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अमित शाह की ‘चाणक्य-नीति’ के बावजूद BJP ऐसे कैसे हार रही है? 

क्या अमित शाह और बीजेपी अपने आप को रिएडजस्ट करने के लिए तैयार होंगे? अगर नहीं, तो हम फिर पूछेंगे- जनाब ऐसे कैसे?

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वीडियो एडिटर: मोहम्‍मद इरशाद आलम

कैमरा: नितिन

अमित शाह चाणक्य हैं, वो इलेक्शन मशीन हैं. अमित शाह चाहें तो सरकार बना सकते हैं या गिरा सकते हैं. ये बातें बीजेपी की हर जीत के बाद न्यूज चैनल पर बैठे एंकर, राजनीतिक पंडित और बीजेपी के नेता का पहला शब्द बन गया था. लेकिन राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी की हार पूछ रही है- जनाब ऐसे कैसे?

आपने बीजेपी अध्यक्ष के तौर पर चार साल के भीतर 14 राज्यों में अपनी पार्टी को फर्श से अर्श तक पहुंचा दिया. देश की सबसे पुरानी पार्टी को हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया. तो चर्चा तो आपकी हार की भी होगी ना.

अगले 50 साल तक भारत पर राज करने की बात करने वाले अमित शाह 5 राज्यों में न कमाल कर सके, न कमल खिला सके. अब आप कहेंगे कि एक हार से अमित शाह का मैजिक फेल हो गया है, तो ऐसा कहना सही नहीं है. या फिर ये कहा जाए कि इन राज्यों में एंटी इंकबेंसी थी, राजस्थान में तो हर पांच साल में सरकार बदलती है, वगैराह वगैराह.. लेकिन चलिए आपको आंकड़े के जरिये बताते हैं कि 'चुनाव जिताऊ मशीन' में जंग कब-कब और कहां कहां लगी है.

जीत से हार का सामना

2014 में पहली बार बीजेपी की कमान थामने वाले शाह ने त्रिपुरा में लेफ्ट का किला ढहाया. उत्तर प्रदेश में बीजेपी के 14 साल के वनवास को खत्म किया. उनके अध्यक्ष बनने के बाद ही हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी ने अपने दम पर जीत दर्ज की. फिर उसके बाद, एक के बाद एक किला फतह.

शाह की अगुआई में बीजपी ने जम्मू-कश्मीर, झारखंड, असम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में जीत दर्ज की. लेकिन सब कुछ सुनहरा हो, ये जरूरी भी तो नहीं.

दिल्ली का किला, केजरीवाल को मिला

अमित शाह मैजिक का पहला फ्लॉप शो दिल्ली से शुरू हुआ. पूरे देश में मोदी लहर थी. बीजेपी जीत के उत्साह में थी. लेकिन आम आदमी वाले केजरीवाल ने वो कर दिया, जो कांग्रेस नहीं कर सकी थी. दिल्ली की 70 सीटों में से बीजेपी सिर्फ 3 सीटों पर सिमट गई. ये अमित शाह के लिए बड़ी हार थी. लेकिन एक और हार होनी थी, वो हार हुई बिहार में.

बिहार में 'नो-बहार'

2015 में बिहार में भी चुनाव हुए, लालू-नीतीश के महागठबंधन के दांव के आगे बीजेपी 53 सीटों पर सिमट गई. 'महागठबंधन की जीत पर पाकिस्तान में पटाखे फूटेंगे' वाला बयान भी शाह के काम न आया. 2010 में यही बीजेपी 102 में से 91 सीटें लेकर आई थी. इस हार के बाद भी अमित शाह के स्टाइल पर सवाल उठे थे. लेकिन कहीं गुम हो गए.

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चाणक्य vs चाणक्य

चाणक्य का सबसे बड़ा टेस्ट गुजरात राज्यसभा चुनाव था, जहां मैदान में 'कांग्रेस के चाणक्य' कहे जाने वाले अहमद पटेल सामने थे. बीजेपी की तरफ से अमित शाह, स्मृति ईरानी और बलवंत राजपूत, तीनों राज्यसभा चुनाव में मैदान में थे, लेकिन इस सियासी ड्रामे में क्लाइमेक्स कांग्रेस ने सेट किया. बीजेपी दो सीटों पर जीत गई, लेकिन कांग्रेस की एक सीट की जीत अमित शाह की जीत पर भारी पड़ गई. यहां चाणक्य-नीति फ्लॉप हो गई. और कांग्रेस के चाणक्य-नीति के आगे बीजेपी की नहीं चली.

ठीक इसके बाद गुजरात विधानसभा चुनाव हुए. बीजेपी मोदी लहर पर सवार थी, लेकिन यहां भी कांग्रेस उस लहर में जहर का काम करने में लगी थी. बीजेपी 182 सीटों वाली गुजरात विधानसभा में सेंचुरी भी नहीं लगा सकी. 99 पर ऑल आउट.

कर्नाटक में जीत हाथ को आया, मुंह को न लगा

2018 कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. 224 में 104 पर जीत. ऐसे में यहां 'चाणक्य' अमित शाह का बड़ा टेस्ट था. लेकिन यहां बीजेपी के कमल को कांग्रेस के हाथ ने मुरझा दिया. सोती हुई कांग्रेस जाग चुकी थी. अपने से जूनियर पार्टी को सत्ता की चाबी सौंपकर खेल बदल चुकी थी. इस हार के बाद राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना की हार ने "चुनाव जीतना है तो अमित शाह हैं ना!" वाले मुहावरे पर चोट कर दी.

हालांकि बीजेपी भले ही चुनाव हार रही हो, फिर भी उसके वोट शेयर में बढ़ोतरी हुई. लेकिन अमित शाह या यों कहें कि बीजेपी तो सिर्फ जीत से ही कामयाबी को आंकती है, तो फिर उनके जीत-हार के पैमाने, उनके सेट किए पैरामीटर के हिसाब से ही होने चाहिए.
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विनिंग मशीनरी का असली टेस्ट 2019 में

यह सही है कि अमित शाह ने बीजेपी को नई ऊंचाई पर पहुंचाया. उनके खाते में कई तमगे हैं. लेकिन उनकी विनिंग मशीनरी का असली टेस्ट 2019 में होगा. फिलहाल देश में ऐसी कोई हवा दिख नहीं रही, बल्कि इसके उलट बीजेपी के सामने कई सवाल हैं. चुनावी जीत के टॉनिक ने कांग्रेस में एनर्जी भर दी है. विपक्षी एकता सामने है. बीजेपी के अपने सहयोगी तेजी से छिटक रहे हैं. ऐसे में चुनाव मशीनरी के बल पर सब कुछ हो जाएगा, ऐसा लगता तो नहीं. आखिरी सवाल ये कि क्या अमित शाह और बीजेपी अपने आप को रिएडजस्ट करने के लिए तैयार होंगे? अगर नहीं, तो हम फिर पूछेंगे- जनाब ऐसे कैसे?

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