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JNU,JMI,AMU: छात्र आंदोलन इमरजेंसी के वक्त सही थे तो अब गलत क्यों?

विरोध करना खतरनाक नहीं है, ये रचनात्मक है. शांतिपूर्ण विरोध देशद्रोह नहीं है, लोकतंत्र में इसकी बहुत जरूरत है.

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहीम

क्या आप नवनिर्माण आन्दोलन के बारे में जानते हैं?

गुजरात .. 1973-74?

ठीक है, आप नहीं जानते होंगे लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी, उन्हें जरूर जानना चाहिए क्योंकि वो खुद इसका हिस्सा थे. हॉस्टल के खाने की फीस में बढ़ोतरी के खिलाफ छात्रों की हड़ताल. पूरे गुजरात में भ्रष्टाचार के खिलाफ इतने बड़े पैमाने पर आंदोलन हुए कि 3 महीने में कांग्रेस की चिमनभाई पटेल की सरकार गिर गई.

1975 में भी, आपातकाल के दौरान एक छात्र और आरएसएस प्रचारक के रूप में मोदी ने गुजरात में विरोध प्रदर्शन किया. महीनों अंडरग्राउंड रहे, उसी समय, दिल्ली में, उनके सहयोगी स्वर्गीय अरुण जेटली एक फायरब्रांड एबीवीपी नेता और डीयू छात्र संघ अध्यक्ष को आपातकाल के खिलाफ प्रदर्शन के लिए जेल में डाल दिया गया था. देशभर में, जयप्रकाश नारायण से प्रेरित हजारों छात्र सड़कों पर थे. उनमें नीतीश कुमार, लालू यादव और मुलायम सिंह .. सभी युवा नेता शामिल थे.

तो ये सब मैं आपको अभी क्यों बता रहा हूं? बात ये है कि छात्र जो कुछ भी गलत देखते हैं उसके खिलाफ विरोध करना, आंदोलन करना, असंतोष व्यक्त करना उनके डीएनए में है!

जब वे युवा, आदर्शवादी, संवेदनशील होते हैं, उनके आसपास क्या चल रहा है, इसके बारे में जानते हैं, और इसके बारे में एक मजबूत नजरिया रखते हैं. जब वे ऊर्जा से भरे होते हैं, और बेखौफ होते हैं तो, निश्चित रूप से, वे प्रदर्शन करेंगे!

वास्तव में, अगर देश में कुछ ऐसा हो रहा है जिसपर सवाल उठाया जाना चाहिए, और मैं किसी विश्वविद्यालय का कुलपति हूं और मेरे छात्र चुप रहें तो मुझे चिंता होगी. क्योंकि जिम्मेदार नागरिक बनाना हमारे विश्वविद्यालयों का काम है और इसलिए जब कुछ गलत हो रहा हो तो उन्हें विरोध करना चाहिए. शांति से. ये उनका अधिकार है, उनका कर्तव्य है.

और इसलिए ये कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि दिल्ली का जामिया मिलिया इस्लामिया, जो नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का केंद्र था, उसे शिक्षा मंत्रालय ने केंद्रीय विश्वविद्यालयों में नंबर 1 स्थान दिया है. और, कोई आश्चर्य की बात नहीं कि जेएनयू और अलीगढ़ विश्वविद्यालय .. जो दोनों नियमित रूप से छात्र विरोध के लिए खबरों में रहते हैं.. इस सूची में नंबर 3 और 4 पर हैं.

ये रैकिंग छात्र विविधता, फैकल्टी की गुणवत्ता, छात्र-शिक्षक अनुपात, परिसर का बुनियादी ढांचा, अनुसंधान की गुणवत्ता, जॉब प्लेसमेंट जैसे मानदंडों पर दी जाती है. इन विश्वविद्यालयों ने इन सभी में अच्छा स्कोर किया है.

और फिर भी कुछ महीने पहले जामिया में हमने यही देखा था, विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में छात्रों के साथ मारपीट करती हुई पुलिस. इसी तरह की पुलिस हिंसा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी देखी गई थी. और यही हमने जेएनयू में देखा था. छात्रों और संपत्ति को निशाना बनाते हुए नकाबपोश हमलावर. जबकि पुलिस ने कुछ नहीं किया.

जामिया और जेएनयू के छात्रों को वर्तमान में आतंकवादियों के लिए बनाए गए कानूनों के तहत गिरफ्तार किया जा रहा है. कुछ पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया है. कुछ पर इस साल फरवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हिंसा भड़काने की साचिश रचने का आरोप है.

जामिया के पूर्व कुलपति नजीब जंग ने क्विंट से बात करते हुए जामिया के छात्रों के विरोध का बचाव करते हुए कहते हैं कि जामिया भारत के शिक्षित, जिम्मेदार नागरिक पैदा करता है, मैकेनिकल रोबोट नहीं. और इसलिए अगर वे सरकार के ध्यान में कुछ लाना चाहते हैं, तो वे करेंगे.

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जामिया को 'राष्ट्र-विरोधी' का टैग देने वालों को नजीब जंग बताते हैं कि इस साल 30 जामिया छात्र IAS बने और 1920 में महात्मा गांधी ने जामिया की स्थापना में योगदान दिया था. पहला राष्ट्रीय कॉलेज बिना ब्रिटिश फंडिंग के, जिसके बाद गुजरात, बिहार, महाराष्ट्र और काशी विद्यापीठ, बंगाल नेशनल यूनिवर्सिटी जैसे कॉलेज आए. और इन सभी परिसरों में छात्रों ने हर बड़े स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया.

वास्तव में, स्वतंत्रता संग्राम में देशभर के कॉलेजों के छात्रों की भूमिका अच्छी तरह से डॉक्यूमेंटेड है -

  • फर्ग्यूसन कॉलेज, पुणे
  • प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता
  • विद्यासागर कॉलेज, कलकत्ता
  • बेथ्यून कॉलेज, कलकत्ता
  • पंजाब यूनिवर्सिटी, लाहौर
  • मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज
  • रेनशॉ कॉलेज, ओडिशा
  • उस्मानिया विश्वविद्यालय, हैदराबाद
  • सेंट्रल कॉलेज, कर्नाटक
  • महाराजा कॉलेज, कर्नाटक
  • रामजस कॉलेज, दिल्ली
  • हिंदू कॉलेज, दिल्ली
  • सेंट स्टीफंस कॉलेज, दिल्ली

रामजस कॉलेज, दिल्ली के छात्रों ने कई महीनों तक अपने हॉस्टल में चंद्रशेखर आजाद को छुपाया, दिल्ली के हिंदू कॉलेज और सेंट स्टीफन कॉलेज - ये सीएफ एंड्रयूज थे, जो सेंट स्टीफन में अंग्रेजी पढ़ाते थे, 1914 मेंगोखले ने गांधी जी से भारत लौटने के लिए कहने के लिए उन्हें दक्षिण अफ्रीका भेजा .

ये जो इंडिया है ना… चाहे वो 100 साल पहले हमारे स्वतंत्रता संग्राम में या 45 साल पहले आपातकाल के दौरान या कुछ महीने पहले एंटी-सीएए-एनआरसी के विरोध के दौरान. चाहे वो तब मोदी और अरुण जेटली थे या आज सफ़ुरा जरगर और मीरान हैदर.

भारतीय छात्र विवेक वाले रहे हैं, और उन्हें ऐसे ही रहना चाहिए. विरोध करना खतरनाक नहीं है, ये रचनात्मकहै. शांतिपूर्ण विरोध देशद्रोह नहीं है, लोकतंत्र में इसकी बहुत जरूरत है.

ऐसे विश्वविद्यालय जो अपने मन की बात कहने वाले छात्रों को बनाते हैं, हम उन्हें राष्ट्र-विरोधी नहीं कह सकते. क्या 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' चिल्लाने के लिए19 साल की अमूल्या लियोना को 110 दिन की जेल होनी चाहिए? दक्षिण एशियाई देशों के बीच रिश्ते के लिए उनके विचार आदर्शवादी थे.. देशद्रोही नहीं. क्या रोहित वेमुला को हैदराबाद विश्वविद्यालय में एक सक्रिय अम्बेडकरवादी होने के लिए टारगेट किया जाना चाहिए था . क्या ये उसके जीवन की कीमत होनी चाहिए थी? बिल्कुल नहीं.

जितना कम हम अपने छात्रों की सुनते हैं ... उतना ही हम एक राष्ट्र के रूप में अपना रास्ता भटकते हैं.

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