"लोगों को बताते रहें कि हम इतने बड़े 'आतंकवादी' हैं. लोग हमसे मिलने या सलाम कहने से भी कतराते थे. पिछले 20 सालों से यही हमारी जिंदगी है.”
आसिफ शेख पत्रकार बनना चाहते थे, लेकिन अब गुजरात के अहमदाबाद में मसालों का कारोबार करते हैं. वो कहते हैं, "मैं एक पत्रकार बनने के अपने सपने को पूरा नहीं कर सका क्योंकि मैंने सूरत में 20 साल पहले मुसलमानों के लिए आयोजित एक शैक्षिक सम्मेलन में भाग लिया था."
कथित रूप से प्रतिबंधित संगठन स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के सदस्यों द्वारा एक सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत के आतंकवाद विरोधी कानून (UAPA) के तहत आसिफ और 126 अन्य को गिरफ्तार और आरोपित किया गया था.
दो दशक बीत गए, पांच आरोपियों की मौत हो गई, बाकी लोगों को सामाजिक कलंक और वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा. कुछ ने अपनी नौकरी खो दी, कुछ को लगातार अदालती सुनवाई के लिए शहरों से स्थानांतरित होना पड़ा और कुछ अन्य को अपने परिवारों का सपोर्ट करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ा.
मार्च 2021 में, सूरत की एक अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपने दावे को साबित करने के लिए "स्पष्ट, विश्वसनीय और संतोषजनक" सबूत पेश करने में विफल रहा और इसलिए आरोपी को यूएपीए के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता है.
“पुलिस को हमारे घरों से कोई सबूत नहीं मिले. हमारे घरों पर छापा मारा गया जैसे हम खतरनाक लोग थे. न्यायिक रिमांड के बाद भी उन्हें कुछ हासिल नहीं हुआ. वैसे भी उन्हें क्या सबूत मिले होंगे? हम वहां शिक्षा के बारे में बात करने के लिए गए थे. लेकिन, क्या हमें 20 साल तक इस तरह की सजा दी जानी चाहिए थी?आसिफ शेख
26 साल की उम्र में गिरफ्तार, सोहेल पटेल कहते हैं कि वो कंप्यूटर हार्डवेयर व्यवसाय की वजह से मुश्किल में पड़ गए. "मेरे कंप्यूटर हार्डवेयर व्यवसाय के कारण, उन्होंने मुझे आईटी विभाग के साथ परेशान किया, लेकिन अल्लाह ने उनकी साजिश नाकाम कर दी"
साकिब फ़ारूक़ी ने मेडिकल ट्रांसक्रिप्शन के लिए परीक्षा दी थी और अपने लेटर के आने का इंतज़ार कर रहे थे. जब वो आखिरकार आया, तो वो जेल में थे. साकीब कहते हैं- "मेरे पिता का निधन हो गया था, मैं अपने परिवार के लिए एकमात्र कमाने वाला सदस्य था लेकिन जब भी मैं नौकरी मांगने जाता था, तो वे मना कर देते थे क्योंकि मेरे खिलाफ एक आपराधिक मामला था”
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