वीडियो एडिटर: विवेक गुप्ता
कैमरापर्सन: सुमित बडोला
7 किलोमीटर का फासला क्या 70 साल की तल्खी को दूर कर पाएगा? श्रद्धालुओं की आस्था क्या सियासतदानों की नफरत को मिटा पाएगी? एक धर्मगुरु की पवित्रता आतंक के नापाक इरादों को जीत पाएगी?
भारत और पाकिस्तान के रिश्तों से जुड़े ये चंद सवाल हैं जो करतारपुर गलियारे के उद्घाटन से पहले सियासी गलियारों में तैर रहे हैं.
कथा जोर गरम है कि...
भारत में गुरुदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक गुरुद्वारे से पाकिस्तान में नरोवाल जिले के दरबार साहब गुरुद्वारे तक शुरू होने वाला करतारपुर कॉरिडोर भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में एक बेहद सकारात्मक घटना है.
इंडियन बॉर्डर से करतारपुर गुरुद्वारे की दूरी सिर्फ 3-4 किलोमीटर है. मगर ये दूरी तय करने में जमाने लग गए.
ये वो ऑफिशियल गाना है जो करतारपुर गलियारे के उद्घाटन के लिए पाकिस्तान सरकार ने जारी किया. लेकिन जारी होते ही इस पर विवाद हो गया. वीडियो में अलग खालिस्तान की मांग करने वाले जरनैल सिंह भिंडरावाले , मेजर शाहबेग सिंह और अमरीक सिंह खालसा के पोस्टर सरसरी तौर पर दिखाई दे रहे हैं. इन तीनों को जून 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान भारतीय फौज ने मार गिराया था.
करतारपुर कॉरिडोर को लेकर काफी एक्टिव रहे पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इसे पाकिस्तान का छिपा एजेंडा करार दे दिया.
भारतीय सुरक्षा एजेंसियां ये अंदेशा जता ही रही हैं कि दूर-दराज के देशों से ऐसे तीर्थयात्री भी यहां आ सकते हैं, जो खालिस्तान समर्थक प्रचार से प्रभावित हो जाएं.
इमरान के ट्वीट से भ्रम
1 नवंबर को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने ट्वीट के जरिये एलान किया कि करतारपुर आने वाले श्रद्धालुओं को पासपोर्ट की जरूरत नहीं होगी. कोई भी एक वैध पहचान पत्र पाकिस्तान में एंट्री के लिए काफी होगा.
10 दिन पहले रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं होगी और उद्घाटन के मौके और गुरु पर्व पर कोई फीस भी नहीं ली जाएगी. हालांकि भारत और पाकिस्तान के बीच करतारपुर कॉरिडोर को लेकर जो एमओयू साइन किया गया उसमें पासपोर्ट की जरूरत बताई गई थी.
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि इमरान खान के ट्वीट के 5 दिन बाद तक भी एमओयू में कोई तब्दीली नहीं की गई है जिससे श्रद्धालुओं में ऊहापोह की स्थिति है
खैर.. अब जरा बात करते हैं करतारपुर गलियारे की अहमियत पर.
करतारपुर गुरुद्वारा ना सिर्फ सिख समुदाय बल्कि तमाम धर्मों के लिए बेहद पवित्र जगह है. कहा जाता है,
“नानक शाह फकीर, हिंदू दा गुरु, मुस्लिम दा पीर”
मान्यता है कि सिखों के प्रथम गुरु गुरुनानकदेव जी अपनी 4 प्रसिद्ध यात्राओं को पूरा करने के बाद 1522 में परिवार के साथ करतारपुर में रहने लगे थे. यहीं उन्होंने ‘नाम जपो, किरत करो और वंड छको‘ यानी नाम जपो, मेहनत करो और बांटकर खाओ का संदेश दिया था.
उन्होंने अपने जीवन के आखिरी 17 साल 5 महीने 9 दिन साल वहीं गुजारे. 22 सितंबर 1539 को गुरुदेव ने आखिरी सांस ली. 1947 के भारत-पाक बंटवारे में वो पवित्र स्थान पाकिस्तान के हिस्से में चला गया.
कब क्या हुआ?
अगर हालिया इतिहास की बात करें तो फरवरी 1999 में उस वक्त प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी ने करतारपुर साहिब गलियारे का प्रस्ताव रखा ताकि भारत के सिख श्रद्धालु आसानी से इस पवित्र स्थान के दर्शन के लिए जा सकें. वाजपेयी उस वक्त पाकिस्तान के साथ सियासी पहल के लिए बस लेकर लाहौर गए थे.
- साल 2000 में पाकिस्तान बॉर्डर से गुरुद्वारे तक एक पुल बनाने के लिए राजी हुआ ताकि भारत के सिख श्रद्धालु बिना वीजा (और बगैर पासपोर्ट) के आ-जा सकें.
- साल 2004 में उस वक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अमृतसर में भाषण के दौरान करतारपुर गलियारे की जरूरत का जिक्र किया था.
- ये मसला सुर्खियों में एक बार फिर आया अगस्त 2018 में, जब पंजाब सरकार में मंत्री और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के शपथ ग्रहण कार्यक्रम मे शामिल होने इस्लामाबाद गए. लौटने पर सिद्धू ने बताया कि पाकिस्तान सरकार गुरुनानक देव जी की 550वीं जयंती पर करतारपुर गलियारा खोलेगी.
- 22 नवंबर 2018 को मोदी कैबिनेट ने डेरा बाबा नानक से पाकिस्तान की सरहद तक करतारपुर गलियारे को मंजूरी दे दी.
- 28 नवंबर, 2018 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने करीब 4 किलोमीटर लंबे करतारपुर गलियारे की आधारशिला रखी.
- और करीब एक साल बाद 9 नवंबर 2019 को ये गलियारा शुरु होने जा रहा है.
वैसे बात यहां तक पहुंचने तक कई स्पीड ब्रेकर भी आए. मसलन पाकिस्तान ने सर्विस फीस के तौर पर हर तीर्थयात्री से 20 डॉलर वसूलने का फैसला किया है. भारत सरकार इसके खिलाफ थी. इस मुद्दे पर कई दिनों तक खींचतान चली लेकिन आखिरकार पाकिस्तान की बात मान ली गई.
आखिर भारत इस गलियारे की मांग क्यों कर रहा था?
भारत की ओर से जो पहला जत्था करतारपुर गलियारे से जाने वाला है, उसमें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह और अलग-अलग दलों और तबकों के सिख प्रतिनिधि शामिल होंगे. सिख समुदाय की सबसे बड़ी आबादी भारत में रहती है और सरकार उन्हें ये दिखाना चाहती है कि वो अपने इस अहम अल्पसंख्यक समुदाय की भावनाओं का पूरा सम्मान करती है. आतंकवाद को हथियार बनाकर नफरत फैलाने वाले लोग चंद हैं लेकिन सांस्कृतिक आदान-प्रदान से सद्भाव बनाए रखने की सोच वाले लोगों की तादाद बहुत ज्यादा है. करतारपुर साहिब कॉरिडोर इस दिशा में एक अहम कदम है.
पीर-फकीर, गुरु, महात्मा....ऐसे लोग हमेशा से भाईचारे और सद्भाव का जरिया बनते आए हैं. क्या संयोग है कि गुरुनानक देव जी की 550वीं जयंती के बहाने दो कट्टर दुश्मन देशों के बीच कुछ ऐसी बात हो रही है जो सीज फायर उल्लंघन, गोली बारी, कश्मीर से अलग है...
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