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उन्नाव केस: मौत तक जेल में रहेगा सेंगर कोर्ट का पूरा ऑर्डर

उन्नाव रेप केस:कुलदीप सेंगर को उम्रकैद,25 लाख का जुर्माना भी लगा  

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वीडियो एडिटर: राहुल सांपुई

दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट ने उन्नाव रेप केस (2017) में बीजेपी से निष्कासित विधायक कुलदीप सिंह सेंगर की सजा का ऐलान कर दिया है. सेंगर को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. इसके साथ ही कोर्ट ने सेंगर पर 25 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. इसमें से 10 लाख रुपये की राशि रेप सर्वाइवर को दी जाएगी. कोर्ट ने सेंगर से एक महीने के अंदर जुर्माना जमा करने के लिए कहा है.

कोर्ट ने लेटलतीफी के लिए CBI को फटकार भी लगाई. इतना ही नहीं कोर्ट ने पुरुषवादी सोच पर भी टिप्पणी की.

कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और फैसले में कहा-

सर्वाइवर का बयान “बेदाग, सच्चा और एकदम खरा साबित हुआ.”

बचाव पक्ष ये भी साबित नहीं कर पाया कि सर्वाइवर के चाचा ने निजी दुश्मनी के चलते ये झूठा मामला दर्ज कराया. ये भी एक सवाल था कि सर्वाइवर ने शिकायत दर्ज करने में 2 महीने और 10 दिन का वक्त क्यों लिया? लेकिन सर्वाइवर की सफाई इस मामले में भी संतोषजनक लगी.

लड़की और उसके परिवार वालों ने ये भी बताया कि सेंगर ने शिकायत करने पर पूरे परिवार को नुकसान पहुंचाने की धमकी दी थी. और ये सच भी साबित हुआ क्योंकि जैसे ही सेंगर के खिलाफ शिकायत दर्ज की गई, सर्वाइवर के पिता और चाचा को भी हिरासत में ले लिया गया.

ये केस दिखाता है कि ग्रामीण इलाकों मे कई तरह की सामाजिक पाबंदियों के बीच महिलाओं की परवरिश होती है. ये दिखाता है कि कैसे ताकतवर लोगों के खिलाफ यौन शोषण की शिकायत करने के खिलाफ लड़कियों के मन में खौफ पैदा किया जाता है. पुरुष प्रधान सोच और यौन हिंसा के मामलों को हल्के में लेने की मानसिकता का असर इस मामले की जांच पर पड़ा है. इसमें संवेदना और मानवता की कमी भी कमी दिखी.

कानून (POCSO एक्ट) के मुताबिक, ऐसे मामलों में पीड़ितों का बयान दर्ज करने के लिए CBI में महिला अधिकारी होनी चाहिए, लेकिन हैरानी की बात है कि लड़की के घर जाकर बयान दर्ज करने की बजाय उसे कई बार सीबीआई ऑफिस बुलाया गया. ऐसा करते हुए ये भी नहीं सोचा गया कि यौन हिंसा की पीड़िता को किस तरह के हैरेसमेंट, तकलीफ और दोबारा पीड़ित होने जैसी कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

सर्वाइवर के केस पर पर्दा डालने के लिए गवाहों के बयान से संबंधित चुनिंदा अहम जानकारी लीक कर दी गई. पुलिस रिपोर्ट से यह भी साफ है कि लगभग पूरी जांच जुलाई 2018 के आखिर तक पूरी हो गई थी,तो सीबीआई को बिना किसी और देरी के चार्जशीट दाखिल करने से किसने रोका... क्यों करीब एक साल बाद 3 अक्टूबर, 2019 को चार्जशीट दाखिल की गई?

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