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वो आइडिया जिसने रंजीत को दिलाया शिक्षा का ‘नोबेल’

ग्लोबल टीचर प्राइज को शिक्षा का “नोबेल” भी कहा जाता है

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"मैं बस सीखने पढ़ने के लिए एक सही माहौल बनाना चाहता हूं बच्चों में जिज्ञासा जगाना चाहता हूं और उन्हें प्रॉब्लम को सुलझाने के लिए नए तरीकों की तरफ प्रेरित करना चाहता हूं"... ये कहना है 2020 के ग्लोबल टीचर प्राइज के विजेता रंजीत सिंह डिसले का.

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ग्लोबल टीचर प्राइज को शिक्षा का "नोबेल" भी कहा जाता है और रंजीत सिंह ये पुरस्कार जीतने वाले पहले भारतीय बने हैं. रंजीत महाराष्ट्र के सोलापुर जिले के परितेवाड़ी गांव के रहने वाले हैं. 32 साल के डिसले को यह पुरस्कार लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने और किताबों में QR कोड के जरिए शिक्षा के क्षेत्र में योगदान देने के लिए मिला है.

डिसले ने बताया कि उन्होंने खुद ही क्यू आर कोड बनाए और समझा कि उन्हें कैसे शिक्षा के क्षेत्र में भी इस्तेमाल किया जा सकता है जिससे सभी बच्चों को डिजिटल कंटेंट उपलब्ध हो सके.

डिसले ने अपने आईडिया का ट्रायल करने के लिए म्हारा के स्कूलों में पहली कक्षा को चुना. वहां से अच्छे परिणाम मिलने के बाद डिसले ने महाराष्ट्र सरकार से बात की और सरकार ने पूरे महाराष्ट्र बोर्ड की किताबों पर QR कोड लगाने का फैसला किया. डिसले का उद्देश्य था कि QR कोड की सुविधा से बच्चे डिजिटल दुनिया का फायदा उठा सकें और उनकी पढ़ाई भी ऑडियो वीडियो लेक्चर के माध्यम से हो सके. डिसले ने ये भी सुनिश्चित किया कि सारी किताबें स्थानीय भाषा में मौजूद हों.

अन्य उपलब्धियां

एक आम युवा की तरह डिसले का सपना भी इंजीनियर बनने का था लेकिन उसमें उनको निराशा हाथ लगी फिर उन्होंने शिक्षक बनने का फैसला किया. परितेवाड़ी महाराष्ट्र का एक छोटा सा गांव है डिसले 2009 से ही यहां के जिला परिषद प्राइमरी स्कूल की स्थिति सुधारने में लगे हुए हैं.

डिसले 2016 में इनोवेटिव रिसर्च ऑफ द ईयर, 2018 में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के इनोवेटर ऑफ द ईयर आवाज जैसे पुरस्कार भी जीत चुके हैं उन्हें उनके इनोवेटिक तरीकों के लिए माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला से भी तारीफ मिल चुकी है.

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डिसले को 'ग्लोबल टीचर प्राइज' में 1 मिलियन की धनराशि मिली है और अब उन्होंने यह फैसला लिया है कि वह इस धनराशि का 50% टॉप टेन नॉमिनीज के साथ बांटना चाहेंगे जिससे उनका भी काम चलता रहे.

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