ADVERTISEMENTREMOVE AD

20 लाख Cr. का पैकेज हल से ज्यादा समस्या - महेश व्यास Exclusive

लॉकडाउन, इकनॉमी, बेरोजगारी और प्रवासी मजदूरों की समस्या पर डॉ. व्यास से खास बातचीत

Updated
छोटा
मध्यम
बड़ा

सरकार लॉकडाउन के बुरे असर से देश की इकनॉमी को बचाने के लिए 20 लाख करोड़ का पैकेज लेकर आई, लेकिन CMIE के चीफ महेश व्यास का कहना है कि इस पैकेज में समाधान कम और समस्याएं ज्यादा हैं. CMIE वही संस्था है, जो बेरोजगारी पर डेटा जारी करती है. लॉकडाउन, इकनॉमी, बेरोजगारी और प्रवासी मजदूरों की समस्या पर द क्विंट के खास कार्यक्रम ‘राजपथ’ में एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया ने व्यास से खास बातचीत की.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

"कर्ज में दबाने का प्लान है पैकेज"

व्यास की दलील है कि एक तो ये पैकेज एक तो इतना बड़ा नहीं है, जितना बताया जा रहा है लेकिन उससे भी बड़ी बात ये है कि इसमें ज्यादातर कर्ज का प्रावधान है. समस्या ये है कि जो लोग, जो बेरोजगार और जो छोटे उद्योग पहले से ही मुसीबत में हैं वो कर्ज कैसे लेंगे और लेंगे तो फिर चुकाएंगे कैसे. तो ये लोगों को कर्ज में डालने का प्लान है.

अगर इकनॉमी को रिस्टार्ट करना है तो कर्ज नहीं रोजगार देना होगा, बाजार में डिमांड पैदा करनी होगी. MSME को कर्ज देने से फायदा नहीं होगा, क्योंकि डिमांड में कमी के कारण उन्हें ग्राहक नहीं मिलेगा, जब ग्राहक नहीं होंगे तो कंपनियां रोजगार भी नहीं दे पाएंगी.
महेश व्यास, CMIE

बड़ी कंपनियों का क्या हाल है?

इस सवाल के जवाब में महेश व्यास कहते हैं- 'बड़े उद्योगों की हालत बहुत खराब है. तीन चार साल से हालत खराब है. 2008-09 में इन कंपनियों का नेट फिक्स्ड एसेट ग्रोथ रेट 23 फीसदी के आसपास था. लेकिन उसके बाद ये गिरने लगा. 2015-16 में थोड़ी ग्रोथ फिर मिली. 2018-19 में ये दर 5.5 फीसदी रह गई. ये तब भी हुआ जब कंपनियों का मुनाफा अच्छा था, लेकिन कंपनियों में भविष्य को लेकर इतनी चिंता थी कि उन्होंने नई कैपिसिटी खड़ा करने का जोखिम नहीं उठाना चाहा.

कंपनियां मुनाफा तो बना रही हैं लेकिन निवेश नहीं कर रही हैं. 2008-09 में 26-27 लाख करोड़ के निवेश प्रस्ताव थे, अब वो गिरकर 11 लाख करोड़ रह गए हैं. आप इससे समझ लीजिए कि इकनॉमी कहां जा रही है.

वाजपेयी, मनमोहन से सीखे सरकार

महेश व्यास कहते हैं कि वाजपेयी सरकार के समय भी कम डिमांड की समस्या हुई थी, तब उन्होंने हाईवे प्रोजेक्ट शुरू कर इकनॉमी में जान फूंकी. इसी तरह 2004 में मनमोहन सरकार के समय SEZ नीति लाकर सरकारी खर्च बढ़ाकर इकनॉमी को चालू किया गया.

CMIE का अनुमान है कि जीडीपी ग्रोथ रेट माइनस 6 फीसदी तक गिर सकती है. इतना ही नहीं ये इससे नीचे भी जा सकती है.

तो उपाय क्या है?

सरकार टैक्स में राहत दे रही है लेकिन आज समस्या टैक्स को लेकर नहीं है. आज समस्या डिमांड को लेकर है. आसान उपाय है कि गरीबों के हाथ में पैसा दें लेकिन सरकार ये क्यों नहीं कर रही है, ये वही बता सकती है. एक परंपरा बन गई है कि वित्तीय घाटा नहीं होने देंगे. जब लॉकडाउन लगाकर हमने खुद इकनॉमी को बंद किया तो इसे हमें ही स्टार्ट करना होगा. इसके लिए सरकार को खर्च करना होगा. कर्ज लेना हो तो लें, नए नोट छापना हो तो छापें. विदेशी एजेंसियां रेटिंग घटाएं तो घटाने दें.

'लॉकडाउन क्यों लाए, क्यों हटा रहे, कुछ तो बताएं'

महेश व्यास के मुताबिक देश ये जानना चाहता है कि किस डर की वजह से लॉकडाउन को लाया गया था. ''सरकार हमें ये बताए कि महामारी के विशेषज्ञों ने क्या कहा था कि लॉकडाउन करना पड़ा. सरकार को ये बताना चाहिए कि अगर लॉकाडाउन नहीं होता तो क्या हालत होती और अभी हम कहां हैं, और आगे का अनुमान क्या हैं. देश को जानना जरूरी है कि ये डर कितना बड़ा था और कितना बड़ा निकला. गरीब-मजदूर जानना चाहते हैं कि वो क्या वजह थी कि हमारी रोजी-रोटी पर लॉकडाउन लगा दिया गया.''

बेरोजगारी को लेकर बड़ी चेतावनी

व्यास का आकलन है कि सिर्फ अप्रैल में 12.2 करोड़ लोगों की नौकरी गई है. मई में और हालत खराब होने की आशंका है.  इनमें से दो करोड़ नौकरीपेशा लोग हैं और 9 करोड़ रेहड़ी पटरी वाले, छोटे दुकानदार हैं. अगर इकनॉमी पटरी पर आ जाएगी तो रेहड़ी पटरी वालों की दुकान तो शुरू हो जाएगी लेकिन लोगों को नौकरी नहीं मिलेगी तो कौन इनके यहां चाय और समोसा खाने के लिए आएगा?

प्रवासी मजदूरों को लेकर कहां गड़बड़ी हुई?

''मजदूर कहां से कहां जाते हैं, किस हालत में हैं, ये सरकार को पता नहीं. सरकारी डेटा सिस्टम को ठीक करने की जरूरत है. ऐसे संकट के समय सही डेटा जरूरी है. NSSO के सर्वे तब होते हैं जब सामान्य साल होता है, लेकिन इसे लगातार होना चाहिए. लोग कहते हैं कि मजदूर दिवाली तक वापस आ जाएंगे, लेकिन इसे ऐसे कहना चाहिए-लोग उम्मीद कर रहे हैं कि शायद दिवाली तक आ जाएं, लेकिन ये हो जाएगा कहना मुश्किल है.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×