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करतारपुर कॉरिडोर: ‘पाकिस्तान में मेरे दादा भारत को याद कर रोते थे’

भारत के बारे में बात करते हुए भावुक हुए पाकिस्तान के पोस्टल सर्विस कर्मचारी सैयद फुरहान 

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वीडियो एडिटर: पूर्णेंदु प्रीतम

मेरे दादा इंतकाल से पहले बहुत रोते थे. वो चाहते थे कि हम उन्हें हिंदुस्तान के शाहपुर गांव लेकर जाएं. इसलिए मुझे उस मिट्टी से इतना प्यार है.  
सैयद फुरहान, कर्मचारी, पाकिस्तान पोस्टल सर्विस

पाकिस्तानी पोस्टल सर्विस कर्मचारी सैयद फुरहान करतारपुर कॉरिडोर और पंजाब के लोगों से उनके लगाव का जिक्र करते हैं. जो दिल को छू जाता है.

बहुत लोग मेरे पास आते हैं, वो रोते हैं और बहुत भावुक हो जाते हैं. वो मिट्टी चूमते हैं और नंगे पैर चलते हैं. वो हमारे हाथ चूमते हैं और कहते हैं कि हम वाहेगुरु की धरती पर रहते हैं. आपको ये देखने को मिलता है...मोहब्बत का एक समंदर.  

फुरकान आगे कहते हैं कि “यहां आए बिना कोई भी लोगों के आपसी प्यार को महसूस नहीं कर सकता. ये ऊपर वाले की देन है कि इतने लोग 70 साल बाद आपस में मिल रहे हैं. ये मैं इंटरव्यू की वजह से नहीं कह रहा हूं. ये मैं दिल से कह रहा हूं.”

मैं एक मुसलमान हूं लेकिन मैंने किसी को ‘अस्सलाम अलैकुम’ नहीं कहा. हम ‘वाहेगुरु का खालसा, वाहेगुरु की फतह’, ‘सत् श्री अकाल’ कहते हैं. आपको अंदाजा होगा कि हम कितने खुश हैं. यहां लोग हिंदुस्तान के लोगों को गले लगाना चाहते हैं. नरोवाल जिले में लुधियाना और पंजाब से आए माइग्रेंट रहते हैं. मेरे परदादा गुरदासपुर के थे. मेरे दादा रोते थे, उनके इंतकाल से पहले वो चाहते थे कि हम उन्हें शाहपुर लेकर जाएं.  
सैयद फुरहान, कर्मचारी, पाकिस्तान पोस्टल सर्विस
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फुरहान बताते हैं कि इसलिए उनको हिंदुस्तान की मिट्टी से इतना प्यार है. वो बताते हैं, “वो हमारी भी मिट्टी है, हमारे लोग हैं, सभी लोग हमारे दिल के बहुत करीब हैं. हम उनसे 70 साल बाद मिल रहे हैं. जिस तरह से हमारे पूर्वजों को वो याद है, उस लिहाज से मैं उनके हाथ चूमना चाहता हूं.

मेरे दादा रोते थे उनके शाहपुर गांव के लिए, हर रोज. ऐसा एक दिन भी नहीं था जब वो अपने घर को याद न करते हों. मैं सभी को बधाई देना चाहता हूं और सभी का स्वागत करना चाहता हूं.जो भी पंजाब, लुधियाना, गुरदासपुर, चंडीगढ़ के हैं करतारपुर के खुलने पर सभी का स्वागत है.

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