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कश्मीर का वो गांव,जहां था आतंक का राज,अब एक ही इमारत में चलता है मदरसा और स्कूल

हिलकाका का इलाका कभी आतंक का गढ़ हुआ करता था, यहां के लोगों के लिए अपनी जिंदगी बचाना मुश्किल था.

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जम्मू-कश्मीर (Jammu-Kashmir) का पुंछ जिला जो एक वक्त पर आतंकवादी गतिविधियों के लिए जाना जाता था, वहां के एक छोटे से गांव का स्कूल बेहद खास है. पहाड़ों के बीच बसे इस इमारत की ऊपरी मंजिल पर मदरसा है, तो वहीं इसकी निचली मंजिल पर प्राइवेट स्कूल चलता है, जिसमें लड़के और लड़कियां पढ़ते हैं.

सुरनकोट में स्थिति हिलकाका का ये इलाका कभी आतंक का गढ़ हुआ करता था, यहां के लोगों के लिए अपनी जिंदगी बचाना मुश्किल हुआ करता था, ऐसे में तालीम हासिल करना तो उनके लिए ख्वाब ही था. लेकिन इस गांव के लोगों ने पढ़ाई की ताकत समझी और खुद चंदा इकट्ठा कर अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए स्कूल खोलने का फैसला किया.

2014 में जब इलाके का माहौल बदला तो लोगों ने खुद आगे बढ़कर यहां मदरसा और स्कूल खोलने का फैसला किया. मदरसे के संचालक मोहम्मद कासिम बताते हैं-

2003 में ये इलाका आतंक प्रभावित हुआ करता था, बच्चों के लिए ना तो पढ़ाई की सुविधा थी ना ही यहां रोजगार की व्यवस्था थी. जब आतंकवाद कुछ कम हुआ तो हम इलाके के लोगों ने बच्चों की तालीम के लिए यहां ये इमारत बनवाई और एक मंजिल पर मदरसा और दूसरी मंजिल पर इंग्लिश मीडियम स्कूल खोला.
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खास बात ये हैं कि यहां गरीब और यतीम बच्चों को भी तालीम दी जा रही है. कुछ बच्चे यहां ऐसे भी हैं जिनका दुनिया में कोई नहीं है. उन बच्चों को यहां रहने की सुविधा के साथ-साथ मुफ्त में एजुकेशन भी मिल रहा है. गांव के लोग अपनी हैसियत के हिसाब से इनकी हर तरह से मदद कर रहे हैं, कोई इनके लिए कपड़े देता है तो कोई राशन पहुंचा जाता है, जिससे उनका भविष्य बेहतर बनाया जा सके.

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इस इलाके का ये इकलौता इंग्लिश मीडियम स्कूल है, 2014 में जब ये स्कूल शुरू हुआ था, तब दो-चार बच्चे ही आते थे, लेकिन अब यहां बच्चों की संख्या अच्छी खासी हो गई है.
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मदरसे में कई यतीम बच्चे हैं, जिनके लिए यही इमारत उनकी दुनिया है. अपने साथियों के साथ वो यहां तालीम हासिल करते हैं. खास बात ये है कि ये बच्चे क्रिकेट खेलने में तो माहिर है, लेकिन उनको किसी क्रिकेटर का नाम तक नहीं पता. मैंने उनसे फिल्मों के बारे में पूछा, बॉलीवुड के हीरो-हीरोइन के बारे में भी पूछा तो उनका यही कहना था कि हम किसी को नहीं जानते हमने तो कभी कोई फिल्म देखी ही नहीं. फी

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इस स्कूल को चलाने के लिए यहां के लोगों पर लाखों रूपये का कर्ज तक हो गया, लेकिन इन लोगों ने हार नहीं मानी और जो लोग बच्चे फीस देने की हालत में नहीं है उन्हें मुफ्त में ही शिक्षा दी जाती है.

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