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JNU से जामिया छात्र पिट रहे, VC क्यों चुपचाप देख रहे? 

जिन हाथों से कलम उठानी थी, की बोर्ड चलाने थे वो तोड़े जाते हैं

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वीडियो एडिटर: मोहम्मद इब्राहिम

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क्या कोई माता-पिता अपने बच्चों के सर फूटते, हाथ टूटते, मार खाते देख सकता है? क्या कोई अपने घर को लुटने की आजादी दे सकता है? जवाब होगा, नहीं.. लेकिन देश की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटियों जेएनयू, जामिया, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में छात्र पिटते हैं, टूटते हैं.

जिन हाथों से कलम उठानी थी, की बोर्ड चलाने थे वो तोड़े जाते हैं, वो भी सबसे बड़े गार्डियन के घर में रहते हुए. जी हां, इन यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के रहते हुए छात्र मार खाते हैं, पुलिस यूनिवर्सिटी में घुसती है, बच्चों को मारती है, लाइब्रेरी में आंसू गैस के गोले दागती है, हॉस्टल के कमरों से पुलिस छात्रों को उठा ले जाती है. लेकिन वीसी साहब और साहिबा 90s की हिंदी फिल्मों की पुलिस की तरह सब कुछ हो जाने के बाद आते हैं .

अब जब गार्डियन कहलाने वाले वीसी का ये हाल रहेगा तो छात्रों के मां-बाप से लेकर बच्चे पूछेंगे जरूर, जनाब ऐसे कैसे?

सबसे पहले जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी की कहानी बताते हैं

जेएनयू में फीस बढ़ोतरी और रजिस्ट्रेशन के मुद्दे पर कई दिनों से विरोध चल रहा था. लेकिन 5 जनवरी को वो हुआ जो किसी ने सोचा नहीं होगा. रॉड, डंडे से लैस नकाबपोश गुंडो ने कैंपस के अंदर हॉस्टल में घुसकर छात्रों को मारा, छात्रसंघ अध्यक्ष का सिर फोड़ दिया. शिक्षकों को पीटा.

34 छात्रों को घायल कर एम्स के ट्रॉमा सेंटर भेज दिया. जब ये सब हो रहा था तब यूनिवर्सिटी के गार्डियन कैंपस में मौजूद थे. इस बार पुलिस जामिया की तरह तुरंत कैंपस में नहीं पहुंची बल्कि बाहर रही.

दोपहर 2.30 से रात 7.45 के बीच छात्रों ने 23 बार कॉल कर पुलिस से मदद मांगी लेकिन पुलिस बाहर बैरिकेड लगाकर खड़ी रही. पुलिस कब आई जब यूनिवर्सिटी प्रशासन ने बुलाया....लेकिन तब तक हमलावर अपनी कारगुजारी को अंजाम दे चुके थे.

और अब पुलिस को देखिए मारपीट के कई दिनों बाद भी एक भी नकाबपोश के चेहरे से नकाब नहीं उतार पाई है, किसी को गिरफ्तार नहीं कर पाई है. और तो और वीसी साहब ने घायल छात्रों से मिलने तक की जहमत नहीं उठाई. ये गार्डियन हैं?
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चलिए आपको अब जामिया की क्रोनोलोजी एक-एक कर समझाते हैं...

जामिया इलाके में CAA-NRC के खिलाफ प्रदर्शन हुए. यूनिवर्सिटी के अंदर भी और बाहर भी. कैंपस के बाहर कुछ उपद्रव हुआ और पुलिस दनदनाती घुस जाती है कैंपस के अंदर...फिर छात्रों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटती है. आंसू गैस के गोले दागती है. जब छात्रों पर जुल्म हो गया, तब जाकर यूनिवर्सिटी की गार्डियन मतलब वीसी साहिबा आती हैं और कहती हैं, मुझे अफसोस है. 'मेरे छात्रों के साथ हुई बर्बरता की तस्वीरें देखकर मैं बहुत दुखी हूं.'

यही नहीं वीसी नजमा अख्तर ये तक कहती हैं कि इतनी अफरातफरी थी कि पुलिस को यूनिवर्सिटी प्रशासन से एंट्री की अनुमति लेने के लिए वक्त नहीं मिला होगा. उन्होंने हमसे अनुमति नहीं ली थी. 

मतलब गार्जियन छात्रों की, और उन्हें बचाव कर रही थीं पुलिस वालों की... अच्छा हुआ इन्होंने ये नहीं कहा कि गलती छात्रों की थी जो वो पुलिस के रास्ते में आ गए.

अब एएमयू में जो हुआ उसको समझिए

जामिया में छात्रों के साथ जो हुआ उसपर एएमयू के छात्र प्रदर्शन करते हैं. हंगामा करते हैं. यूनिवर्सिटी कैंपस में पुलिस बुलाती है.

यूनिवर्सिटी का तर्क है कि छात्रों की सुरक्षा के लिए ही पुलिस बुलाई गई थी... लेकिन छात्रों की सुरक्षा के लिए आई पुलिस छात्रों को ही खदेड़-खदेड़ कर पीटती है, आंसू गैस के गोले दागती है जिसमें एक छात्र को अपना हाथ तक खोना पड़ता है.

फिर इन सबके बाद यूनिवर्सिटी के गार्डियन मतलब वीसी साहब तारिक मनसूर कहते हैं, 'मैं निंदा करता हूं. छात्रों के पास सुरक्षा और शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने का अधिकार है.' विरोध का अधिकार?

जब यूनिवर्सिटी की दीवारें घायल छात्रों की चोट और पुलिसिया डंडे का निशान दिखा रही हों तब विरोध की जगह कहां बचती है. आपकी कड़ी निंदा और अफसोस से घायल छात्रों के जख्म सूख नहीं जाएंगे? एक गलत फैसले ने..., छात्रों के अपने ही गार्जियन के गलत फैसले ने, जो गहरे जख्म दिए हैं उसका इलाज अफसोस कह देने से क्या भर जाएगा?

अब असल सवाल ये उठते हैं कि क्या किसी संस्था में कोई ऐसे ही घुस सकता है? क्या छात्रों पर यूनिवर्सिटी के अंदर हमला होने पर वीसी की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है? अगर मान लीजिए छात्र ही गलत रास्ते पर हैं तो क्या वीसी की जिम्मेदारी नहीं है कि डायलॉग से सब ठीक करें? हर उलझे हुए सीन में लेट एंट्री करना या सही मौके पर एक्शन ना लेना, क्या ये जानबूझकर हो रहा है? या किसी के दबाव में? इन सबका जवाब तो वीसी ही दे सकते हैं. लेकिन छात्रों के जख्म देखकर हर कोई पूछेगा जरूर जनाब ऐसे कैसे?

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