वीडियो एडिटर: अभिषेक शर्मा
जेएनयू के छात्र पिछले कई हफ्तों से अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर उतरे हैं. छात्रों की मांग है कि उन पर कई तरह की फीस बढ़ाकर बोझ डाल दिया गया है. इसी फीस को लेकर छात्रों ने आंदोलन छेड़ रखा है. लेकिन फीस को लेकर शुरू हुए इस आंदोलन पर कई सवाल भी खड़े हुए हैं. सोशल मीडिया पर लोग कह रहे हैं कि जेएनयू के छात्र मामूली सी फीस के लिए बवाल कर रहे हैं, ये छात्र 10-20 रुपये फीस देकर जेएनयू के हॉस्टल में आलीशान जिंदगी जी रहे हैं.
कई लोग सोशल मीडिया में ये भी दावा कर रहे हैं कि जेएनयू के छात्र हॉस्टल में मिलने वाले ऐशो आराम के चलते कई सालों तक वहां रहते हैं. सिर्फ सोशल मीडिया ही नहीं, बल्कि कई टीवी चैनल भी इस बात का दावा कर चुके हैं.
क्विंट का रिएलिटी चेक
इन सभी दावों के बाद क्विंट ने जेएनयू के हॉस्टल में जाकर देखा कि क्या छात्र वाकई में वहां आलीशान जिंदगी जी रहे हैं? क्या वाकई में छात्रों को जेएनयू में ऐसी सुविधाएं मिल रही हैं, जिन्हें छोड़कर वो बाहर अच्छी नौकरी करने तक नहीं जा रहे.
जेएनयू में पढ़ रहे छात्र तबरेज हसन ने ने जब अपना हॉस्टल का कमरा खोला तो वहां कुछ और ही नजारा दिखा. वहां कोई आलीशान बेड और पंखा नहीं बल्कि टूटी पुरानी आलमारी और बिस्तर दिखा. तबरेज ने बताया कि वो यही आलीशान जिंदगी जी रहे हैं. उन्होंने बताया,
“लोग कह रहे हैं कि 10 रुपये में अय्याशी कर रहे हैं, लेकिन हमारी कभी ये हालत भी होती है कि चाय पीने के लिए 10 रुपये भी नहीं होते हैं. हमारे लिए 10 रुपये क्या हैं उसे वो आदमी नहीं समझ सकता जो 10 लाख का सिर्फ सूट पहनता हो. मैं ये कहता हूं कि यहां लोग 10 रुपये से भी कम में रह रहे हैं. लोगों को यहां खुद आकर देखना चाहिए.”तबरेज हसन, जेएनयू छात्र
खटमलों ने किया परेशान
जेएनयू में छात्रों की आलीशान जिंदगी कुछ ऐसी है कि उन्हें खटमलों ने परेशान कर रखा है. कई बार शिकायत के बाद भी उनकी सुनवाई नहीं होती है. दीवारों पर रंग कम लेकिन खटमलों का खून ज्यादा नजर आ रहा था. छात्रों ने बताया कि दीवारों पर कलर नहीं करवाया जा रहा है. इसीलिए उन्होंने गंदी दीवारों पर कुछ न कुछ लिख दिया है.
एमए के छात्र चंचल ने बताया कि उनके कमरे में इतने खटमल हैं कि उन्हें मार-मार कर दीवार लाल हो चुकी है. आलमारी टूट चुकी है, जब भी ठीक कराने को कहा जाता है तो सीधे मना कर दिया जाता है. उन्होंने कहा,
“हमें कहा जाता है कि सिर्फ 10 रुपये में रह रहे हैं. लेकिन हर महीने हजारों रुपये खर्च होते हैं. जो नया मैनुअल पास हुआ है उसमें बताया गया है कि जिन लोगों के परिवार की सालाना कमाई 27 हजार होगी उन्हें आधा किराया देना पड़ेगा. जो 47 हजार रुपये है. लेकिन 27 हजार कमाने वाला परिवार 47 हजार कहां से देगा? मैं किसान का बेटा हूं, ऐसे में अगर इससे ज्यादा फीस बढ़ा तो हमें यहां से जाने पर मजबूर होना पड़ेगा.”चंचल कुमार, जेएनयू छात्र
बाथरूम के लिए लगानी पड़ती है लाइन
जेएनयू में कुछ कमरे ऐसे भी हैं जहां पर एक या दो छात्र नहीं बल्कि 20 से 25 छात्र एक साथ रहते हैं. उन्हें रहने के लिए एक छोटा सा बेड दिया गया है. वहीं करीब 40 छात्रों को सिर्फ एक ही कॉमन बाथरूम इस्तेमाल करना पड़ता है. छात्राओं के साथ भी कुछ यही हो रहा है. छात्राओं ने बताया कि उन्हें सुबह कॉलेज जाने के लिए पहले बाथरूम की लाइन में लगना पड़ता है.
एमए फर्स्ट एयर की छात्रा कैफी ने बताया कि जेएनयू के छात्रों पर गलत आरोप लगाए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि यहां गंदगी से सब छात्र परेशान हैं. कैफी ने बताया,
“जो कहते हैं कि हम आलीशान हॉस्टल में रहते हैं, उन्हें बताना चाहती हूं कि यहां 90 प्रतिशत छात्र गंदगी की वजह से बीमार होते हैं. यहां गंदा पानी पीने से बीमारी होती है. पिछले साल तो एक लड़की के पैर पर छत का एक हिस्सा आकर गिर गया. इसीलिए ये कोई आलीशान नहीं है. हमें सर्दियों में भी ठंडे पानी से नहाना पड़ता है. मैं सभी से कहना चाहती हूं कि गोदी मीडिया के नैरेटिव में न आएं और आकर हमसे बात करें.”कैफी, जेएनयू छात्रा
जेएनयू से एमए कर रहीं साक्षी ठाकुर ने बताया कि कुछ बच्चों को हॉस्टल नहीं मिल पाता है तो वो लोग एक कॉमन रूम में रहते हैं. इस तरह की कई डोमेट्री हैं, जहां 20-25 लड़कियां रहती हैं. उन्होंने बताया कि सुबह-सुबह लाइन में लगना पड़ता है. हम सस्ती शिक्षा के लिए लड़ रहे हैं. ये बाहर जो नैरिटिव चल रहा है कि हम 10 रुपये में पढ़ते हैं, वो आकर यहां देखें कि हम किस हाल में रहते हैं.
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