहां देशभर से छात्र पढ़ने आते हैं. यहां अलग-अलग विचारधारा और इलाके के छात्र जब एक ही चिंता जता रहे हैंतो हम उन्हें क्यों नहीं सुन रहे हैं?

क्या दिल्ली की गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी, अंबेडकर यूनिवर्सिटी या नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी की आवाजें सुनने लायक नहीं है? यहां पढ़ने वाले भविष्य के वकील पूछ रहे हैं कि क्यों हम अपने संविधान की बुनियाद को छेड़ रहे हैं? वो पूछ रहे हैं कि अगर सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता संशोधन कानून को असंवैधानिक करार दिया तो सरकार, क्या आप इसे वापस लेंगे?

ये जो इंडिया है ना.. ये हमसे कई जायज सवाल पूछ रहा है. क्या इन सवालों का साफ जवाब नहीं मिलना चाहिए?

क्या उन सवालों के जवाब नहीं मिलने चाहिए जो कोलकाता के जाधवपुर यूनिवर्सिटी में असम के डिब्रुगढ़ यूनिवर्सिटी में, गुवाहाटी की कॉटन यूनिवर्सिटी में, जो मणिपुर यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी, श्रीनगर के इस्लामिया कॉलेज, पॉन्डिचेरी यूनिवर्सिटी, कालीकट यूनिवर्सिटी औरकोचीन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी से उठ रहे हैं.

क्या हम तमिलनाडु के उन युवा छात्रों की आवाजों को नजरअंदाज करने के लिए तैयार हैं? लोयला कॉलेज, चेन्नई से, मोहम्मद सथक कॉलेज, चेन्नई से, न्यू कॉलेज, चेन्नई से, गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, वेल्लोर से, सेंट्रल यूनिवर्सिटी तिरुवरूर से...

ये जो इंडिया है ना...ये हमसे कुछ कह रहा है. लेकिन क्या हम सुन रहे हैं?

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