लॉकडाउन खुलने की शुरुआत के साथ ही जॉब मार्केट में थोड़ी राहत दिख रही है. अप्रैल-मई में जो बेरोजगारी दर 24% तक चली गई थी वो जून के पहले हफ्ते में 17% तक आ गई है. पहले से ज्यादा लोग मार्केट में काम मांगने के लिए निकल रहे हैं ये भी अच्छे संकेत हैं. ये कहना है कि CMIE के चीफ महेश व्यास का. महेश व्यास ने क्विंट के एडिटोरियल डायरेक्टर संजय पुगलिया से एक खास बातचीत में बताया कि आगे देश में जॉब मार्केट का क्या हाल रहने वाला है.
जॉब मार्केट का हाल
महेश व्यास के मुताबिक जॉब मार्केट के नंबर बेहतर हुए हैं. खासकर ये बड़ी बात है कि अब ज्यादा लोग रोजगार मांगने के लिए बाजार में आ रहे हैं, आम दिनों में आबादी के 43% लोग जॉब मार्केट में नौकरी ढूंढने आते थे, लॉकडाउन के समय ये दर 35% तक आ गई थी, लेकिन अब ये संख्या 39% हो गई है. ये सब अच्छी खबरें हैं.
आने वाले हफ्तों में कृषि क्षेत्र और मनरेगा से खास सहारा मिलेगा. लेकिन जॉब मार्केट के सामान्य दिन आने में अभी वक्त लगेगा.
किधर जा रही इकनॉमी?
महेशा व्यास का मानना है कि सरकार ने आर्थिक पैकेज के नाम पर जो लोन की व्यवस्था की है, उसका ज्यादा फायदा होता नहीं दिख रहा क्योकि न तो कोई लोन लेने वाला है और न ही कोई लोन देने वाला. और उसकी वजह सीधी ये है कि मार्केट में डिमांड नहीं है. सरकार ने 3 लाख करोड़ के लोन का इंतजाम किया लेकिन इस वक्त न तो कोई कारोबार बढ़ाना चाहता है और न कोई लोन लेना चाहता है.
महेश व्यास का कहना है इतने पैकेज आने के बाद अब ज्यादा उम्मीद भी नहीं है कि सरकार से कोई और मदद मिलेगी.
तो उपाय क्या है?
महेश व्यास के मुताबिक इकनॉमी की परेशानियों का आज भी जवाब यही है कि सरकार लोगों के हाथों में पैसा दे, सरकारी खर्च बढ़ाए. लेकिन अभी तो ये हो रहा है कि सरकार खुद तंगी में है, इसलिए हर मंत्रालय से खर्च घटाने के लिए कहा जा रहा है. इसकी वजह ये है कि अप्रैल-मई में काम-धंधे बंद हो गए तो सरकार के राजस्व में भी कमी आई. तो कुल मिलाकर इस पूरे साल में इकनॉमी की हालत खराब रहेगी और उसके बाद भी सरकार के पास इकनॉमी को बूस्ट देने के लिए कोई प्लान नहीं है इसिलए पहले की तुलना में ग्रोथ अभी कम ही रहेगी.
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